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________________ ३५२ ] अनेकान्त [वर्ष ६ दाहोद (पंचमहाल) (६) जमनालाल बजाज जैनपाठशाला १६-१० १२-११-२७ भाई जौहरीमलजीको धर्मस्नेह कहें ट्रैक नं० ४८ किस विषयका-आप एक कोई (२) प्रभाचन्द शास्त्री सुना है—यहाँ नौकरी इतिहास मुझे भेजिये जो वर्तमान पठनक्रममें चलता की है वह धर्मको न त्यागे इसपर ध्यान- हो मैं देखकर उत्तर लिख भेजूंगा उसे आप मंजूर (३) देहलीमें एक जैनबोर्डिङ्गकी बड़ी जरूरत है करावें फिर दूसरी पुस्तकको भेजें या प्रोफेसर इसका प्रयत्न करावें। हीरालालजी कर सकते हैं। (५) कर्मानन्दजीका क्या हाल है। जमनालाल बजाज सर्वसे धर्मस्नेह कहें। २-११-२७ . हिसार, महावीरप्रसाद वकाल कार्ड पाया मैं ता० १८ नवम्बर तक यहाँसे बाहर ६-११-३६ - नहीं जा सकता हूं इसलिये आप पं० जुगलकिशोरजी• वैरिस्टर चम्पतराय क्या देहली आयेंगे, कब तक को बुला लेवें या बाबू न्यामतसिंहजी हिसारको। किस दिन किस समय आवेंगे, ठीक पता हो तो जौहरीमलजीका पता क्या है धर्मस्नेह कहें। . लिखें । व, वे देहलीमें कहाँ ठहरेंगे। (E) खंडवा, २५-१०-२७ ___ मैं १४ या १५ को यहाँसे चलूँगा यदि अवसर हो याद अवसर हा मैं अस्वस्थ हूँ चिन्ता की बात नहीं है। जयन्ती * तो मिलता जाऊँगा। .. पर आनेके सम्बन्धमें अभी कुछ नहीं कह सकता हूं। श्राविकाश्रम, तारदेव अबके वर्ष आप तीनों दिन भाई चम्पतरायजीको बम्बई ३-११ सभापति बनावें व उनका बढ़िया छपा हुआ. भाषण मैं १५ दिनसे बीमार था। अब ठीक हूँ.। जूता पाया। करावें व बाँटें । चम्पतरायजीसे काम लेना चाहिये नाप ठीक हुई, आपका धर्मप्रेम सराहनीय है। क्या नहीं तो वे फिर वकालतमें फंस जावेंगे। देहलीमें बो० की कोई तजबीज है। यदि लाला लाजपतरायसे कुछ जैनमतकी प्रशंसा सर्राफसे व सबसे धर्मप्रेम कहें। पर कहला सकें तो बहुत प्रभाव हो। . - खंडवा, १५-१०-२७ मेर पुस्तक मिली पढ़कर यदि कामताप्रसाद ____ पत्र पाया व पुस्तकें पाई । नागपुर भेजा बहुत चाहेंगे तो भेज देंगे । लेख निकल गया होगा। अच्छा किया उदू पुस्तकें पहले मिली थीं। आप जैनगजट अङ्क ४३ अभी आया नहीं आप सूरत खूब धर्मप्रचार करें। मेरा लिखा ट्रैक यह अशुद्ध से मँगा लें व वहीं कहींसे देख लें। छपा है क्योंकि मेरे अक्षर सिवाय सूरनवालोंके और उपजातिविवाह आन्दोलनको जोर देना चाहिये। कोई पढ़ नहीं सका। यदि आप कोई हिन्दी ट्रैक वो, २२-३-२७ चाहते हों तो मैं.लिख सकता हूं पर आप कमेटीसे ___ यदि बैरिस्टर साहब तैयार हैं तो मंडलकी ओरसे पास करालें कि वह सूरत ही शीघ्र छपे तो मैं लिखू उन्हींको गुरूकुलके उत्सवमें भेजिये । यदि मुझे भेजना पं० मथुरादासको समझाकर बोलपुर शान्तिनिकेतन हो तो नियत तिथि होनी चाहिये व एक जैनी रसोईके भिजवावे वहाँ बहुत जरूरत है अधिक वेतनका लोभ लिये साथ चाहिये तथा उनकी स्वीकारता श्रापके ही न करें यहाँ उनकी भी योग्यता बढ़ेगी उनका जवाब द्वारा आनी चाहिये। लेकर लिखना। (३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527259
Book TitleAnekant 1948 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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