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________________ किरण ८ ] व्यक्तित्व [३०७ इससे समस्त यूरुपमें भारतके प्रति बड़ी भ्रामक पूञ्जीपतिके सामानको छोड़कर कुली इंग्रेजका सामान धारणाएँ बन गई। उठायेगा, ताँगेवाले टैक्पीवाले भी पहले इंग्रेजको ही अधिकांश यहाँके राजे-महाराजे वहाँ रङ्ग-रेलियाँ तरजीह देंगे। यहाँतक कि मँगते भी पहले उन्हींके करने गये तो, आमलोगोंको विश्वास होगया कि आगे हाथ पसारेंगे। भारतीय ऐय्याश और पैसेवाले होते हैं। और इसा इंग्रेजोंके उस व्यक्तित्वका जहाँ प्रभाव पड़ा, वहाँ विश्वासके नात यूपियन महिलाएँ इण्डियन्सके पीछे उनके अवगुणासे भी लोग शङ्कित हुए टामी लोगोंमें मक्खियोंकी तरह भिनभिनाने लगीं। सच्चरित्र और विश्वस्त भी रहे होंगे; परन्तुइनका किसी ___ अमेरिका-कनाडामें ग़रीब तबके सिक्ख महनत- ने विश्वास नहीं किया। ये हमेशा यूरुपके कलङ्क समझे मजदूरी करने पहुंचने लगे तो वहाँ समझा गया कि गये। यूरुपियन महिलाओंकी स्वच्छन्दतासे भारतीय इण्डियन बहुत निर्धन होते हैं. अतः नियम बना दिया इतना घबराते थे कि कोई भी भला आदमी उनके गया कि निर्धारित निधि दिखाये बिना कोई भी सम्पर्कमें आनेका साहस नहीं करता था। लोगोंका भारतीय अमरीकन-सीमामें प्रवेश नहीं कर सकेगा। विश्वास था: भारतमें जब इंग्रेजोंका प्रभुत्व जमने लगा तो 'काजरकी कोठरीमें कैसो हू सयानो जाय , उन्होंने नीति निश्चित कर ली कि भारतमें उच्च श्रेणी काजरकी एक रेख लागे पर लागे है।' के इंग्रेज ही जाने पाएँ। ताकि शासित जातिपर एक बार एक उद्योगपतिने मुझसे कहा था कि शासकवर्गका अधिकाधिक प्रभाव जम सके । उक्त यदि मेरे बराबरके डिब्बेमें भी कोई यूरुपियन महिला नीतिके अनुसार भारतमें जबतक इंग्रेज उच्चकोटि- सफर कर रही हो तो में तत्काल उस डिब्बेको छोड़ के आते रहे उनके सम्बन्धमें भारतीयोंकी धारणा देता हूं। यह लोग कब क्या प्रपञ्च रच दें अनुमान उच्चसे उच्चतर बनती गई। लोगोंका विश्वास दृढ़ नहीं लगाया जा सकता। एक ही आदमीके अच्छेहोगया कि हिन्दुस्तानी न्यायाधीश, हाकिम. व्यापारी बुरे व्यक्तित्वसे लोग अच्छे-बुरे अनुमान लगाते और मित्रसे कहीं अधिक श्रेष्ठ इंग्रेज न्यायाधीश, रहते हैं। हाकिम. व्यापारी और मित्र होते हैं। ये बातके धनी, २-४ आदमियोंकी तनिक-सी भूल उनके देश, धर्म, वक्तके पाबन्द. उदार हृदय और ईमानदार होते हैं। समाजवंशके मार्गमें पहाड़ बनकर खड़ी होजाती है। __परिणाम इस धारणाका यह हुआ कि इंग्रेज १०-५ ब्राह्मणोंने लोगोंको विष दे दिया तो लोग कह बैठते जज, हाकिम, डाक्टर, वकील इञ्जानियर, व्यापारी हैं ब्राह्मणोंका क्या विश्वास ? नाथूराम विनायक आदि हिन्दुस्तानियोंकी नज़रोंमें हिन्दुस्तानियोंसे गोडसेके कारण-विदेशोंमें हिन्दुओंको और भारतमें अधिक निष्पक्ष, योग्य और चतुर बन गये। यहाँ ब्राह्मणों महाराष्टों, विनायकों और गोडसोंको कितना तक कि विलायती वस्तुके सामने हम स्वदेशी वस्तुको कलङ्कित होना पड़ा है ? हेच समझने लगे। हमारा अभीतक विश्वास भी है ईसाईयोंने अपने सेवाभावी व्यक्तित्वकी ऐसी कि विलायती वस्तु खालिस और उत्तम होती है। छाप मारी है कि उनके सायेसे भी घृणा करनेवाले स्वदेशी नकली, मिलावटी और घटिया होती है। बड़े-बड़े तिलकधारी अपनी बहू-बेटियोंको बच्चा प्रसत्रलिखा कुछ होगा और माल कुछ और होगा। ऊपर के लिये मिशनरी हॉस्पिटल्समें निःशङ्क अकेली छोड़ कुछ और अन्दर कुछ और होगा । हिन्दुस्तानीके आते हैं । सबका अटूट विश्वास है कि उतनी सेवाव्यापार-व्यवहारमें स्वयं हिन्दुस्तानीको नैतिकताकी परिचर्या घरवालोंसे हो ही नहीं सकती। आशङ्का बनी रहती है। इंग्रेजोंकी उदारता-नैतिकता- मुसलमानोंमें अनेक सदाचारी. तपस्वी. और की यहाँ तक छाप पड़ी कि बड़ेसे बड़े भारतीय मुन्सिफ हुए हैं। परन्तु यहाँ जो उन्होंने अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527258
Book TitleAnekant 1948 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size13 MB
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