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________________ 용 है — युगपत् नहीं, युगपत् (एक साथ) एक रूपसे और अनेकरूपसे वस्तु वचनके द्वारा कही ही नहीं जाती; - क्योंकि वैसी वाणीका असंभव है - वचनमें वैसी शक्ति ही नहीं है । और इस तरह क्रमसे प्रवर्तमान वचन वस्तुरूप — सत्य — होता है उसके असत्यत्वका 'प्रसङ्ग नहीं आता; क्योंकि उसकी अपने नानात्व और एकत्वविषयमें अङ्ग अङ्गीभावसे प्रवृत्ति होती है; जैसे 'स्यादेकमेव वस्तु' इस वचनके द्वारा प्रधानभावसे एकत्व वाच्य है और गौणरूपसे अनेकत्व; 'स्यादनेकमेव वस्तु' इस वचनके द्वारा प्रधामभावसे अनेकत्व और गौरूपसे एकत्व वाच्य है, इस तरह एकत्व और अनेकत्वके वचनके कैसे असत्यता होसकती है ? Jain Education International अनेकान्त [ वर्ष 1 नहीं होसकती है । प्रत्युत इसके, सर्वथा एकत्वके वचनद्वारा अनेकत्वका निराकरण होता है और अनेकत्वका निराकरण होनेपर उसके अविनाभावी एकत्वके भी निराकरणका प्रसङ्ग उपस्थित होनेसे असत्यत्वकी परिप्राप्ति अभीष्ट ठहरती है; क्योंकि वैसी उपलब्धि नहीं है । और सर्वथा अनेकत्वके वचनद्वारा एकत्वका निराकरण होता है और एकत्वका निराकरण होनेपर उसके अविनाभावी अनेकत्वके भी निराकरणका प्रसङ्ग उपस्थित होनेसे सत्यत्वका विरोध होता है । और इसलिये अनन्त धर्मरूप वस्तु है उसे ङ्गश्रङ्गी (अप्रधान प्रधान) भावके कारण क्रमसे त्राग्वाच्य (वचनगोचर) समझना चाहिये ।' स्मरण शक्ति बढ़ानेका एक अचूक उपाय ni यदि तुम विचारके पक्षीको, वह जब और जहाँ प्रकट हो, पिंजड़े में बन्द न करोगे तो वह सम्भवतः सदाके लिये तुम्हारे पाससे चला जायगा, कुछ भी हो उसे लिख डालो, उसे फौरन लिखो, बादमें तुम उन इसमेंसे नौको खारिज कर सकते हो । लेकिन अगर तुम उन दसमेंसे एक भी बचाकर रख लोगे तो उससे तुम लाभ उठाओगे । इस लिये जब कभी तुम्हारे सामने नया विचार आये या नई बात दिमाग में पैदा हो, अथवा तुम कोई नई खोज करो तो उसे कागजपर लिख डालो । मस्तिष्कके विषयमें यह न समझना चाहिये कि वह किसी बातको ढूँढने में पुस्तकालयका काम करेगा, अथवा अपने कामके लिये हमें जिन तथ्योंकी आवश्यकता पड़ती है उनका वह गोदाम है । मस्तिष्कका कार्यक्षेत्र बहुत ऊँचा है - रचना, समन्वय, संघटन, प्रेरणा देना और निर्णय करना ये उसके श्र ेष्ठ कार्योंमेंसे है । यह काम उससे लीजिए । कागज और पेंसिल खरीद कर तथ्योंके लिख डालनेमें उनका इस्तेमाल करना, मनमें बेकार बातोंको इकट्ठा करनेकी अपेक्षा बहुत अधिक सस्ता है । यह एक विज्ञान सम्मत दृष्टिकोण है जिसे गत कुछ वर्षोंसे मनोवैज्ञानिक एकमत से स्वीकार " करने लगे हैं । - वसन्तलाल वर्मा For Personal & Private Use Only +++HDXXCIDI www.jainelibrary.org
SR No.527257
Book TitleAnekant 1948 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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