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________________ वीर-शासन - जयन्तीका पावन पर्व इस युग अन्तिम तीर्थङ्कर श्रीवीर - वर्द्धमानने संसारके त्रस्त और पीडित जनसमूह के लिये अपने जिस अहिंसा और अनेकान्तमय शासन ( उपदेश ) का प्रथम प्रवर्त्तन किया था उस शासनकी जयन्तीका पावन पर्व इस वर्ष श्रावण कृष्णा प्रतिपदा ता० २२ जुलाई १९४८ वृहस्पतिवार को अवतरित होरहा है। भगवान वीरने इस पुण्य दिवसमें जिस परिस्थिति को लेकर अपना अहिंसादिका शासन (प्रथम उपदेश) प्रवृत्त किया था वह प्रायः आज जैसी ही थी । धर्मके नाम पर उस समय अनेक हिंसामयी यज्ञ-याग किये जाते थे, मूक पशुओं को निर्दयतापूर्वक उनमें होमा जाता था, स्त्री और शूद्र धर्माधिकारी नहीं समझे जाते थे, वे मनुष्यों की कोटिसे भी गये बीते थे । भगवान वीरने अपने श्रहिंसा प्रधान 'सर्वोदय तीर्थ' के द्वारा उन हिंसामयी यज्ञोंको पूर्णतया बन्द करके स्त्रियों और शूद्रों को भी उनकी योग्यतानुसार धर्माधिकार दिये थे और प्राणिमात्रके लिये कल्याणका द्वार खोला था । अतएव उनकी इस शासनप्रवर्त्तन तिथि - श्रावण कृष्णा प्रतिपदा–का बड़ा महत्व है और उसका सीधा सम्बन्ध जनताके आत्म-कल्याणके साथ है । आज सारा संसार त्रस्त और दुखी है। पशुओं की तो बात ही क्या, मनुष्य मनुष्योंके द्वारा मारे-काटे, अग्नि होमे तथा अपमानित किये जारहे हैं। सभी एक दूसरेसे भयातुर और परेशान हैं। यदि उनका दुख और भय तथा परेशानी दूर होसकते हैं तो भगवान बीरके द्वारा प्रबर्तित अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह के शासनसे ही दूर होसकते हैं। महात्मा गाँधीने इस दिशा में प्रयत्न किया था और संसारको सुखी और शान्तिमय जीवन व्यतीत करने के लिये. अहिंसक, Jain Education International उदार तथा अपरिग्रही बननेका अनुरोध किया था । यदि संसार गाँधीजीके मार्गपर चलता तो आज भय परेशानी और दुखोंका वह शिकार न होता । वीर-शासन के अनुयायियों का इस स्थितिको दूर करनेका सबसे अधिक और भारी उत्तरदायित्व है; क्योंकि उनके पास अहिंसा के अवतार भगवान महावीर के द्वारा दी हुई वह वस्तु है-वह विधि है जो जादूका सा काम कर सकती है और दुनिया में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, समभाव और मैत्रीकी व्यवस्था कर सकती है । यह निधि अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रहके मूल्यवान सिद्धान्त हैं, जिनका आज हमें भारीले भारी प्रचार और प्रसार करनेकी सख्त जरूरत है । सौभाग्य से इस वर्ष वीर- शासन- जयन्तीका वार्षिक उत्सव जिस महान् सन्तके नेतृत्वमें मुरार ( ग्वालियर) में विशेष समारोह के साथ होने जारहा है। वह जैन समाज और भारतका ही सन्त नहीं है अपितु सारे संसारका सन्त है। उसके हृदयमें विश्वभर के लिये अपार करुणा और मैत्री है । यह सन्त वर्षी गणेशप्रसाद के नामसे सर्वत्र विश्रुत हैं । सन्त के अतिरिक्त आप उच्चकोटिके विद्वान् (न्यायाचार्य) प्रभावक वक्ता और सफल नेता भी हैं। आशा है ऐसे पुरुषोत्तमके नेतृत्वमें इस वर्ष वीरशासन जयन्ती के अवसरपर वीरशासन के प्रचारप्रसार, पुरातत्व तथा साहित्यके अनुसन्धान और देश तथा समाजके उत्कर्ष साधनादिका कोई विशिष्ट एवं ठोस कार्य किया जायगा । बीरसेवा मन्दिर, सरसावा ) ता० ६-७-१९४८ For Personal & Private Use Only दरबारीलाल कोठिया www.jainelibrary.org
SR No.527256
Book TitleAnekant 1948 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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