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अनेकान्त
[वर्ष ९
भी नहीं मिला। और हरि (कृष्ण) संसारके रक्षक मैं श्रद्धाकी बात कहता हूँ। वरुआसागरमें मूलचन्द्र थे उन्हें सोनेके लिये मखमल आदि कुछ नहीं मिला। था। बड़ा श्रद्धानी था। उसके पाँच विवाह हुए थे। क्या मिला? सर्प।
पाँचवीं स्त्रीके पेट गर्भ था। कुछ लोग बैठे थे, जो जो देखी वीतरागने सो सो होसी वीरा रे ।।
मूलचन्द्र था, मैं भी था। किसीने कहा कि मूलचन्द्र अनहोनी होसी नहि कबहूँ काहे होत अधीरा रे॥
___के बच्चा होगा, किसीने कहा बच्ची होगी, इस प्रकार
सभीने कुछ न कुछ कहा । मूलचन्द्र मुझसे बोलाहोगा तो वही जो वीतरागने देखा है, जो बात
आप भी कुछ कह दो । मैंने कहा भैया ! मैं निमित्तअनहोनी है वह कभी नहीं होगी।
ज्ञानी तो हूँ नहीं जो कह दूं कि यह होगा। वह दिल्लीकी बात है। वहाँ हरजसराय(?) रहते थे। बोला-जैसी एक-एक गप्प इन लोगोंने छोड़ी वैसी करोड़पति आदमी थे । बड़े धर्मात्मा थे। जिन- आप भी छोड़ दीजिए । मुझे कह आया कि बच्चा पूजनका उनके नियम था । जब संवत् १४ (?) की होगा और उसका श्रेयांसकुमार नाम होगा । समय गदर पडी तब सब लोग इधर-उधर भाग गये। आनेपर उसके बच्चा हुआ। उसने तार देकर बाईजीइनके लड़कोंने कहा-पिता जी ! समय खराब है को' तथा मुझे बुलाया। हम लोग पहुँच गये । बड़ा इस लिये स्थान छोड़ देना चाहिये। हरजसरायने खुश हुआ। उसने खुशीमें बहुत सारा गल्ला गरीबोंको कहा-तुम लोग जाओ, मैं वृद्ध आदमी हूँ। मुझे बाँटा और बहुतोंका कर्ज छोड़ दिया । नाम-संस्करण धनकी आवश्यकता नहीं । हमारे जिनेन्द्रकी पूजा के दिन एक थालीमें सौ-दो-सौ नाम लिकर रक्ग्वे कौन करेगा? यदि आदमी रखा जायगा तो वह भी और एक पाँच वर्षकी लड़कीसे उनमेंसे एक कागज इस विपत्तिके समय यहाँ स्थिर रह सकेगा, यह निकलवाया । सो उसमें श्रेयांसकुमार नाम निकल सम्भव नहीं। पिताके आग्रहसे लड़के चले गये । एक आया। मैंने तो गप्प ही छोड़ी थी। पर वह सच घण्टे बाद चोर आये । हरजसरायने स्वयं अपने निकल आई । एक बार श्रेयांसकुमार बीमार पड़ा तो हाथों सब तिजोरियाँ खोल दी । चोरोंने सब सामान गाँवके कुछ लोगोंने मूलचन्द्रसे कहा कि एक सोनेका इकट्ठा किया। लेजानेको तैयार हुए, इतने में एकाएक राक्षस बनाकर कुएको चढ़ा दो। मूलचन्द्रने बड़ी उनके मनमें विचार आया कि कितना भला आदमी दृढताके साथ उत्तर दिया कि यह लड़का मर जाय, है ? इसने एक शब्द भी नहीं कहा । लूटने के लिये मूलचन्द्र मर जाय, उसकी स्त्री मर जाय, सब मर सारी दिल्ली पड़ी है, कौन यही एक है, इस धर्मात्मा- जायें; पर मैं राक्षस बनाकर नहीं चढ़ा सकता। को सताना अच्छा नहीं। हरजसरायने बहुत कहा, श्रेयांसकुमार उसके पाँच विवाह बाद उत्पन्न एक ही चोर एक कणिका भी नहीं ले गये और दूसरे चोर लड़का था फिर भी वह अपने श्रद्धानपर डटा रहा । आकर इसे तङ्ग न करें, इस खयालसे उसके दरवाजे सो श्रद्धान तो यही कहता है। जो मौका आनेपर पर ५ डाकुओंका पहरा बैठा गये। मेरा तो अब भी विचलित होजाते हैं उनके श्रद्धानमें क्या धरा ? विश्वास है कि जो इतना दृढ श्रद्धानी होगा उसका यह पञ्चाध्यायी ग्रन्थ है। इसमें लिखा है कि कोई बाल बाँका नहीं कर मकता। 'बाल न बाँका कर सम्यग्दृष्टि निःशङ्क होता है-निर्भय होता है। मैं सके जो जग ही रिपु होय ।' जिसका धर्मपर अटल आपसे पूछता हूँ कि उसे भय है ही किस बातका ? विश्वास है सारा संसार उसके विरुद्ध होजाये तो भी वह अपने आपको जब अजर, अमर, अविनाशी परउसका बाल बाँका नहीं हो सकता । तुम ऐसा विश्वास पदार्थसे भिन्न श्रद्धन करता है, उसे जब इस बातका करो, तुम्हारा कोई कुछ भी बिगाड़ ले तो मैं विश्वास है कि पर पदार्थ मेरा नहीं है, मैं अनाद्यनन्त जिम्मेदार हूँ; लिखा लो मुझसे ।
१ वर्णीजीकी माता श्री चिरोंजाबाईजी।-सं० ।
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