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________________ १५६ अनेकान्त [वर्ष ९ ऐसा खोद डाला है कि हमारा सामाजिक वर्तमान भारतीय किसीको छुरा भोंक देता है, आग लगा देता (दृष्ट) ही विरूप और नष्ट नहीं हुआ है अपितु सुभ- है, दूसरेकी बहू-बेटीको ले भागता है और कभी तधा विष्यको कल्पना (इष्ट) भी अत्यन्त अस्पष्ट और कहीं भी बलात्कार करता है। हमारे सामाजिक निराशाजनक होगई है। यह सब हुआ धमके नशेके वर्तमान (दृष्ट)की निस्सारता और पतन तो स्पष्ट है कारण, धर्मके कारण नहीं । इतिहास इस बातका किन्तु यदि इन वृत्तियोंका निरोध न हुआ तो भविष्य साक्षी है कि अमुसलिम धर्मोंने भारतमें इस्लाम या का अनुमान (दृष्ट) करते ही रोमांच हो आता है, प्राण. उसकी संस्थापर कभी आक्रमण नहीं किया है। सिहर उठते हैं । हिंसककी हिंसा, चोरकी चोरी, झूठे इतना ही नहीं, मुसलिम आक्रमणके बादसे ही सब को धोखा, व्यभिचारीकी बहिन बेटीके साथ व्यप्रकारसे मुसलमानों द्वारा सताये जानेपर भी अमु- भिचार और पूंजीपतिके बिरोधके लिये पूंजीपति सलिम भारतने उन दुर्घटनाओंको भुला ही दिया है। बनना ही हमारी नीति और आदर्श होगये हैं-जैसा यही अवस्था प्राचीन भारतीय सम्प्रदायों और धर्मों कि आजके विश्वमें स्पष्ट दिखाई देता है तो साम्यके पारस्परिक कलह और दमनकी हुई है। तथापि वाद और समाजवाद, सामन्तशाही और नादिरशाही मनुष्यमें इतना विवेक नहीं जागा कि धमे "जीव सभी बदतर सिद्ध होंगे। विध्वंस और पतनकी गति उद्धार" की कला है। जिसे जहाँ विशुद्धि मिले, उसे इतनी तेज होगी कि गत ४३ वर्षोंकी अभूतपूर्व वहीं स्वतन्त्रता पूर्वक रहने दिया जाय। क्योंकि जो वैज्ञानिक विध्वंस-प्रणाली भी उसके सामने वैसी सत्य रूपसे किसी भी धर्मको मानते हैं, वे कभी लगेगी, जैसी बुन्देलेकी तलवार आज अणुबमके आपसमें नहीं लड़ते। फलत: न इस्लाम खतरेमें है सामने लगती है। आजका सर्वतोमुख पतन इतना और न हिन्दू या यहूदी धर्म ही विश्वको स्वर्ग बना व्यापक है कि कुछ समय और बीतते ही वह स्वभाव सकता है। अतः मनुष्यको अपने आप अपनी दृष्टि मान लिया जायगा। क्योंकि आज बहुजनका जीवन बनाने, ज्ञान प्राप्त करने और आचरण करनेकी तो शिथिलाचारकी ओर बढ़ ही चुका है। "महाजन स्वतन्त्रता होनी ही चाहिये । भगवान महावीरके इस को भी असंयत होने में अधिक समय न लगेगा और समन्मभद्र धमेके द्वारा ही हम भारत तथा फिलिस्तीन फिर असंयत ही 'पन्थ' या सहज जीवन हो जायगा। आदि देशोंकी तथोक्त धार्मिक गुत्थियाँ सरलतासे आजके विश्वमें किसीको यदि खतरा है तो वह है सुलझा सकते हैं। संस्कृति या मानवताको । चाहे पूंजीवादी अमेरिका सामाजिक अस्याद्वाद हो या समाजवादी रूस, सब ही इस खतरेकी चर्चा धार्मिक असहिष्णुताकी राक्षसी सन्तानका ही करते है। किन्तु किसी भी वादके अनुयायिओंका नाम सामाजिक अनाचार या अस्याद्वाद है। आधुनिक जीवन ऐसा नहीं है जिससे मानवताकी सुरक्षाकी युगके "वाद" या धर्मके पक्षपातने अनगिनती आंशिक भी श्राशा बंधे। हानियाँ और अत्याचार किये है। किन्तु उन सबका सम्राट तो वह वृत्ति है जिसके कारण मनुष्य तब क्या यह मान लिया जाय कि मनुष्यका कुकृत्योंको आज निःसंकोच भावसे कर रहा है सुधार नहीं ही हो सकता है। तथोक्त वैज्ञानिक जिनके करनेकी शायद उसने कल्पना भी न की प्रतीकार असफल है तब और क्या किया जाय ? होगी । मुसलिमलीगने भारतकी अनेक हानियाँ की उत्तर कठिन नहीं है । यदि दो अणुबमोंने जापानका हैं, उनमें घातक तो वह अनाचार है जिससे उत्तेजित लङ्का-दहन कर दिया तो प्रियदर्शी गाँधीजीने भी तो होकर अमुसलिम भारतीयोंने भी उसकी पुनरावृत्ति हिन्दुत्वके कलङ्क-गोली मारने वालेको हाथ जोड़ की है । आज मुसलिमके समान ही अमुसलिम दिये थे। यह दृष्टि, ज्ञान और आचरण कहाँसे धर्मनीति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527254
Book TitleAnekant 1948 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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