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________________ किरण ३] त्यागका वास्तविक रूप करके किसीको प्रसन्न नहीं रखना चाहता। दो दिनमें देवरानमें लम्बू सिंघई था । अपने प्रान्तका एक दिन तो खाना मिलेगा, दो जूनमें एक जून तो भला आदमी था। पानी नहीं बरसा जिससे लोग मिलेगा, अच्छे कपड़े न सही, सादा खहर तो दुखी होगये । गाँवके लोगोंने विचार किया कि इसके मिलेगा; पर मैं स्वाभिमानको नष्ट नहीं कर सकता। पास खूब अनाज रखा है । लूट लिया जाय । जब हाँ, तो उनकी माँ बनारस आई। अच्छे-अच्छे श्रादमी लम्पूको पता चला तब उसने अपना सब अनाज उनसे मिलने गये। उनके शरीरपर एक सफेद धोती बाहर निकलवाया और लोगोंको बुलाकर कहा कि थी। हाथमें एक कड़ा भी नहीं था, लोगोंने कहा- लूटनेकी क्या आवश्यकता है। तुम लोग ले जाओ माँ जी ! आप इतने बड़े पुरुषकी माँ होकर भी इस बाँट लो । उसने, किसने कितना लिया, यह लिखा प्रकार रहती हैं। उन्होंने जवाब दिया-क्या हाथोंकी भी नहीं। उन्हीं लोगोंमेंसे किसीने अपना कर्त्तव्य शोभा सोना और चाँदीके द्वारा ही होती है; नहीं, समझकर लिख लिया । अनाजके सिवाय उसने इन होथोंकी शोभा गरीबकी सेवासे होती है। हज़ार दो हजार नकद भी बाँट दिये । भाग्यवश भूखेको रोटी बनाकर खिलानेसे होती है । लोग पानी बरस गया। लोगोंका सङ्कट दूर होगया । सबने उनका उत्तर सुनकर चुप रह गये । वास्तविक बात सवाया लाकर बिना माँगे दे दिया। यदि आप दूसरे यही है। पर हम लोग अपना कर्त्तव्य भूल गये। के दुःखमें सहानुभूति दिखलाएँ तो वह सदाके लिये हम केवल अपने आपको सुखी देखना चाहते हैं। आपका कृतज्ञ होजाय-वह आपके विरुद्ध कभी दूसरा चाहे भाड़में जाय, पर ऐसा करनेका विधान बोल न सके । .. जैनधर्ममें नहीं है। जैनधर्म महान् उपकारी धर्म है। मड़ावरे की बात है। पातरे सिंघई वहाँ रहते वह एक-एक कीड़ी तककी रक्षा करनेका उपदेश देता थे। उस जमानेके वे लखपती थे। बड़े दयालु थे। है फिर मनुष्योंकी उपेक्षा कैसे कर देगा? वह जमाना अच्छा था। खूब सस्ता था। एक हैदराबादकी बात है। वहाँ एकबार अकाल पड़ा। का इतना अधिक गल्ला आता था कि आदमी उठा लोग दुःखी होने लगे । मन्त्री चण्डूप्रसादको जब इस नहीं सकता था। उसी समयकी यह कहावत है कि बातका पता लगा कि हमारी प्रजा दुःखी होरही है। एक बैल दो भइया पीछे लगी लुगैया तोई न पूरो उसने खजाना खलवा दिया और सब लोगोंको होय रुपैया' । यदि कोई गरीब आदमी उनके पास यथावश्यक बाँट दिया । ईर्ष्यालु लोगोंने राजासे पूंजीके लिये आता तो उसे वे बडे प्रेमसे ५०) पचास शिकायत की कि इसने सब खजाना लुटवा दिया, रुपयेकी पूंजी दे देते थे। उस समय पचास रुपयेकी बिना खजानेके राज्यका कार्य कैसे चलेगा? राजाने पूंजीसे घोड़ा भर कपड़ा आजाता था। आज तो चार भी उसे अपराधी मान लिया। तोपके सामने उसे जोड़ा भी नहीं आवेंगे । और ५०) रुपये उसके खड़ा किया गया तीन बार तोप दागी गई पर एक परिवारके खानेके लिये अलगसे दे देते थे । उस बार भी नहीं चली। सब उसके पुण्य प्रभावको देख- समय ५०)में एक परिवार साल भर अच्छी तरह खा कर दङ्ग रह गये। कुछ समय बाद पानी बरस गया। लेता था । पर आज एक आदमीका एक माहका परा लोगोंका कष्ट दूर होगया । खजानेसे जो जितना लेगया खचे भी ५०)में नहीं होता। वह आदमी साल भर था सबने उससे दूना-दूना लाकर खजाना भर दिया। बाद जब रुपये वापिस करने जाता और ब्याजके जब खजाना.भर चुका तब मन्त्री अपना पद छोड़कर १२) बारह रुपये बतलाता तो वे ब्याज लेनेसे इन्कार साधु होगया। यह तो रही तवारीखकी बात । मैं कर देते और जब कोई अधिक आग्रह करता तो आपको आपके प्रान्तकी अभी चार साल पहलेकी १ यह ओरछा रियासतका एक गांव है।-संपादक । बात सुनाता हूँ। २ झांसी जिलेका एक कस्वा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527254
Book TitleAnekant 1948 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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