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________________ १४६ अनेकान्त [वर्ष ९ से सहन करता है। आँधीके वेगका वृक्ष जैसे सर दलित होते देखता ? जबकि उसकी धमनियोंमें रक्त झुकाकर बर्बस स्वागत करता है। उसी तरह भारतने और बाहुओंमें बल था ! सिकन्दरके आक्रमणपर यह सब किया ! उसने आगे बढ़कर सैल्युकसको रोका, तनिक जानपर खेल जानेका जिनका स्वभाव था, वह भारतके पानीका जौहर दिखलाया । जो सैल्यकस सिकन्दरकी युद्धाग्निमें पतङ्गेकी भाँति मर मिटे, कुछ भारत-विजय करने और सम्राट बनने आया था, वह गायकी तरह डकराये, कुछ नीची गर्दन किये भेड़ोंकी मैदानसे भाग खड़ा हुआ। भारत-विजयका स्वप्न तो मौत मरे, कुछ हाय कर के रह गये, कुछ विधाताकी भङ्ग हुआ ही ब्याजमें अपनी कन्या चन्द्रगुप्तसे लीला समझ चुप होगये । पर जिनके रक्तमें उबाल ब्याहनी पड़ी और काबुल, कान्धार, बिलोचिस्तान था, वे कीड़े-मकोड़े, भेड़, बकरियोंकी तरह कैसे जैसे प्रदेश भी पराजय स्वरूप देने पड़े। भारतको अपमानित जीवन व्यतीत करते? दासताके पाशसे पहले-पहल मुक्तकर जैन-कुलोत्पन्न । उन्हींमें चन्द्रगुप्त था, पर निरा अबोध बालक। चन्द्रगुप्तने जैनोंकी गौरव-गाथाकी अमिट छाप . मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे सामर्थ्यवान सेना-संग्रह लगादी, जिसे आज भी पराधीन भारतीय बड़े गौरव किये बगैर रावणसे भिड़नेको प्रस्तुत नहीं हुए, तब के साथ सुनते और कहते हैं। बालक चन्द्रगुप्त उस सिकन्दरसे कैसे टकराता जो पहाड़की तरह कठोर और दैत्यकी तरह रक्त- . मौर्य-सम्राट चन्द्रगुप्त जैनने भारतको दासताके लोलुप था पापसे मुक्त करके एकच्छत्र साम्राज्य स्थापित करके पर चन्द्रगुप्तमें साहस था, उसमें धैये था और और अभूतपूर्व शासन-व्यवस्थाकी नींव डालकर जो चट्टानकी तरह स्थिर निश्चय था । 'भरत'का 'भारत' शानदार उदाहरण उपस्थित किया है, उसपर हजारों वह पददलित होते कैसे देख सकता था? उसने प्रन्थ लिखे जानेपर भी लेखकोंको अभी सन्तोष लोहेसे लोहा काटनेका निश्चय किया। सिकन्दरके नहीं है। पेटमें घुसकर उसने उसकी अन्तरङ्ग शक्ति और चन्द्रगप्तके बाद बिन्दुसार, अशोक, सम्प्रति कमजोरीको भाँपा! और चाणक्यको लेकर नवीन आदि मौर्य सम्राटोंने उत्तरोत्तर भारतमें शासनका पद्धतिसे सैन्य-संग्रह प्रारम्भ कर दिया। सुव्यवस्थाकी ! यह मौर्यवंश जैनधर्मानुयायी थ । भाग्यकी बात; महान् सिकन्दरकी किस्मतमें केवल अशोकने और उसके पुत्रने व्यक्तिगत बौद्ध पराजयका कलङ्क नहीं बदा था । वह सैनिकोंके धर्म ग्रहण कर लिया था वैसे मौर्य राज्य घराना जैन विद्रोह करनेपर पञ्जाबसे लौट गया और मार्गमें मर धर्मानुयायी था। अशोकके पौत्र सम्प्रतिने अपने गया । उसके सेनापति सेल्युकसके हृदयमें भारत शासनकालमें जैनधर्मके प्रचारका बहुत अधिक विजय करनेकी लालसा थी। सिकन्दरके आँख बन्द उद्योग किया। यहाँ तक कि काबुल, कान्धार और करते ही उसने वह विश्व-विजयी सेना फिर भारतकी बिलोचिस्तान जैसे बर्बर प्रदेशोंमें भी धर्मकी ओर फेरी और कामदेवकी तरह दुन्दुभि बजाता प्रभावना बढ़ानेके लिये जैनसाधुओंके संघ भिजवाए। हुआ भारतपर छागया। ___मौर्य राजाओंके निरन्तर प्रयत्न करने पर भारत चन्द्रगुप्तके क्रोधकी सीमा न रही । भारतके जब सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था । घर-घरमें सुखी जीवनमें वह कैसे अशान्ति देख ले, वह कैसे मङ्गलाचार होरहे थे । उपद्रवों और सैनिक-प्रदर्शनोंके अपने नेत्रोंसे धार्मिक क्षेत्रोंपर होते उत्पात देखे और बजाए धार्मिक महोत्सव होते थे, रथ-यात्राएँ कैसे कानोंसे अबलाओंका करुण-क्रन्दन सुने ? वह निकलती थीं। भारतीय स्वच्छन्द श्वास लेते थे.तभी अपने पूर्वजोंके भारतको क्योंकर विदेशियोंसे पद- एक दुर्घटना हुई । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527254
Book TitleAnekant 1948 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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