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अनेकान्त
वर्ष ९
कर्मोको पृथ्वीके साथ सम्बन्धित करके किसी स्तूप जाते थे उन समारोहोंके स्मारक भी बनाये जाते या स्तम्भके रूपमें स्थायित्व प्रदान किया गया। वेदों- थे। वस्तुतः यह स्मारक वही खम्भे थे जिन्हें यज्ञकी के हिरण्य-स्तूप एक ऋषिके संज्ञक हैं। 'सुनहली वेदीके बीचमें खड़ा किया जाता था और उनके लिए .. ज्योतिका स्तूप' यह नाम अवश्य ही सत्यके उस पुराना पारिभाषिक नाम यूप था । वैदिक यज्ञ-सिद्धांत सुनहले स्वरूपसे लिया गया है जो इस विश्वमें के अनुसार बिना यूपकी स्थितिके कोई यज्ञ नहीं सृष्टिके आदिसे ही स्थापित है । भौतिक पक्षमें किया जा सकता। यज्ञीय कर्म करनेके लिये यूपकी रात्रिके तम और आवरणको हटाकर सूर्यका बड़ा पूर्वस्थिति आवश्यक है। इस सत्यात्मक नियमको सुनहला स्तूप नित्यप्रति हमारे सामने बनता है। हम अपने ही हालके इतिहास में चरितार्थ देखते हैं। सूर्यके रूपमें मानो हम नित्यप्रति उस सत्य और भारतवर्षमें जो राष्ट्रीय यज्ञ किया गया जिसके चारों ज्योति तत्वका एक बड़ा स्मारक देखते हैं, जिसकी ओर देशके लाखों-करोडों आदमी एकत्र होगये उस किरणें सारे संसारमें फैल जाती हैं। अन्धकारपर विराट यज्ञके यूप-स्तम्भ गांधीजी थे। ऋग्वेदकी एक ज्योतिकी, विजय यह इस नाटकीय स्मारकका कल्पना है कि जब देवताओंने पुरुषका सुधार करनेके स्वरूप है।
लिये पुरुषमेध यज्ञ करना चाहा तो उस पुरुषको पशु ब्रह्मकी स्तम्भ-रूपसे कल्पना
बनाकर उन्होंने उस यज्ञके खम्भेके साथ बाँध लिया। किन्तु इससे भी महत्वपूर्ण एक दूसरी कल्पना है। इसका तात्पर्य यही है कि मनुष्यमें जितना भी पाशजिसमें ब्रह्मको ही स्तम्भ या खम्भा कहा गया है। विक अंश है उसको हटानेके लिये सर्वप्रथम यज्ञके ईश्वरीय शक्तिका यह स्तम्भ सारे ब्रह्माण्डकी विधृति खम्भेके साथ बाँधकर उसीकी भेंट चढ़ाई गई। है अर्थात् उसके धारण करने वाली नींव, उसके राष्ट्रीय यज्ञमें भी इसीको दोहराया गया और गांधीसंस्थान या ढाँचेको खड़ा रखने वाली दृढ़ टेक और 'रूपी यूपसे बांधकर राष्ट्रका जो, जड़ता और पशुता उसकी रक्षक छत है। बिना ईश्वरीय खम्भेके एक क्षण का अंश था वह धीरे-धीरे मिटाया गया और संस्कृत को भी इस जगतकी स्थिति सम्भव नहीं। यही बनाया गया। सौभाग्यसे कर्मकाण्डीय यज्ञोंके स्मारक गांधीजीकी विलक्षण राम-निष्ठा थी। उनका यह ध्रुव रूप बनाये जाने वाले यज्ञीय स्तम्भ या यूपोंके कई विश्वास कि बिना रामकी इच्छाके कुछ नहीं मिलता
अच्छे उदाहरण भारतीय-कलामें प्राप्त हुए हैं । इनमें उसी पुराने सत्यका नई भाषामें उलथा था। सत्य,
। दूसरी शताब्दीका मथुराका यज्ञीय स्तम्भ कलाकी दृष्टि धर्म, अमृत, जीवन और प्राण नाना प्रकारके से बहुत महत्वपूर्ण है । इसका निचला भाग चौकोर निर्माणकारी तत्व उसी एक मूल ईश्वरीय खम्भेके और ऊपरका अठकोण है एवं चोटीपर एक सुन्दर अनेक रूप हैं जिनसे हमारा समाज टिका हुआ है। माला पहनाई गई है। चौकोर भागके एक ओर इस प्रकारके महापुरुषरूपी खम्भे जो राष्ट्र और समाज सुन्दर ब्राह्मी लिपि और संस्कृत भाषामें एक लेख की टेक बनते हैं उसी एक मूल ब्रह्म-स्तम्भके रूपान्तर उत्कीर्ण है जो ई० दूसरी शताब्दीमें राजा वसिष्कके या टुकडे कहे जा सकते हैं। गांधीजी सचमुच इस राज्य कालका है । यह खम्भा यमुनाके किनारे बालूमें एक प्रकारके महान स्तम्भ थे । राष्ट्रकी मानस-भूमिपर गडा हुआ मिला था जहाँ किसी समय वह यज्ञ इस उन्नत स्तम्भकी सत्ता बहुत काल तक अडिग किया गया होगा। रहेगी।
महाभारतकी इन्द्रयष्टि वैदिक यज्ञोंके यूप
महाभारतके पुराने इतिहासमें राजा उपरिचार वैदिक यज्ञोंके रूपमें जो व्यक्तिगत और सामा- वसुकी एक कहानी दी हुई है, जिसमें यह कल्पना की जिक रीतिसे उदात्त और लोकोपकारी कार्य किये गई है कि समृद्धिशाली राष्ट्रका हँसता-खेलता हुआ
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