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________________ किरण ३] निरीक्षण और सम्मति १२३ उन कार्योंको वे पसन्द न करेंगे तो हमें कभी सफलता कार्योंमें उनको सहयोग देना चाहिये, परन्तु ऐसे नहीं मिल सकती, उल्टा हमारी स्थिति बड़ी दयनीय कार्योंको लेकर अपनी समाजमें वितण्डावाद नहीं होजायगी । उदाहरणके लिये आप लीजिये- बढ़ाना चाहिये।" दस्साओंको हम मन्दिरोंमें पूजा-प्रक्षालका तो रायबहादुर साहबकी उक्त भविष्यवाणी आज अधिकार सहर्ष दे सकते हैं क्योंकि मन्दिर अपने साक्षात् हो उठी है । जो पण्डे, पुजारी मन्दिरोंमें निजी है. उनपर जैनेतर बन्धओंका कोई अधिकार अछूतोको नहीं जाने देते थे, कुत्ते-बिल्लीसे भी अधिक नहीं। हमारे इस कार्यसे उनका बनता बिगड़ता भी घृणा उनसे करते थे; जिनकी मूर्खतासे १०-१२ करोड़ नहीं है। किन्तु यदि हम उनसे शादी व्यवहार करने विधर्मी बन चुके थे। आज वही बहुसंख्यक जनता द्वारा चुने गये शासनाधिकारियों द्वारा बनाये गये लगें तो हमारे सजातीय किन्तु भिन्न भाइयोंके कान अवश्य खड़े होजाएँगे। यदि वह स्वयं इसे नहीं अछूत मन्दिर-प्रवेश और समान सिद्धान्तके सामने सर टेकते नजर आरहे हैं। अपनाएँगे तो हमें ऐसा करते देख हमारे साथ विवाह अब कानूनन हरिजनोंसे धार्मिक और सामातथा सामाजिक-सम्बन्ध विच्छेद कर देंगे । और जिक क्षेत्रोंमें समान व्यवहार होगा, वे मन्दिरोंमें कोई भी इतने बड़े समुदायसे वहिष्कृत होकर बेरोक-टोक जा सकेंगे। उनसे जो रोटी-बेटी व्यवहार पानीमें मगरसे असहयोग रखकर-जीवित नहीं करेंगे उनसे घृणा करने वाले दण्डनीय होंगे। वे रह सकता। अछूतोद्धार आदि आन्दोलन भी इसी भोजन ग्रह खोल सकेंगे । तब बताइये पृथ्वीपर तरहके हैं । आप लाख प्रयत्न इनके उद्धारका अब उनसे दामन बचाकर चलना कैसे सम्भव , कीजिये, यदि बहुसंख्यक समाज इन्हें नहीं अपनाता तो आप भी उनकी दृष्टिमें अछूत बनकर रह - जैन जो बहु-संख्यक समाजके विरोधके भयसे जाएँगे । और जिस रोज हमारे बहुसंख्यक सजातीय पतितोद्धार कार्य करते हुए हिचकते थे। अब उपयुक्त भाई और इतर समाज इनको लेना चाहेंगे, तब अवसर आया है कि वे उन्हें जिनधर्ममें दीक्षित आपको भी अनुकरण करना पड़ेगा। जिन कार्योंमें करके जैनसङ्घकी संख्या बढ़ाएँ। बहुसंख्यक समुदायका हित-अहित सन्निहित है; वे डालमियाँनगर (विहार) उन्हींके करनेके लिये छोड़ देने चाहियें, उपर्युक्त ८ मार्च १९४८ -गोयलीय निरीक्षण और सम्मति हालमें जैनसमाजके ख्यातिप्राप्त और स्याद्वादमहाविद्यालय काशीके प्रधानाध्यापक पं० कैलाशचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री वीरसेवामन्दिरमें पधारे थे। आपने यहाँके कार्योंका निरीक्षण कर जो वीरसेवामन्दिरपर अपने उद्गार प्रकट किये हैं और निरीक्षणबुकमें सम्मति लिखी है। उसे यहाँ दिया जा रहा है: . आज मुझे वर्षों के बाद वीरसेवामन्दिरको देखनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। माननीय मुख्तारमा० ७१ वर्षकी उम्रमें भी जवानोंकी सी लगन लिए हुए कार्यमें जुदे हैं। उनके दोनों सहयोगी विद्वान् न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजी कोठिया व पं० परमानन्दजी भी अपने-अपने कार्यमें संलग्न हैं। इस मन्दिरसे दिगम्बर जैन-साहित्य और इतिहासकी जो ठोस सेवा होरही है वह चिरस्मरणीय है । मेरी यही भावना है कि मुख्तारसा० सुदीर्घ काल तक जीवित रह कर हमारे साहित्यकी सेवा करते रहें। कैलाशचन्द्र शास्त्री १०-२-४८ स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालय, काशी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527253
Book TitleAnekant 1948 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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