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________________ किरण २] सम्प्रदायवादका अन्त ८५ पर, हमारी समाजमें प्रायः छोटे बड़े सभी एक रहना, निश्चय ही आत्मघातसे भी अधिक जघन्य सिरेसे मृत्यु-समय महोत्सव मना रहे हैं। मृत्यु पाप है। र नाच रही है, पृथ्वी उनके पांवोंके पोलेण्ड और फिनलैंडका वही हश्र हा जो नोचेसे खिसकी जारही है। प्रलयके थपेड़े चप्पत निर्बल राष्ट्रों और अल्पसङ्ख्यक जातियों का होता है। मारकर बतला रहे हैं कि रणचण्डीका तांडव-नृत्य इस घटनासे शंकित आज कमजोर और असहाय राष्ट्र प्रारम्भ होगया है। उसका घातक प्रभाव आँधीको मृत्युवेदनासे छटपटा रहे हैं । निबेल राष्ट्र ही क्यों ? वे तरह संसार में फैल गया है। संसारके विनाशको सबल राष्ट्र भी-जिनकी तलवारोंके चमकनेपर बिजली चिन्ता और अपने अस्तित्व मिट जानेकी आशंका कौन्दती है. जिनके सायेके साथ साथ हाथ बान्धे हुए दूरद कलेजोको खरच-खरच कर खाए विजय चलती है. जिनके इशारे पर मृत्यु नाचती हैजारही है। पृथ्वीके गर्भ में जो विस्फोट भर गया है आज उसी सतृष्ण दृष्टिसे अपने सहायकोंकी ओर वह न जाने कब फूट निकले और इस दीवानी दुनिया देख रहे हैं। जिस तरह डाकुओं से घिरा हुआ काफिला को अपने उदर-गह्वरमें छुपा ले। एक क्षण भरमें (यात्री दल)। क्योंकि उनके सामने भी अस्तित्त्व मिट क्या होनेवाला है- यह कह सकनेकी आज राजनीति जानेकी सम्भावना घात लगाये हुए खड़ी है । इस के किसी भी पंडितमें सामर्थ्य नहीं है। संसार समुद्र प्रलयंकारी युगमें जो राष्ट्र या समाज तनिक भी असामें जो विषैली गैस भर गई है वह उसे नष्ट करने में वधान रहेगा, वह निश्चय ही ओन्धे मुंह पतनके कालसे भी अधिक उतावली है। गहरे कूपमें गिरेगा । अत: जैन समाजको ऐसी परिकिन्तु, जैनसमाजका इस ओर तनिक भी ध्यान स्थितिमें अत्यन्त सचेत और कर्तव्यशील रहनेकी श्रा. नहीं है। वह उसी तरहसे अपने राग रङ्गमें मस्त है वश्यकता है। दुख, चिन्ता, पीड़ा श्रादिके होते हुए भी आनन्द- ३-सम्प्रदायवादका अन्तविभोर रहना. मुसीबतोंका पहाड़ टूट पड़नेपर भी जबसे हमारा भारत स्वतन्त्र हुआ है, उसे अनेक मुस्कगना नमुष्य के वीरत्व साहस और धैर्यके विषम परिस्थितियोंने घेर लिया है । पाकिस्तानी, रिचिह्न हैं। पर जब यही क्लेश, दुख. चिन्ता आदि यासती और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओंके हल करने में तो दूसरेको पीड़ित कर रहे हों. तब उनका निवारण न वह चिन्तित है ही, अपने आन्तरिक मामलोंसे वह करके अथवा समवेदना प्रकट न करके आनन्द रत और भी परेशान है। जिन रूढ़िवादियों, प्रगतिविरहना मनुष्यताका द्योतक नहीं। गाना अच्छी चीज रोधियों, पोंगापन्थियों, जौ हूजूरों, पूँजीपतियों आदि है, पर पड़ौसमें आग लगी होनेपर भी सितार बजाते ने स्वतन्त्रता प्राप्तिमें विघ्न डाले और हमारे मागेमें रहना, उसके बुझानेका प्रयत्न न करना आनन्दके पग-पग पर कांटे बिछाये, वही आज सम्प्रदायवाद, बजाय क्लेशको निमन्त्रण देना है। जहाजका कप्तान प्रान्तवाद और जातीयतावादोंके झण्डे लेकर खड़े हो अपनी मृत्युका आलिंगन मुस्कराते हुए कर सकता है. गये हैं। जिन भलेमानुषों ( ?) ने गुलामीकी जंजीर पर यात्रियोंको मृत्युको संभावनापर उसका आनन्द में जकड़ने वाली ब्रिटिशसत्ताको दृढ़ बनानेके लिये विलीन हो जाता है और कर्तव्य सजग हो उठता है। लाखों नवयुवक फौजमें भर्ती कराके कटा डाले, अ___ हम भी इस संसार-समुद्र में जैनसमाज-रूपी जहा- संख्य पशुधन विध्वंस करा डाला और यहांका अनाज जमें यात्रा कर रहे हैं। जब संसार सागर विक्षुब्ध बाहर भेजकर लाखों नर नारियों और बालक बालिहो उठा है और उसकी प्रलयकारी लहरें अपने अन्त- काओंको भूखे मार डाला. वही आज "धर्म डूबा धर्म स्थलमें छुपाने के लिये जीभ निकाले हुए दौड़ी आरही डूबा" का नारा बुलन्द करके सम्प्रदायवादका बवन्डर हैं तब हमारा निश्चेष्ट बैठे रहना, रागरङ्गमें मस्त उठा रहे हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527252
Book TitleAnekant 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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