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अनेकान्त
मठ, ६००० बौद्ध भिक्षु, और सैकड़ों देव मन्दिर थे । और इसी प्रदेशमें लोक- प्रसिद्ध प्रभास-पट्टनका सोमनाथ मन्दिर है ।"
सोरठ देश (सौराष्ट्र) हिन्दुओंके लिए सदा ही आकर्षक रहा है। उनके लिए यह देश भूमिपर स्वर्गके समान है। यहां निर्मल-नीर - बाहिनी नदियाँ हैं, प्रसिद्ध (जाति) घोड़े मिलते हैं और यहांको रमणियां सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं । किन्तु इन सबसे ऊपर यह पवित्र स्थान है क्योंकि जैनियों के लिए यह तीर्थंकर आदिनाथ और अरिष्टनेमि (कृष्ण के चचेरे भाई) की भूमि है और हिन्दुओं के लिए महादेव और श्रीकृष्ण का देश है।
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सोमनाथ पट्टन -
जिस नगर में खोमनाथमन्दिर है उसे पटन, पट्टन पाटन प्रभासपट्टन, देवपट्टन, सोमनाथ पट्टन, रेहवास पट्टन, शिव पट्टन और सोरठी-सोमनाथ भी कहते हैं । इस अति प्राचीन नगर में अतीत गौरव के अनेकों चिह्न मिलते हैं यहां उजड़े हुए प्राचीन सोमनाथमन्दिर और आधुनिक सोमनाथ मन्दिरके अतिरिक्त अन्य भग्नावशेषोंमें जामा मस्जिद भी है। यह मस्जिद एक प्राचीन विशाल सूर्य मन्दिरको जो इसी स्थानपर पहले था, नष्ट कर. मन्दिर के सामान से बनाई गई है। इसी जामा मस्जिदके थोड़ी दूर उत्तर में पार्श्वनाथ (जैन तीर्थंकर) का एक बहुत पुराना मन्दिर था जो आजकल एक रहनेके मकानके रूपमें व्यवहृत होरहा है। इस नगरके पश्चिम में ( पट्टन और बेराबलके बीच में ) माइपुरी मसजिद है जो कि एक मन्दिरको मसजिद के रूप में रूपांतरित कर दी गई प्रतीत होती है। यहां भाटकुण्ड भी है जहां, कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्णने शरीर छोड़ा था। इस नगर के पूर्व की ओर तीन सुन्दर सरिताओंका त्रिवेणी सङ्गम है, जो भगवान श्रीकृष्ण के शरीरका दाह-संस्कार: स्थान होने के कारण पवित्र है यह सारा स्थान भगवान श्रीकृष्णकी लीलाओंसे सम्बन्धित है । इस स्थानको "वैराग्य क्षेत्र' कहते हैं, क्योंकि यहां पर श्रीकृष्णकी रुक्मणी श्रादि महा
रानियां सती हुई थीं। यहां एक गोपी तालाब है, जिसकी मृत्तिकाका रामानन्दी वैरागी, और दूसरे वैष्णव भक्त मस्तकपर लगाते हैं और इस मृत्तिकाको गोपी- चन्दन कहते हैं ।
गिरनार पर्वतसे ४० मील दक्षिणकी ओर सोमनाथका प्राचीन मन्दिर समुद्र के पूर्वी कोनेपर अब तक स्थित है । इस मन्दिरकी दीवारोंके कोई चिन्ह नहीं मिलते मन्दिरकी नींव के आस-पास की भूमिको समुद्रकी तरङ्गोंसे बचाने के लिये एक सुदृढ़ दीवार बनी हुई है। दीवारोंकी खाली जगहको पत्थरोंसे भर कर मसजिद बना ली गई है। वर्तमान मन्दिरका जो वशिष्ठांश है वह मूलत: गुजरात के महाराज कुमारपाल द्वारा निर्मित किये गये मन्दिरका है । जिसका निर्माण सन् १९६८ में हुवा था । सोमनाथ मन्दिर
[ वर्ष
पश्चिमी भारत के मन्दिरोंमें, जिनकी संख्या अगति है, हिन्दू धर्म के समस्त इतिहास में काठियावाड़ दक्षिणी सागर तटपर स्थित भेरावल बन्दर के निकट सोमनाथ पट्टनका सोमनाथ मन्दिर सर्वे - प्रसिद्ध है । यह सर्व भारतमें प्रसिद्ध १२ ज्योतिलिङ्गों में से प्रथम
है
। और न ही किसी अन्य मन्दिरका इतिहास इतना प्राचीन है जितना कि सोमनाथका ! अनेकों ही बार इसकी दीवारोंने युद्ध के परिणामको देखा, और कितनी ही बार पिशाची आक्रमणकारियों द्वारा यह ने पीठ मोड़ी त्यों ही एक अमर प्राणीकी तरह इसकी मन्दिर धराशायी कर दिया गया, परन्तु ज्यों ही शत्रुश्राकाशमें फहराने लगी, और घण्टा शङ्खों और डमरू दीवारें फिर खड़ी हो गई । शङ्करको ध्वजा फिर के शब्दसे शिव की पूजा आरम्भ होती गई ।
इतिहास में सोमनाथका मन्दिर मुख्यत: महमूद
* १२ ज्योतिर्लिङ्गों के नाम - श्री शैल (तिलङ्गना) का मल्लिका 'जुन, उज्जैनका महाकाल, देवगढ़ (विहार) का वैद्यनाथ, रामेश्वरम् (दक्षिणभारत) का रामेश्वर, भीमानदी के मुहानेपर भीम शङ्कर, नासिकका त्रयम्बकं, हिमालयका केदारनाथ, बनारस के विश्वश्वर, गौतम (अज्ञात)
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