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________________ किरण २] - हिन्दी-गौरव सान्त्वना प्रकट करनेके लिये तो मुझे कोई शेर की उधारको लिष्ट दे दी और दो हजार रुपये एकके याद नहीं आया, उसकी आवश्यकता भी नहीं पड़ी, नाम ऋण लिखे दिखला दिये। परन्तु इन साथीकी बकवास पर गालिबका शेर मनमें मांने सर पीट कर कहा-'तेने उस नादिहिन्दको झूमने लगा दो हजार क्यों पकड़ा दिये ? फर्माया-मां तू तो न लुटता दिनको तो यूँ रातको क्यों बेखबर सोता। बेकारमें घबड़ाती है, उसने मुझे कसम खाकर २०००) रहा खटका न चोरीका दुआ देता हूं रहजनको ॥ रुपये जल्दी लोटानेको कहा है। उसे पठान तंग कर ___ सन् ३० के असहयोग आन्दोलनमें आपने खद्दर रहे थे, इसीसे उसे रुपयेकी जरूरत आन पड़ी थी। की दुकान खोली। विमल भाईकी दुकानपर बाहरके इन १७ वर्षों में जब जब विमलभाईसे पूछा कि वे व्यापारीतो तब आते जब परिचित यारोंकी कुछ कमी रुपये पटे या नहीं। तबतब आपने बड़े विश्वासकेसाथ होती। भीड़ लग गई, लोग हैरान कि जिसने कभी कहा- “भई रुपये मारमें थोड़े ही हैं। विचारा खुद दूकान नहीं की वह इस फर्राटेसे क्योंकर बिक्री कर मुसीबत में है. उससे रुपयेका तकाजा करना भलमनरहा है। घरवाले भी खुश कि चवन्नी न सही दुअन्नी साहतमें दाखिल नहीं।" रुपया भी मुनाफा लिया तो २००-३०० रुपयेकी मैं इन २३ वर्षों में स्वयं निर्णय नहीं कर पाया कि बिक्री पर २५-३० तो कहीं भी न गये । हमने स्वयं विमलभाई खप्ती हैं या जीवनमुक्त ? क्या पाठक अपनी अपनी आखोंसे आपकी दुकानदारीके जौहर देखे । उपयुक्त सम्मति देंगे। . दुकान ऐसी चली कि २-३ माहमें ही पंख निकल डालमियानगर, २ फरबरी १९४८ आये । माँने अपने ३०००) मांगे तो एक हजार रुपये हिन्दी-गौरव (१) . बन रही मां भारतीके भालका शृङ्गार हिन्दी! सोचते थे हिन्दमें कब रामराज स्वराज होगा, + पूर्ण होने जारहे हैं स्वप्न सब अपने सजीले, हिन्दी सुभगलिपि नागरीके सीसपर कब ताज होगा सुखदमादक बन रहे हैं आज कवि गायन सुरीले कल्पनाके नील नभमें उड़ रही थी भावनाएँ, मिट रहे अभियोग युग-युगके, मिले वरदान नीके, दासताके पाशमें थीं बद्ध अपनी योजनाएँ। मिल रहा बलिदानका फल जल रहे हैं दीप घीके। अब करेगी सभ्यताके ज्ञानका सुप्रसार हिन्दी! A पारही सब भारतीयोंके दिलोंका प्यार हिन्दी! बन रही मां भारतीके भालका शृङ्गार हिन्दी!! बन रही मां भारतीके भालका शृङ्गार हिन्दी !! राज-भवनोंसे कुटी तक ना नागरीमें कार्य होगा, II हो गये श्राजाद, पूरी हो गई चिर-कामनाएँ; देश भारतवर्षका अब 'आर्य' सच्चा आर्य होगा। G दूर कटकर गिर पड़ी हैं दासताको शृङ्खलाएँ। जीणे अगणित अब्दियोंके टूक सकल विधान होंगे, ! हष-पूरित लोचनों में मुस्कराती मृदुल-आशा, मुदित होंगे श्रमिक जनसब, तुष्ट सकल किसान होंगे दूर देखेंगी खड़ी सब, अन्य भाषाएँ तमाशा ।। विश्वमेंगूजे तुम्हारा नित्य जय जयकार हिन्दी i मुकुट हिन्दी को मिलेगा, पाएगी सत्कार हिन्दी! बन रही मां भारतीके भालका शृङ्गार हिन्दी !! .........बन रही मां भारतीके भालका शृङ्गार हिन्दी !! पं० हरिप्रसाद 'अविकसित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527252
Book TitleAnekant 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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