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________________ वर्ष ६ ] विशिष्ट विद्वत्ता और आगमज्ञान तो कितने ही विद्वानों के लिये स्पर्धाकी चीज है। उनके 'तहलका मचा रक्खा' 'मुख्यनेता' 'मोटे' जैसे आक्षेप नरक शब्द और अन्तमें प्रकाशित परिशिष्ट इसमें न होते तो अच्छा था। पुस्तकका योग्य सम्पादन अपेक्षित था जिससे भाषा साहित्य आदिकी त्रुटियां न रहतीं। फिर भी समाज सोनीजीकी विद्वत्ता और सेवाभावनाकी नियही कायल है । काश ! ऐसे विद्वान साहित्यिक क्षेत्र में आकर साहित्यसेवामें जुटते तो उनसे बड़ी साहित्य सेवा होती । २ रेडियो--- लेखक, श्री रा०र० खाडिलकर | काशी नागरी-प्रचारिणी सभा । मूल्य || | ) | प्रस्तुत पुस्तक में रेडियो सम्बन्धी समस्त प्रकार की जानकारी दी गई है। रेडियोका प्रचार, रेडियोका विज्ञान, वेतार विद्या, जाड़ों में रेडियो अच्छा क्यों सुनाई देता है ?, रेडियो के विभिन्न वरन, रेडियो यंत्र में खरावी और उसके उपाय ? रेडियो पर खबरें, समयका अन्तर, ब्रिटेनका समय, यूरोपका समय, भारतीय समय, अमेरिकन समय, भारतीय रेडियोका भविष्य जैसे गहन वैज्ञानिक विषयोंको लिये हुए उनपर पर्याप्त और सरल हिन्दी में प्रकाश डाला गया है। आज भारतमें रेडियोका प्रचार बराबर बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में यह पुस्तक रेडियोका ज्ञान करनेके लिये बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी। संयुक्त प्रान्तके शिक्षा मन्त्री बा० सम्पूर्णानन्दने 'दो शब्द ' वक्तव्य में इस पुस्तकका स्वागत करते हुए लिखा है- 'इस छोटी-सी पुस्तकको पढने से कोई भी शिक्षित व्यक्ति, चाहे वह भौतिक विज्ञानका विशेषरूप से विद्यार्थी न भी हो, रेडियो सम्बन्धी आवश्यक बातोंकी काम चलानेभर जानकारी प्राप्त कर सकता है'। इसे एकबार मंगाकर अवश्य पढ़ना चाहिए । ३ जैन इस्टिटय शन्स इन देहली--- ले०, ब० पन्नालाल जैन अग्रवाल देहली। प्रकाशक जैन मित्रमण्डल, धर्मपुरा देहली। मू० चार आने । यह अंग्रेजीमें देहलीकी सभी जैन संस्थाओंकी Jain Education International प्रकाशक, अनेकान्त ६० (ङ) संक्षिप्त परिचय - पुस्तिका है और देहली जैसे बड़े शहर में आने वाले यात्रियों के लिये जैन गाइड के रूप में अच्छे काम की चीज है - साथमें एक नक्शा भी लगा हुआ है जिसने इसकी उपयोगिताको बढ़ा दिया है । इसके सहारे से कोई भी यात्री सहज में ही यह मालूम कर सकता है कि दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानक - वासी सम्प्रदायोंके कौन कौन मन्दिर, स्थानक, विद्यालय, औषधालय, स्कूल, पाठशाला, धर्मशाला, शास्त्रभण्डार, लायब्रेरी तथा सभा सोसाइटी आदि दूसरी संस्थाएँ किस किस मुहल्ले गली-कूचे आदि में कहांपर स्थित हैं और उनकी क्या कुछ विशेषताएँ हैं । और इस तरह वह इधर उधर भटकने तथा पूछताछ करने के कष्टसे मुक्त रहकर अपना बहुत कुछ समय बचा सकता है और यथेष्ट परिचय भी प्राप्त कर सकता । पुस्तक अच्छे परिश्रम से लिखी गई है, उसके लिये लेखक और उनके सहायक सभी धन्यवाद के पात्र हैं । बाहुवली --- (राष्ट्रीय काव्य ) — लेखक, श्री० हीरक, प्राप्तिस्थान सगुनचन्द चौधरी स्याद्वाद विद्याभदैनी बनारस, मूल्य 11 ) | लय, इसमें कवि श्री हीरकने बाहुवलीका चरित्र ग्रन्थन करनेका प्रयास किया है । भूमिका हिन्दी विभाग हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो० डा० श्रीकृष्णलाल एम. ए. पी. एच. डी. ने लिखी हैं। संस्कृत शब्दों के बाहुल्यने काव्यकी कोमलता और सरसताको सुरक्षित नहीं रख पाया फिर भी कविका इस दिशा में यह प्रथम प्रयत्न हैं। आशा है उनके द्वारा भविष्य में अधिक प्राञ्जल रचनाओं का निर्माण हो सकेगा । महावीर - दर्शन --- ( पद्यमय रचना ) लेखक पण्डित लाल बहादुर शास्त्री, प्राप्तिस्थान नलिनी सरस्वती मन्दिर, भदैनी बनारस, मूल्य ) ॥ यह ७९ पद्योंकी सरस और सुन्दर रचना है । इसमें भगवान महावीरका आकर्षक ढङ्गसे संक्षेप में जीवन-परिचय दिया गया है। पुस्तक लोकरुचिके अनुकूल है और प्रचार योग्य है । -दुरबारी लाल कोठिया For Personal & Private Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.527252
Book TitleAnekant 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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