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च्यावश्यक सूचना
मत किरण में अनेकान्तके प्रकाशनमें होनेवाली विलम्बपर अपना भारी खेद व्यक्त करते और उसके कारण एवं तज्जन्य अपनी मजबूरीको बतलाते हुए यह श्राशाकी गई थी कि अगली किरणोंका मैटर शीघ्र ही प्रेस में जाकर वे प्रेसके श्राश्वासनानुसार जल्दी छप सकेंगीं और कुछ समयके भीतर ही विलम्बकी पूर्ति हो जायगी । परन्तु जिस हाइट प्रिंटिंग कागजपर अगली किरणोंके छापनेकी सूचनाकी गई थी उसका परमिट तो मिलगया था किन्तु कागज नहीं मिला था । कागजके लिये कितनी ही बार सहारनपुर के चक्कर लगाने पड़े और प्रत्येक होलसेलर ( wholeseller ) को उसके देने के लिये प्रेरणा की गई परन्तु सबने टकासा जवाब दे दिया और कह दिया कि हमारे पास आपके मतलब का कागज नहीं है। मालूम यह हुआ किं सहारनपुर जिलेका कोटा तो कम है और परमिट अधिकके कटे हुए हैं, ऐसी हालत में माँग के अधिक बढ़जानेसे अक्सर व्यापारी लोग (होलसेलर्स) श्राते ही माल को प्रायः इधर उधर कर देते हूँ – दुकानोंपर रहने नहीं देते — और फिर ड्योढे दुगुने दामों पर बलैकमार्केट द्वारा अपने खास व्यक्तियोंकी मार्फत बेचते हैं | यह देखकर डिस्ट्रीव्यूटरों (distributors) के पास से कागजके मिलनेकी व्यवस्थाके लिये परमिटमें सुधार कर देने की प्रार्थना की गई परन्तु पेपर कंट्रोलर साहबने उसे मंजूर नहीं किया— अर्थात् अपनी हुंडी तो खड़ी रक्खी परन्तु उसके भुगतानकी कोई सूरत नहीं निकाली !! लाचार देहली में एक पेपर एडवाइजरी बोर्ड के मेम्बर के सामने अपना रोना रोया गया और इस सरकारी अव्यवस्थाकी र उनका
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ध्यान दिलाया गया उन्होंने कं. सा. को कुछ लिखा और तब कंट्रोलर साहबने परमिट वापिस मँगाकर उसे होलसेलरों और डिस्ट्रीब्यूटरों दोनोंके नामपर कर दिया साथ ही सहारनपुरका कुछ कोटा भी बढ़ गया। ऐसा होनेपर भी कितने ही तक मिलोंसे डिस्ट्रीव्यूटरोंके पास २०x३० साइजका कागज नहीं श्राया, जो अपने पत्र में लगता है, और कुछ श्राया भी तो वह अपने को नहीं मिलसका श्राखिर ८ दिसम्बर से कागज मिलना शुरू हुआ, जो मिलते ही प्रेमको पहुँचा दिया गया जिसके पास मैटर पहलेसे ही छपने को गया हुआ था । प्रेसकों अपना कुछ टाइप बदलवाना था, इससे उसे छपाई प्रारम्भ करनेमें देर लगगई और इस तरह देर में और देर होगई ! A
यह सब देखकर विलम्बकी शीघ्र पूर्तिकी कोई श्राशा नहीं रही, और इसलिये किरणोंके सिलसिलेको ही प्रधान: अपनाया गया है । अर्थात् इस संयुक्त किरणको जून-जुलाई की न रखकर नवम्बर-दिसम्बर की क्खा गया है और किरणका नंबर पूर्व सिलसिले के अनुसार ही ६-७ दिया गया है । किरणें पूरी १२ निकाली जाएँगी - भले ही कुछ किरणें संयुक्त निकालनी पड़ें, परन्तु पृष्ठ संख्या जितनी निर्धारित है वह पूरी की जावेगी और इससे पाठकों को कोई अलाभ नहीं रहेगा । हम चाहते हैं यह वर्ष श्राषाढतक पूरा कर दिया जाय और वीरशासनजयन्ती के अवसरपर ... श्रावण से नया वर्ष शुरू किया जाय और उसके प्रारंभ में ही एक खास विशेषाङ्क निकाला जाय ।
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सम्पादक
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