________________
२३६
जब हम शक्तिशाली हों, हमारे भुजदण्डों में बल हो, वीर हों और अतिवोर हों या हमारे अन्दर असा धारण तथा अद्वितीय आत्मशक्ति हो ।
अनेकान्त
वीर भगवानका आदेश है "तुम खुद जीओ, जीने दो ज़माने में सभी को” (Live and Let Live) जब हम संसारमें जीवित हो, शक्तिशाली हो, उन्नतिके शिखरपर हों, तब तुम दूसरोंको मत दवा और उन्हें भी जीने दो । अच्छा व्यवहार करो और अत्याचार न करो। पर यह बात नहीं है आजके लिये। अगर हम शक्तिविहीन हैं तो भी किसी को सतावें, परन्तु आज तो हमारा अस्तित्व ही मिटाये जानेकी चुनौती दी गई है । तुम्हारी सभ्यता, तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारे धर्म कर्म सब कुछ नष्ट किये जा सकते हैं अगर तुम इसी प्रकार कायर बने रहे। अब जब हम स्वयं ही नष्ट हो जानेवाले हैं, तब दूसरोंके रहनेका प्रश्न ही नहीं उठता । क्या हिंसा और क्या अहिंसा ?
1
वर्ष ८
पुरुष समझ जाए तो फिर अपनी ही बोली बोलनी चाहिये। मित्रों ! हमारी बोली अहिंसाकी है, लेकिन आज अपने कर्मानुसार तथा काल-चककी गतिसे हम इतने कायर हो चुके हैं कि हम सिंहक हो ही नहीं सकते। आज हमें दंगा करने वालोंको समभामा है । अमर वे हमारी बोलीमें नहीं समझते तो हमें उनको उन्हींकी बोलीमें समझाना पड़ेगा। चाहे वह बोली हिसाकी हो या अहिंसा की । फिर जब हम जागृत हो जाएँगे और इस भेदको समझने लगेंगे, तो कोई भी शक्ति इस प्रकारका अनुचित कार्य करने का साहस न करेगी । मेरी लेखनी फिर वही लिखने को विवश है कि जब तक हम वीर बलवान नहीं, अहिंसक कैसे ? हमें तो विवश होकर अहिंसाकी शरण लेनी पड़ती है ।
Jain Education International
मित्रो ! आज हमें दंगा करनेवाले दुष्टोंको भगवान कुन्दकुन्दके आदेशानुसार समझाना है । अपनी बोलीमें या उनकी ही बोलीमें । अगर वे अहिंसाकी बोली नहीं समझते तो अपने प्यारे जैन धर्म तथा उसकी अहिंसाकी रक्षाके लिये, प्रचारके लिये, उन्नतिके लिये हमें हिंसाकी बोली ही बोलनी पड़ेगी। जब वे समझ जाएँगे तो हम अपनी ही बोली बोलेंगे ।
भगवान कुन्द कुन्दने कहा है कि हमें उसी बोली में ही बोलना चाहिये जिसमें कि दूसरा पुरुष समझ सके । उसे समझानेके लिये अगर हमें उसकी ही बोलीमें बोलना पड़े तो कोई डरकी बात नहीं; परन्तु हमें इस बातका ध्यान रखना चाहिये कि कहीं हम उस ही बोलीको अपना माध्यम न बनालें । जब वह..
不
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org