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________________ नेमिनिर्वाण-काव्य-परिचय (ले०५० पन्नालाल जैन 'वसन्त' साहित्याचार्य ) [गत किरणसे आगे] की राष्ट्र देशकी उर्वरा पृथ्वीका वर्णन करते श्लोकगत समस्त पदोंका श्लेष-सलिल उस उपमाBuy हुए कविराज लिखते हैं लताका सिञ्चन करता है । अथवा जो देश 'घोषवती विराजमानामृणभाभिरामै -वीणा रूप पृथ्वीको धारण किये हुए' यह रूपकाएस मैगरीयो गुणसंनिवेशाम् । लंकार भी माना जा सकता है। उस रूपककी मौन्दर्यसरस्वतीसंनिधिमाजमुर्वि वृद्धि भी श्लेषकं द्वारा ही हो रही है। इस प्रकार ये सर्वतो घोषवती वहन्ति ॥३३॥ कविराजने सुराष्ट्र देशके वर्णनमें अपने काव्य-कौशल _ 'जो सुगष्ट्र देश, बैलों-द्वारा मनाहर ग्रामोंस का अनुपम परिचय दिया है। शोभायमान, गुरुवर गुणोंके संनिवेश-रचना या ____ समुद्र के बीच में द्वारावती पुगेका वर्णन करते हुए विस्तार से सहित, सरस्वती-नदियों के सामीप्यको कविराजने श्लिष्टोपमाका कितना सुन्दर उदाहरण प्राप्त और गोपवमतिकाओंसे युक्त पृथ्वीको सब तयार किया है ? देखियेओरसे धारण करते हैं।' परिस्फूरन्मण्डलपुण्डरीक-छायापनीतातपसंप्रयोगैः। यह तो हुआ. प्रकृत अर्थ, अब अप्रकृत अर्थ या राजहंसैरुपसेव्यमाना, राजीविनीवाम्बुनिधौ रराज ॥३७॥ देखिये, जो कि श्लोकगत समस्त पदोंके द्वथर्थक होने _ 'जो नगरी समुद्रके मध्यमें कमलिनीके समान के कारण स्पष्टरूपसे प्रतिभासित हो रहा है। शोभायमान होती है। जिस प्रकार कमलिनी, विक शोभा "जो सुराष्ट्र देश, ऋषभ नामक स्वर विशषस सित पुण्डरीकों-कमलोंको छायासे जिनकी आतपसुन्दर, ग्राम-स्वर्गके समुदायस विराजित, गुरुतर- व्यथा शान्त हो गई है ऐसे राजहंसों'-हंस विशेषों श्रेष्ठ अथवा बड़ी बड़ी तन्त्रियोंके सनिवेशस युक्त, से सेवित होती है, उसी प्रकार वह नगरी भी तने हुए तथा सरस्वती देवीके समीपमें स्थित-उसके हाथ में विस्तृत-पुण्डरीक-छत्रोंकी छायासे जिनकी आतप विलसित मनोहर शब्दयुक्त, विशाल, घोषवती-वीणा व्यवस्थासे सब दुःख दूर हो गये हैं ऐसे राजहंसोंको धारण करते हैं-जिस देशके मनुष्य हर एक एक बड़े बड़े श्रेष्ट राजाभांस सेवित थी-उसमें अनेक के प्रकारकी चिन्ताओंसे विनिर्मुक्त हो हाथमें वीणा राजा-महाराजा निवास करते थे। धारण कर संगीत सुधाका पान करते हैं। __उत्प्रेक्षाका एक सुन्दर नमूना भी देखियेयहां प्रकृत और अप्रकृत अर्थों में असंगति न हो , 'राजहंसास्तु ते चञ्चुचरणोहितैः सिताः' जिनकी चोंच इसलिये 'वीणाकं समान पृथिवीको धारण करते हैं और चरण लाल हो और शेष समस्त शरीर सफेद हो यह उपमालंकार व्यङ्ग थरूपसे निकाला गया है। ऐसे हंसोंको राजहंस कहते हैं ।
SR No.527177
Book TitleAnekant 1941 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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