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अनेकान्त
[वर्ष ४
सुन्दर?'
पंख तड़फड़ाने लगा; और लगा अपनी गोल-गोल नन्हीं कालपर किसका वश चला है ? क्या करती .. ? 'हाय !'
आँखोंसे इधर-उधर देखने ! शायद किसीको खोजता हो! करके रह गई ! मिनिट-भरकी वेदनामय श्रायुमें क्या देखता, क्या सोचता ? पीड़ा मौतकी दूती बनकर जो आई थी!
दो-बूँद आँसू रानीकी आँखोने बखेर दिये ! एक वेकलीकी तड़प!
और उसी वक्त उसने देखा--बेचारी कबूतरी रो रही और बस, खतम !
है ! उसका वच्चा जो मर गया है ! उसकी आँखोंका तारा ! रानीने देखा-'वह एक कबूतरका बच्चा है, कैसा रानीके मनमें विद्रोह उठा--'उसका निर्दयी-काल तो
तू है रानी, तू ! वह उठानेके लिए झुकी ! पर, यह क्या ? सिरके पास
____ वह एक दम रो पड़ी ! जैसे उसका बच्चा अभी ही खड़खड़ाहट कैसी है ? नज़र २ठाकर देखा तो एक या दो
मरा है ! घाव कुरेदकर ताला बना दिया हो ! मां के हृदय कबूतरको शोक-विह्वल चक्कर काटते पाया-बेचैन बेखबर !
ने मांके हृदयकी व्यथाको पहिचान लिया! ___रानी क्षण-भर रुकी, और अपने विचारोंमें डूब गई
उसने गुलेल उठा कर दूर फेंकदी, जैसे वह उसकी जैसे अथाह-जल में छोटी-सी कंकड़ी!
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चीज़ ही नहीं थी। भूलसे किसीने उसके हाथमें थमा बच्चा मरा हुश्रा सामने पड़ा था ! उसकी ममतामयी
मया दी थी! माँ-उसके विछोह-दुःखसे पागल हुई-उसे देख रही थी,
विव्हला-कबूतरी इधर-उधर देखती रही, फिर वह सिर्फ देख ही रही थी, आँसू-भरी अॉखोंसे ! वाह ! उसे छु ।
इस अपने मृत-पुत्रके समीप आ बैठी ! लेने तकका उसे हक नहीं था, हिम्मत नहीं थी, अधिकार
देखता कोई वह करुण-दृष्य ! दो मां-हृदयोंके बीच में नहीं था ! वह कभी दरख्त की इस टहनी पर, कभी उसपर!
एक मृतक-पुत्रका निर्जीव-शरीर ! कभी बैठती, कभी उठती ! कभी भागी-भागी फिरती
घंटों हो गए, पर रानी न उठी. अपने स्थानसे चिगी अन्तरिक्षकी छाती पर, बेतहाशा दौड़ती ! श्रोह ! उसे
तक नहीं ! निर्जीव हो, पत्थरकी पुतली हो, या मिट्टीका ढेर ! क्षण-भर भी चैन नहीं!
साथी पाए और जैसे-तैसे कर डेरे पर ले गए ! उसी अरे, उसे कैसी वेदना थी वह !
जड़ताके ढंगमें ! हृदयकी पकार हृदय तक पहुँचने लगी, शायद घायल नहीं कहा जा सकता-अब चैतन्य है वह, या तब की गति घायलने जान ली!
जड़ थी? - रानीका कठोर-हृदय भी दयासे प्लावित होगया ! वह x x x x सोचने लगी--
उसके भी एक बच्चा था-ऐसा ही सुन्दर; ऐसा ही आँखें लाल हैं, शरीर तप रहा है ! बुखारकी तेज़ी कोमल, ऐसा ही प्यारा और ऐसा ही छोटा-मोटा, भोला-भाला! है ! रानी गुम-सुम पड़ी हैं ! किसीसे बोलती-चालती नहीं ! मगर...........!
खाना-पीना तक छूट गया है ! केवल दूध उसका जीवन निर्दयी-कालने उसे न छोड़ा, उसके प्यारे बच्चेको देखते-देखते उठा लिया ! वह विवश रोती-कलपती रह गई! शामको बुखार जब ढीला पड़ता है, बोल सकनेकी