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________________ जिन-दर्शन-स्तोत्र [पं० हीरालाल पांडे, सागर ] ___ [१] आज जन्म मम सफल हुना प्रभुअक्षय - अतुलित निधि • दातार ! नेत्र सफल हो गये दर्शसे[२] पाया है आनन्द अपार !! [३[ आज पंच - परिवर्तनमय यह आज नहाया धर्म - तीर्थमेंअति दुस्तर भव - परावार ! तेरा दर्शन पा साकार ! सुतर हुआ दर्शन से तेरे, गात्र पवित्र हुश्रा नयनों में, भटका हूं जिस में बहुवार !! [४] छाया निर्मल तेज अपार !! आज हुश्री यह जन्म सार्थक, सकल मंगलों का आधार ! तेरे दर्शन के प्रभाव से, ... पहुँचा मैं जग के उस पार !! [६] 6 आज कषाय-सहित कर्माष्टक आज हुए हैं सौम्य सभी ग्रह, का ज्वालाएँ विघटी दुखकार ! शान्त हुए मन के संताप ! ॐ दुर्गति से निवृत्त हुना मैं विघ्न-जाल नश गये अचानक, * तेरे दर्शन के आधार !! तेरे दर्शन के सुप्रताप !! अाज महाबन्धन कर्मों काबन्द हुआ, दुख का दातार ! सौख्य-समागम मिला जिनेश्वर ! [] तव दर्शन से अपरम्पार !! आज हुअा है ज्ञान-भानु का, आज हुा हूं पुण्यवान् मैं, उदय देह-मन्दिर में सार। . . दूर हुए सब पापाचार । तव दर्शन से हे जिनेन्द्रवर! मान्य बना हूं जग में स्वामिन् ! मिथ्या तम- का नाशनहार !! तेरा दर्शन पा अविकार !! आज हुई जिन - दर्शन - महिमा, अवगत मुझ को हे भगवान् ! सत्पथ साफ़ दिखाई पड़ता, खड़ा सामने है कल्याण !! # 'अद्याष्टक स्तोत्र का भाानुवाद
SR No.527177
Book TitleAnekant 1941 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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