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________________ किरण २] विवाह कब किया जाय १६७ अपनी विद्वत्ताका दुरुपयोग कर बैठते हैं। प्रार्थिक बुद्र नेकनामीके ऊँचे प्रासमानकी ओर ले जायंगे ? नेकनामी और स्वार्थों के लिए समाजमें अहितकर और निन्य सिद्धान्तोंका बदनामीका सम्बन्ध विवाह कर देने या न कर देनेसे कतई प्रचार करना वास्तवमें विद्वान् पुरुषोंको शोभा नहीं देता है। नहीं है बल्कि हमारे अच्छे और बुरे पाचरणसे है। बचपनमें देशके सुधारक विद्वानोंको चाहिए कि वे बालक-बालिकाओंके ब्याहे हुए कोमल हृदय बालक-बालिकाओंसे संयम और जीवनको बरबाद करने वाले ऐसे हिद्धान्तोंका प्रचार न होने सदाचारकी प्राशा रखना सांपसे अमृत उगलनेकी भाशा दें और समाजको पतनके मार्गमें जानेसे बचावें । बालविवाह रखना है। हम फोड़ेके मवादको दबानेकी कोशिश क्यों करते समाजके लिये अहितकर नहीं है यह किसी भी युक्ति और हैं. उसको निकालनेकी चेष्टा क्यों नहीं करें ? जब तक मवाद तक से साबित नहीं हो सकता। जिन बालक-बालिकाओंके सर . | सच्चाई और सदाजीवनकी कली खिलती भी नहीं है कि वह विवाह रूपी तेज़ चारकी स्थितिके लिए हम हमारे घरोंका और समाजका शताछुरीसे काट दी जाती है। जो बुद्धिहीन लोग अनाज आया वरण शुद्ध और साफ रक्खें, सदाचारकी शिक्षाका प्रचार करें, भी नहीं, और खेतको काट लेनेकी मन्शा रखते हैं, फल पका बालक-बालिकाओंको असंयमकी कुशिक्षासे बचावे और सदाभी नहीं, और उसे दरख्तसे तोड़ लेना चाहते हैं, मंजरी चारकी ओर अग्रसर होनेका उपदेश दें। गलतियाँको विवाह पानेसे पहिले ही फूल सौरभकी अाशा रखते हैं, मकान खड़ा की प्राइमें छिपाकर रखने और बढ़ानेमें कौनसी बुद्धिमानी है ? होनेके पहले ही, उसमें रहनेका सुख-स्वप्न देखते हैं, वे ही बुद्धिमानी इसमें है कि गलती हो ही नहीं और यदि होगई अपने सच्चोंका बचपनमें ब्याहकर एक स्वर्गीय-सुख लूटना है तो भविष्यमें सचेत रहा जाय । एक गलतीको छिपानेके चाहते हैं। समझमें नहीं पाता कि जीवनकी शुरुवात होनेके लिए गलतियोंके समुद्र में क्यों कूद पड़ें? इसलिए कि आज़ाद पहले ही उनके ऊपर विवाहका भारी बोम रखकर उनके होकर गलतियोंसे अठखेलियां करते रहें? चोरी तो करें जीवनको वे क्यों नहीं फलने-फूलने देना चाहते ! क्यों वे लेकिन अन्धेरेमें करें. उजालेमें नहीं ? अफसोस! उनके दर्लभ और श्रानन्दमय विद्यार्थी जीवनको कुचल देना और फिर एककी बदनामीका फल समाजके सब स्तम्भों चाहते हैं और क्यों उन स्वछन्द विहारी मुरारिके समवयस्क को क्यों मिले ? एक बदनामीसे बचनेके लिये हज़ारों बालकबालक-बालिकाओंको विवाहकी अंधेरी कोठरीमें लोहेके मि लाहक बालिकानोंका अमूल्य जीवन क्यों बरबाद किया जाय? मिलान किवाड़ोंसे बन्द कर देना चाहते हैं, और ऐसा कर कौनसा अगर घरके किसी एक कौनेमें पागकी चिनगारी सुलग गई पौकिक सुख देखना पसन्द करते हैं। है तो उसको बढ़नेसे रोकना चाहिए न कि घरभरमें आगकी ___बहुतसे लोग कहते हैं कि जन्द विवाह न करनेके कारण लपटें लगादी लाएँ । जिन बालक-बालिकाओंका समयसे अाजकलके लड़के-लड़की बिगड़ जाते हैं और समाजमें बद- पहले ही ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है, चाहे वह विवाहकी नामी होनेका डर रहता है इसलिये समाज और हमारे घरोंकी विडम्बनाके प्राइमें हुआ हो या विवाह के पहले हुआ हो, लाज रखनेके लिए लड़कियोंका तो विवाह दस-ग्यारह वर्षकी दुराचार ही है। भले ही उन दोनों में समाजके कानूनकी दृष्टि अवस्था तक कर ही देना चाहिए। ऐसा कहने वालोंको से एक पाप न हो और एक पाप हो किन्तु ईश्वर और न्याय विचारना चाहिए कि लड़कियोंका जल्द विवाह करके वे की दृष्टिमें वे दोनों ही एकसे पाप हैं और उसी पापके फलसे समाजको और इन चूने मिट्टीके घरोंको किस प्रशंसा और आज हमारा समाजरूपी शरीर गलित कोदकी गधिसे
SR No.527171
Book TitleAnekant 1941 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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