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________________ किरण २] समंतभद्रका मुनिजीवन और भापत्काल कारको दूर करनेवाले' । 'वसुपाल' शब्द सामा य अब देखना चाहिये, इतिहाससे 'शिवकोटि तौरसे ' राजा' का वाचक है और इस लिये उक्त कहाँका राजा सिद्ध होता है। जहाँ तक मैंने भारतके विशेषणसे यह मालूम होता है कि समंतभद्रस्वामीने प्राचीन इतिहासका, जो अब तक संकलित हुआ है, भी किसी राजा के भावांधकारको दूर किया है । परिशीलन किया है वह इस विषयमें मौन मालूम बहुत संभव है कि वह राजा 'शिवकोटि' ही हो, होता है-शिवकोटि नामके राजाकी उससे कोई और वही समंतभद्रका प्रधान शिष्य हुआ हो । इसके उपलब्धि नहीं होती-बनारसके तत्कालीन राजाओं सिवाय, 'वसु' शब्दका अर्थ 'शिव' और 'पाल' का तो उससे प्रायः कुछ भी पता नहीं चलता । का अर्थ 'राजा' भी होता है और इस तरहपर इतिहासकालके प्रारम्भमें ही-ईसवी सनसे करीब 'वसुपाल' से शिवकोटि राजाका अर्थ निकाला जा ६०० वर्ष पहले-बनारस, या काशी, की छोटी सकता है; परंतु यह कल्पना बहुत ही क्लिष्ट जान रियासत ' कोशल' राज्यमें मिला ली गई थी, और पड़ती है और इस लिये मैं इस पर अधिक जोर देना प्रकट रूपमें अपनी स्वाधीनताको खो चुकी थी। नहीं चाहता। इसके बाद, ईसासे पहलेकी चौथी शताब्दीमें, अजाब्रह्म नेमिदत्त के 'आराधना-कथाकोश' में तशत्रुकं द्वारा वह 'कोशल' गज्य भी 'मगध' भी · शिवकोटि' राजाका उल्लेख है-उसीके शिवा- राज्यमें शामिल कर लिया गया था, और उस वक्तसे लयमें शिवनैवेद्यसे । भस्मक' व्याधिकी शांति और उसका एक स्वतंत्र गज्यसत्ताके तौर पर कोई उल्लेख चंद्रप्रभ जिनेंद्रकी स्तुति पढ़ते समय जिनबिम्बकी नहीं मिलता + । संभवतः यही वजह है जो इस प्रादुभूतिका उल्लेख है। साथ ही, यह भी उल्लेख है छोटीसी परतंत्र रियासतके राजाओं अथवा रईसोंका कि शिवकोटि महाराजने जिनदीक्षा धारण की थी। कोई विशेष हाल उपलब्ध नहीं होता। रही कांचीके परंतु शिवकोटिका, 'कांची' अथवा 'नवतेलंग' राजाओंकी बात, इतिहासमें सबसे पहले वहाँके राजा देशका राजा न लिखकर, वाराणसी' (काशी- 'विष्णुगोप' (विष्णुगोप वर्मा) का नाम मिलता बनारस ) का राजा प्रकट किया है, यह भेद है ।। है, जो धर्मसे वैष्णव था और जिसे ईसवी सन् ३५० - के करीब — समुद्रगुप्त' ने युद्धमें परास्त किया था। * श्रीवर्द्धमानस्वामीने राजा श्रेणिकके भावान्धकारको दूर किया । इसके बाद ईसवी सन ४३७ में 'सिंहवर्मन् ' (बौद्ध) था। ब्रह्म नेमिदत्त भट्टारक मल्लिभूषणके शिष्य और विक्रमकी + V. A. Smith's Early History of १६ वीं शताब्दीके विद्वान् थे । अापने वि० सं० १५८५ में India, III Edition, p. 30-35. विन्सेंट ए. श्रीपालचरित्र बनाकर समाप्त किया है। आराधना कथा- स्मिथ साहबकी अली हिस्टरी श्राफइंडिया, तृतीयसंस्करण. कोश भी उसी वक्तके करीबका बना हुआ है। पृ० ३०-३५। + यथा-वाराणसी ततः प्राप्तः कुलघोषः समन्विताम् । शक सं० ३८० (ई० स० ४५८) में भी 'सिंहवर्मन् योगिलिंगं तथा तत्र गृहीत्वा पर्यटन्पुरे ॥१६॥ कांचीका राजा था और यह उसके राज्यका २२ वा वर्ष स योगी लीलया तत्र शिवकोटिमहीभुजा। था, ऐसा 'लोकविभाग' नामक दिगम्बर जैनग्रन्थसे मालूम कारितं शिवदेवोरुप्रासादं संविलोक्य च ॥२०॥ होता है। ..: .
SR No.527171
Book TitleAnekant 1941 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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