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अनेकान्त
[वर्ष ४
सु० १५ जालन्धर देशस्य नंदबनपुर में ) 'श्राचार ११ दत्त, १२ कीर्ति, १३ प्रिय, १४ प्रवर, १५ आनंद, दिनकर' नामक ग्रन्थमें विस्तारके साथ मिलता है। १६ निधि, १७ गज, १८ सुन्दर, १६ शेखर, २० अतः हम उस प्रन्थके एतद् सम्बन्धी आवश्यक वर्द्धन, २१ श्राकर, २२ हंस, २३ रत्न, २४ मेरु, अंशका सार नीचे दे देते हैं :
२५ मूर्ति, २६ सार, २७ भूषण, २८ धर्म, २६ केतु __ "प्राचीन कालमें साधु एवं सूरिपदके समय नाम (ध्वज), ३० पुण्डक (कमल), ३१ पुङ्गव, ३२ ज्ञान, परिवर्तन नहीं होते थे पर वर्तमानमें गच्छ संयोग- ३३ दर्शन, ३४ वीर, इत्यादि । वृद्धिके हेतु ऐसा किया जाता है।
सूरि, उपाध्याय, वाचनाचार्यों के नाम भी साधु१ योनि, २ वर्ग, ३ लभ्यालभ्य, ४ गण और वत् समझे । साध्वियों के नामों में पूर्वपद तो मुनियोंके ५ राशि भेदको ध्यानमें रखते हुए शुद्ध नाम देना समान ही समझे उत्तरपद इस प्रकार हैं:चाहिये । नाममें पूर्वपद एवं उत्तरपद इस प्रकारके १ मति, २ चूला, ३ प्रभा, ४ देवी, ५ लब्धि, दो पद होते हैं। उनमें मुनियोंके नामों में पूर्वपद ६ सिद्धि, ७ वती । प्रवर्तिनीके नाम भी इसी प्रकार निम्नोक्त रखे जा सकते हैं।
हैं। महत्तगके नामों में उत्तरपद 'श्री' रखना चा हये । ____१ शुभ, २ देव, ३ गुण, ४ आगम, ५ जिन, जिनकल्पीका नामान्त पद 'सेन' इतना विशेष ६ कीर्ति, ७ रमा (लक्ष्मी), ८ चन्द्र, ९शील, १० उदय, समझना चाहिये । (आगे ब्राह्मण क्षत्रियोंके नामोंक ११ धन, १२ विद्या, १३ विमल, १४ कल्याण, पद भी बतलाये हैं विशेषार्थियोंको भूलनाथका ४०वाँ १५ जीव, १६ मेघ, १७ दिवाकर, १८ मुनि, १९ उदय (पृ० ३८६-८९) देखना चाहिये )। त्रिभुवन, २० अंभोज (कमल), २१ सुधा, २२ तंज, खरतरगच्छमें इन नामान्त पदोंको वर्तमानमें २३ महा, २४ नृप, २५ दया, २६ भाव, २७ क्षमा, 'नांदि' या 'नंदी' कहते है और इनकी संख्या ८४ २८ सूर, २९ सुवर्ण, ३० मणि, ३१ कर्म, ३२ श्रानंद, संख्या * की विशेषता सूचक ८४ बतलाई जाती है। ३३ अनंत, ३४ धर्म, ३५ जय, ३६ देवेन्द्र (देव-इंद्र), विशेष खोज करनेपर खातग्गच्छीय श्रीपूज्य जिन-चा ३७ सागर, ३८ सिद्धि, ३६ शांति, ४० लब्धि, ४१ रित्र सूरिजीके दफ्तर एवं कई अन्य फुटकर पत्रों में इन बुद्धि, ४२ सहज, ४३ ज्ञान, ४४ दर्शन, ४५ चारित्र, ८४ नामान्त पदोंकी प्राप्ति हुई । उनमें संख्या गिननेक ४६ वीर, ४७ विजय, ४८ चारु, ४९ राम, ५० सिंह, लिये तो नम्बर ८४ थे पर कई पद तो दो तीन वार (मृगाधिप ।, ५१ मही, ५२ विशाल, ५३ विबुध, पुनरुक्ति रूपसे उनमें पाये गये, उन्हें अलग कर देने ५४ विनय, ५५ नय, ५६ सर्व, ५७ प्रबोध, ५८ रूप, पर संख्या ७८ के करीब ही रह गई, इसके पश्चात् ५९ गण, ६० मेरु, ६१ वर, ६२ जयंत, ६३ योग, हमने खरतरगच्छके मुनियोंके नामान्त पदोंकी, जो ६४ ताग ६५ कला, ६६ पृथ्वी, ६७ हरि, ६८ प्रिय। कि प्रयुक्त रूपसे पाये जाते हैं, खोज की तो कई मुनियोंके नामके अन्त्य पद ये हैं:
नामान्त पद नये ही उपलब्ध हुए। उन सबको यहां १ शशांक (चन्द्र), २ कुंभ, ३ शैल, ४ अब्धि. अक्षरानुक्रमसे नीचे दिये देते हैं:५ कुमार, ६ प्रभ, ७ वल्लभ, ८ सिंह, ९ कुंजर, १०देव, *इस संख्याके सम्बन्धमें एक स्वतंत्र लेख लिखनेका विचार है