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________________ ७२८ अनेकान्त पश्चात् कालीन दूसरा टीकाकार इस टीकाकारका उल्लेख करता है इससे हम इतना ही कह सकते हैं कि वह नचिनार म्किनियर से पूर्ववर्ती होना चाहिये । इस ग्रन्थकी महत्व पूर्ण टीकासे यह स्पष्ट है कि वह टीकाकार एक महान विद्वान हुआ होगा । वह गायन, नृत्यकला, तथा नाचशास्त्र के सिद्धान्तों में अत्यन्त निपुण था, यह बात इन विषयोंको स्पष्ट करने वाली टीकासे स्पष्ट विदित होती है इस नूपुर ( चरण भूषण) वाले महाकाव्य में दक्षिण भारतके इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले विद्वानोंके लिये बहुत कुछ ऐतिहासिक सामग्री विद्यमान है । कनका भाई पिल्ले के समय से जिन्होंने १८०० वर्ष पूर्वके तामिलजन" नामका ग्रंथ लिखा अब तक यही ग्रन्थ तामिल देशके अनुसंधानक छात्रों के परिज्ञान एवं पथप्रदर्शन के लिए कारण रहा है । सोलौन के नरेश गजवाहु बंजी राजधानी में राजकीय अतिथियोंमेंसे एक थे, यह बात ग्रन्थके कालनिर्णय के लिए मुख्य बताई गई है। बौद्ध ग्रन्थ महावंशके अनुसार ये गजबाहु ईसाकी दूसरी शताब्दी के कहे जाते हैं। इस बात के आधार पर आलोचकों का यह अभिमत है कि चेर-नरेश सेनगुट्टवन और उनके भाई ब्ल्लंगोबडिगल ईसाके लग भग १५० वर्ष पश्चात् हुए होंगे, अतः यह ग्रन्थ उसी कालका समझा जाना [ आश्विन, वीर निर्वाण सं० २४६६ चाहिये । इस बात पर सभी एक मत नहीं है, किंतु जो इस विषय में भिन्न मत हैं, वे महावंश में वर्जित गजवाहु द्वितीयके अनेक शताब्दी पीछेके काल में इसे खेंचते हैं। मिस्टर लोगन (Logan ) अपनी मलावार डिस्ट्रिक्ट मेनुअल में अनेक महत्वकी बातें बताते हैं जिनसे कि हिन्दू धर्मके प्रवेश से पहले मलावार में जैनियों का प्रभाव व्यक्त होता है चूंकि इस समय काल निणयकी बात में हमारी साक्षात रुचि नहीं है अतः हम इस बातको इतिहास के विद्वानों के लिए छोड़ते हैं । हमारी राय में इस ग्रन्थका द्वितीय शताब्दी वाले गजवाहुने सम्बन्ध स्थापित करने की बात सर्वथा असम्भव नहीं है । किन्तु हम एक महत्वपूर्ण बात पर जोर देना चाहते हैं । सम्पूर्ण ग्रन्थ में हम अहिंसा सम्बन्धी सिद्धान्तों का स्पष्टीकिरण एवं उस पर विशेष जोर से वर्णन पाते हैं तथा कहीं २ इस सिद्धान्त के अनुसार मन्दिर पूजाका भी उल्लेख पाया जाता है । इस समय के लगभग सम्पूर्ण तामिल देश में पुष्पों से पूजा प्रचलित थी । इसे "पुष्पकी" अर्थात् पुष्पोंसे बलि कहते हैं । 'बलि' शब्द तो यज्ञों में होने वाले बलिदानको बताता है और पुष्प बलिका अर्थ टीकाकार पुष्पों ईश्वर की पूजा करना बताते हैं ।
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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