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________________ अनेकान्त [आश्विन, वीर निर्वाण सं०२४६६ और इसलिये मैं आपका सबसे अधिक आभार उमे मिल कर उठा लेवें, अथ गा इसके संचालनके मानता हैं। इन सज्जनों में बा० सूरजभानजी वकोल लिये समाजका एक सुव्यवस्थित बोर्ड नियत हो पं नाथूरामजी 'प्रेमी', बा. जयभगवानजी वकील, जावे, जिम में यह पत्र मर्वथा पर नुराखपेक्षा न रहेपं० परमानन्दजी शास्त्री, न्यायाचार्य पं. महेन्द्र- किसीकी किसी भी कारणवश सहायताकं बन्द हो कुमारजी, बा० अगरचन्दजी नाहटा, पं.रतनलाल- जाने पर इसका जीवन खतरेमें न पड़ जाय और जो संघवी, भाई अयोध्याप्रसादजी गोयलीय, इमं अपना जीवन संकट टालने के लिये इ पं० भगवत्स्वरूपजी 'भगवत्', व्याकरणाचार्य पं० भटकना न पड़े इसे स्वावलम्बी बनन तथा घाटम वंशीधरजी, बा० माईदियालजी बी. ए., प्रो० मुक्त रहनेका पूरा प्रयत्न किया जाय और इसे जगदीशचन्दजी एम. ए., पं० कैलाशचन्दजो शास्त्री क्रमशः 'कल्याण' की कोटि का पत्र बनाया जाय । पंताराचन्दजी दर्शनशास्त्री और भाई बालमुकन्द- साथ ही, इमका प्रकाशन भी सम्पादनकी तरह जी पाटोदीके नाम खास तौरसे उल्लेख योग्य है। वीरसेवामन्दिर सरसावासे हो बराबर होता रहे, आशा है ये सब सज्जन ागेको इससे भी अधिक जो इसके लिये उपयक्त तथा गौरवका स्थान है । उत्साहके साथ 'अनेकान्त' की सेवा में तत्परर हेंगे, समाजकी माली हालत.धर्म कार्यों में उसके व्यय और और दूसरे सुलेखक भी आपका अनुकरण करेंगे। उसके श्रीमानोंकी उदार परिणतिको देखते हुए यह २ अनेकान्तका आगामी प्रकाशन सब उसके लिये कुछ भी नहीं है। सिर्फ थोडासा 'अनेकान्त' की गत ११ वी किरणमें व्यवस्थापक योग इस तरफ देने-दिलाने की जरूरत है, जिसके अनेकान्तने जो सूचना निकाली थी उसके अनुसार इस लिये अनेकान्तके प्रेमियोंको खासतौरसे प्रयत्न कियाबाद में अनेकान्तका देहलीसे प्रकाशन बन्द हो करना चाहिये । मेरो रायमें बोड जैसी किपी बड़ा रहा है। श्रतः इस पत्रके आगामी प्रकाशनकी एक स्कीमसे पहले 'अनेकान्तके कुछ सहायक बनाए बड़ी समस्या सामने है । व्यवस्थापकजीकी सूचनाको जावें और उनके १००), ५०) तथा २५) के तीन पढ़कर मेरे पास पं० मुन्नालाल जी जैन वैद्य मलकापुर ग्रेड रक्खे जाएँ । कमसे कम १५ सज्जन सौसौकी (बरार) का एक पत्र अाया है, जिसमें उन्होंने २० सज्जन पचास पचासकी और २० सज्जन 'अनेकांत' के संचालन और उसके घाटेके भारको पच्चीस पञ्चीस रुपएकी सहायता करने वाले यदि उठाने के लिये अपने को पेश किया है और लिखा है कि मिल जाएँ तो अनेकान्त कुछ वर्षों के लिए घाटेकी स्वीकारता मिलने पर वे अपने श्रीमहावीर प्रिटिंग चिन्तासे मुक्त हो सकता है और इस असेंमें वह प्रेसमें अनेकान्त के योग्य नये टाइपों आदिकी व्यवस्था फिर अपने पैरों पर भी आप खड़ा हो सकता है । कर दगे और पत्रका सुन्दरता तथा शुद्धताक साथ यदिइस किरणके प्रकाशित.होनस १५दिन के भीतर छापकर प्रकाशित करनका पूरा प्रयत्न करेंगे । इस १५ नवम्बर तक मुझे ऐसे सहायकोंकी ओरसे प्रशंसनीय उत्साह के लिये आप निःसन्देह धन्यवादके एक हजार रुपयकी सहायताके वचन भी मिल गये पात्र हैं । अस्तु, अभी आपसे पत्रव्यवहार चल रहा है, तो मैं वीरसेवामन्दिर से ही अनेकान्तके चौथे कुछ समस्याएं हल होनेको बाकी हैं, जैसा कुछ अन्तिम वषका प्रकाशन शुरु कर दूंगा। आशा है अनेकान्त निर्णय होगा उसकी सूचना निकाली जायगी। के प्रेमी इस विषयकी महत्ताका अनुभव करते हुए ३ मेरी आन्तरिक इच्छा शीघ्र ही इस ओर योग देन-दिलानमें पेशकदमी मेरी आन्तरिक इच्छा तो यह है कि 'अनेकान्त' करेंगें और मुझे अपनी सहायताके वचनसे शीघ्र के घाटेका भार समाजके किसी एक व्यक्ति पर न ही सूचित करने की कृपा करेंगे। रक्खा जाय, बल्कि समाजके कुछ उदार सज्जन
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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