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________________ ६२० अनेकान्त [श्राडण, वीरनिर्वाण सं०२४६६ अहिंसाकी साधना वीरके शस्त्र के रूपमें करनी है। ही नहीं था, उन्हें कानून-भंग बतलाया । उनसे बात बहुत बड़ी है। हम यह न समझे कि हमें मुझे कहना चाहिये था कि आज तक सरकार के जेल जानेकी शक्ति बढ़ानी है। हमें तो यह बताना दण्ड के भयसे जो किया, वह पहले अपनी इच्छासे है कि रचनात्मक कार्यक्रम स्वराज्यका अविभाज्य करो। तब तुम्हें कानून-भंगका अधिकार प्राप्त होगा। अंग है । हमने यह नहीं समझा कि चरखा हमें ईश्वरने मुझे ही क्यों चुना? स्वराज्य देगा। 'गाँधी कहता है इसलिए चरखा ___ वह सारी अधूरी अहिंसा थी। मेरा उसमें चला लो, उससे गरीबको थोड़ा सा धन मिलता डरपोकपव था। मैं अपने साथियोंको नाराज नहीं है'-यही हमारी वृत्ति रही । अब आपमें यह करना चाहता था। साथियोंके डरसे कुछ करनेसे सिद्ध करने की शक्ति आनी चाहिये कि रचनात्मक हिचकना हिंसा है। उसमें असत्य भरा है। मोती कार्य ही स्वराज्य दे सकता है। इसका मतलब यह लालजी, बल्लभभाई और दूसरे लोग नाराज हो नही है कि आप रोज थोड़ासा, कात लें, दो चार जायेंगे; यह डर मुझे क्यों रहा ? ये सब मेरी त्रुटियाँ मुसलमानोंके साथ दोस्ती करलें, अछूतोंसे मिलने थीं। उन्हें मैं तटस्थ होकर देखता हूँ। उनका जुलने लगे और समझे कि अब हम स्वराज्यकी लड़ाई के लायक बन गये । आपको तो यही मानना प्रत्यक्ष दर्शन करता हूँ; क्योंकि मुझमें अनासक्ति चाहिये कि रचनात्मक कार्यक्रममें ही स्वराज्य देने " है। उन त्रुटियोंके लिये न तो मुझे दुख है, न पश्चाताप । जिस प्रकार मैं अपनी सफलता और की शक्ति है । रचनात्मक कार्यक्रमके बाद लड़ाई शक्ति परमात्माकी ही देन समझता हूँ, उसीको करनी है । ऐसी मान्यता आपकी नहीं हो सकती। अर्पण करता हूँ, उसी प्रकार अपने दोष भी उस कार्य-क्रममें ही स्वराज्यकी ताक़त है। भगवानके ही चरणोंमें रखता हूँ । ईश्वरने मुझ मैंने उल्टा प्रयोग कराया जैसे अपूर्ण मनुष्यको इतने बड़े प्रयोगके लिये क्यों मैंने अहिंसाका प्रयोग इस देशमें उलटा किया। चुना ? मैं अहंकारसे नहीं कहता । लेकिन मुझे दरअसल तो यह चाहिये था कि रचनात्मक कार्य विश्वास है कि परमात्माको गरीबोंमें कुछ काम क्रमसे शुरू करता। लेकिन मैंने पहले सविनय भंग लेना था, इसलिये उसने मुझे चुन लिया । मुझसे और असहयोगका, जेल जानेका कार्यक्रम रक्खा । मैंने लोगोंको यह नहीं समझाया कि ये तो बाद में अधिक पूर्ण पुरुष होता तो शायद इतना काम न आने वाली चीज़ है । इसलिये वे आन्दोलन कर सकता । पूर्ण मनुष्यको हिन्दुस्तानी शायद पहचान भी न सकता। वह बेचारा विरक्त होकर कामयाब न हो सके। गुफामें चला जाता । इसलिए ईश्वरने मुझ जैसे कानून-भंगका अधिकार अशक्त और अपूर्ण मनुष्यको ही इस देशके लायक मुझे नडियादका किस्सा याद आता है । समझा । अब मेरे बाद जो आयेगा, वह पूर्ण पुरुष रौलेट एक्ट सत्याग्रहके वक्तकी बात है । वहीं मैंने होगा । मैं कहता यह हूं कि वह पूर्ण पुरुष आप कबूल कर लिया था कि मेरी हिमालय जैसी भूल बनें । मेरी अपूर्णताओंको पूरा करें। हुई। जिन्होंने ज्ञानपूर्वक कानूनका पालन किया
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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