SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१८ अनेकान्त [श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६६ अहिंसा ही मेरा बल है असाधारण थे; रावण भी उनका असाधारण . शत्रु था। मझमें अहिंसाकी अपूर्ण शक्ति है, यह मैं हिटलरकी एकाग्रता जानता हूँ; लेकिन जो कुछ शक्ति है वह अहिंसाकी मेरे नजदीक तो वह सारी काल्पनिक कथा ही है । लाखों लोग मेरे पास आते हैं । प्रेमसे मुझे है। लेकिन उसमें सच्चा शिक्षण भरा पड़ा है। अपनाते हैं । औरतें निर्भय होकर मेरे पास रह हिटलर अपनी साधनामें निरन्तर जाग्रत है । उसके सकती है। मेरे पास ऐसी कौनसी चीज़ है ? केवल जीवनमें दसरी चीजके लिये स्थान ही नहीं रहा अहिंसाकी शक्ति है; और कुछ नहीं। अहिंसाकी है। करीब करीब चौबीस घंटे जागता है । उसका यह शक्ति एक नयी नीतिक रूपमें मैं जगतको देना एक क्षण भी दूसरे काममें नहीं जाता। उसने ऐसे चाहता हूँ। उसको सिद्ध करने के लिये हम क्या कर ऐसे शोध किये कि उन्हें देखकर ये लोग दिमूढ़ रहे हैं इसका हिसाब हमें अभी दुनियाको देना रह जाते हैं। उसके टैंक आकाशमें चलते हैं और बाकी है। दुनियामें आज जो शक्ति प्रकट हो रही पानीमें भी चलते हैं । देखकर ये लोग दंग रह है, उसके सामने मैं हारूँगा नहीं । लेकिन हमें जाते हैं । उसने ऐसी बातें कर दिखाई जो इनके सचाई और सावधानीसे काम लेना होगा; नहीं ख्वाबमें भी नहीं थी। वह कितनी साधना कर तो हम हार जायेंगे। सकता है,चौबीस घंटे परिश्रम करने पर भी अपनी हिटलरकी शक्तिका रहस्य बुद्धि तीव्र रख सकता है । मैं पूछता हूँ, हमारी बुद्धि हम अपनी सारी शक्ति अहिंसाकी साधनामें कहाँ है ? हम जड़वत् क्यों हैं, कोई हमसे सवाल नहीं लगायेंगे, तो हम जीत नहीं सकते । हिटलरको पूछता है तो हमारी बुद्धि कुंठित क्यों होजाती है ? . देखिये । जिस चीजको वह मानता है, उसमें अपने हमारी बुद्धिमें तेजी हो सारे जीवन की शक्ति लगा देता है । पूरे दिल और मैं यह नहीं कहता कि हम वाद-विवाद करें। पूरी श्रद्धासे उसीमें लगा रहता है । इमलिये मैं केवल वाद विवाद में तो हम हारेंगे ही। हमें तो हिटलरको महापुरुष मानता हूँ। उसके लिये मेरे श्रद्धायुक्त बुद्धिकी शक्ति बतानी है । इसीका नाम मनमें काफी क़द्र है। वह शक्तिमान पुरुष है। आज शक्ति है । अहिंसाका अर्थ केवल चरखा चलाना राक्षस होगया है । जो जीमें आता है, सो करता नहीं है । उसमें भक्ति होनी चाहिये । अगर भक्तिके है; निरंकुश है। लेकिन हमें उसके गुणों को देखना बाद हमारी बुद्धि तेजस्वी नहीं हुई, तो मान लेना चाहिये । उसकी शक्ति के रहस्यको पकड़ना चाहिये। चाहिये कि हमारी भक्तिमें त्रुटि है। हिटलरकी तुलसीदासजीने यह बात हमें सिखाई है। उन्होंने विद्याके लिये अगर बुद्धिका उपयोग है, तो हमारी रावणकी भी स्तुतिकी है। मेरे दिल में रावणके लिये विद्याके लिये बुद्धिका उससे कई गुना उपयोग है। भी आदर है । अगर रावण महापुरुष न होता, तो हम यह न समझे कि अहिंसाके विकासमें बुद्धिका रामचन्द्र जीका शत्रु नहीं हो सकता था । रामचन्द्र उपयोग ही नहीं है ।
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy