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________________ ६१२ अनेकान्त [श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६६ हमारा काम तो निपट गया लेकिन उसमें से एक कमजोर हो जाने पर गुण्डोंको मौका मिलेगा। अनुभव मिला । आज तक हमने जो किया, वह चोर हैं, डाकू हैं, वे हमारे घरों पर हमला करेंगे। डरके मारे किया । इसलिये सफलता नहीं मिली। हमारी लड़कियों पर आक्रमण करेंगे । अगर परन्तु हमारा हेतु शुद्ध था । इसलिमे अब भगवान हमारी अहिंसा बलवान की है, तो हम उन पर ने हमें बचा लिया। ग़लत नीतिको सही समझ कर क्रोध नहीं करेंगे। वे हमें पत्थर मारेंगे, गालियाँ हमने अधिकार-ग्रहण भी किया। वहां भी अहिंसा देंगे, तो भी हमें उनके प्रति दया रखनी चाहिये । की परीक्षा उतीर्ण नहीं हुये। तभीसे मुझे तो हम तो यही कहें कि ये पागलपनमें ऐसा कर रहे विश्वास हो गया था कि हमें अधिकार-पदोंका हैं। हमें उनके प्रति द्वेष न रखते हुए उन पर दया त्याग करना ही होगा। भगवान्ने हमारी लाज करनी चाहिये और मर जाना चाहिए। जब तक रख ली । कभी-न-कभी हमें अधिकार-त्याग तो हम जिन्दा हैं, वे एक भी लड़कीको हाथ न लगा करना ही था। भगवानने हमें निमित्त दे दिया। सकें। इसी प्रयत्नमें हमें मरना है । किसीने हमको वहांसे निकाला नहीं। हममेंसे वर्किङ्ग कमेटीकी स्थिति बहुतेरोंके दिलोंमें अधिकारका मोह हो गया था। ____ इस प्रकार चार, डाकू ओर आतताया हमला कुछ लोगोंको थोड़ासा पैसा भी मिल जाता था। करें तो लोग अपना रक्षण किस प्रकार करें, यह लेकिन काँग्रेसका हुक्म होते ही सब छोड़कर अलग र प्रश्न आया । काँग्रेसके महाजनों (हाई कमाण्ड) ने हो गये । साँप जैसे अपनी केंचली फेंक देता है देखा कि शान्ति-ना तो बन नहीं सकती । फिर उसी तरह फेंककर अलग होगये । मान लिया कि कांग्रेस लोगांको क्या आदेश दे ? क्या कांग्रेस ये अधिकार-पद निकम्मे हैं, क्योंकि हमारे वहाँ मिट जाय ? इसलिए उन्होंने वह कल वाला बैठे रहने पर भी सरकारने हमें लड़ाईमें शरीक प्रस्ताव किया । उन्होंने समझा कि सम्पूर्ण अहिंसा कर दिया, और हमें उसका पता भी नहीं चला। का प्रयोग देशकी शक्ति के बाहर है। देश को फौज भगवान्ने ही लाज रखी, क्योंकि हम वहाँ रहते की जरूरत है। तो हमारी दुर्बलताका प्रदर्शन हो जाता। मेरे पास भी हमेशा पत्र आते हैं कि 'अन्धाशुद्ध अहिंसक प्रयोगका मौका धंध होने वाली है। तुम राष्ट्रीय सेना बनाओ, और उसके लिये लोगोंको भर्ती करो'। लेकिन मैं आज यह दूसरा मौक़ा आया । यूरोपमें महा यह नहीं कर सकता। युद्ध शुरू हो गया। जगतको बलवान अहिंसाका . । मेरी स्थिति प्रयोग दिखानेका मौका आया । यह हमारी परीक्षा में का समय है। हम उसमें उत्तीर्ण नहीं हुए। आज मैंने तो अहिंसाकी ही साधना की है। मैं डरदेशको बाह्य आक्रमणसे डर नहीं है । मेरा खयाल पोक या और कुछ भले ही होऊँ; लेकिन दूसरी है कि बाह्य आक्रमण नहीं होगा। लेकिन सल्तनत साधना नहीं कर सकता। पचास वर्ष तक मैंने
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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