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________________ अनेकान्स [श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६ 'वीरोंकी अहिंसा' शीर्षक भाषणकी ओर आकर्षित आशा है । प्रश्न इस प्रकार हैंकरते हैं (यह भाषण भनेकान्तकी इसी किरण में अन्यत्र १-जैनधर्मके अनुसार अहिंसाकी क्या व्याख्या है ? प्रकाशित है) जिसमें अहिंसाकी व्यापक और विशद,पर भापकी रायमें क्या भाज जो व्याख्या की जाती है, साथ ही सुगम व्याख्या की गयी है। वह उससे मित्र है ? आपकी सम्मतिमें अहिंसा ___आज भारतवर्ष ही नहीं, सारे संसारका ध्यान की पूर्ण व्याख्या क्या है? अहिंसाके सिद्धान्तकी ओर गया है। ऐसे अवसर पर २-क्या यह सम्भव है कि बाहरके आक्रमण या अहिंसाको परमधर्म मानने वाले हम जैनोंका एक अन्दरूनी झगड़ों, (जैसे हिन्दु-मुस्लिम दंगे, या विशेष उत्तरदायित्व हो गया है । हजारों वर्षोंसे- बूट मार ) से बिना हथियारों या फौजके अहिंसापरंपरासे हम अहिंसाधर्मकी घोषणा करते रहें हैं और स्मक ढंगसे देशकी रक्षा हो सकती है ? उसके लिये बहुतसे कष्ट भी सहे हैं । इसलिये आज ३-यदि ऐसा नहीं तो क्या आपकी रायमें अहिंसा जब अहिंसाके सिद्धान्तकी परीक्षाका और उसके विकास जीवनका सर्वव्यापी सिद्धान्त नहीं हो सकता ? का समय भाया है, तब हमारा कर्त्तव्य हो जाता है ४-अहिंसात्मक ढंगसे देशकी रखाका प्रश्न हल हो कि हम इसकी प्रतिष्ठामें अपना सहयोग दें और स्पष्ट सकता है, तो किस तरीकेसे और क्यों कर ? तौर पर अपना मत दें । हम समझते हैं कि और कुछ ५-आपकी जानमें क्या जैनशास्त्रों या साहित्यमें न कर सकें तो अहिंसाकी सैद्धान्तिक चर्चा में तो हम ऐसे कोई उदाहरण हैं जब देश या राज्यकी रक्षाके अधिकारसे बोल ही सकते हैं। यदि हम आज इस लिये अहिंसात्मक उपाय काममें लाये गये हों। प्रश्नकी चर्चा में संसारके सामने वास्तवमें कुछ स्पष्ट ६--क्या भापकी जानमें शास्त्रों में ऐसे भी उदाहरण हैं और निश्चित राय रख सकें तो अहिंसाधर्मके प्रचारमें जब देश या धमकी रक्षाका प्रश्न उपस्थित होने थोडासा हाथ बँटा सकनेके पुण्यके भागी भी हो सकेंगे। पर जैनाचार्योंने हिंसासे रक्षा करनेका आदेश इन सब बातोंको ध्यानमें रखकर हम नीचे लिखे दिया हो या आयोजन किया हो। कुछ प्रश्नों पर आपकी स्पष्ट और निश्चित राय चाहते हम आशा करते हैं कि जैसा भी हो, संक्षेपमें या हैं और आशा करते हैं कि आप हमें जितनी जल्दी हो विस्तारसे भाप अपना उत्तर शीघ्र ही भेजनेकी कृपा सके, अपने उत्तरसे कृतार्थ करेंगे। हम यह पत्र सभी करेंगे । हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि इस प्रश्नकी जैनसम्प्रदायोंके प्राचार्य, प्रख्यात् साधु, आगेवान चर्चा उठानेमें हमारा एक मात्र उद्देश्य अहिंसाके प्रचार श्रावक तथा जैनपत्रों के सम्पादकोंके पास भेज रहे हैं में तथा उनके प्रयोके बीचमें आई हुई बाधाओं को दूर और चाहते हैं कि पYषणपर्व तक सब उत्तरोंका करने में जितना हो सके उतना सहयोग देनेका है। संकलन करके प्रकाशित करें । यदि हमारी जानकारी बिनीत न होनेसे या भूलसे किन्हीं महानुभावके पास यह पत्र ४८, इंडियन मिररस्ट्रीट विजयसिंह नाहर खास तौरसे न पहुँचे तो भी यह उनकी नजरमें आने कलकत्ता सिद्धराज उड्डा पर वह अपना मत इस पर प्रकट करेंगे, ऐसी हमें भंवरमल सिंधी
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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