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________________ तामिल भाषाका जैनसाहित्य [ले० प्रोफेसर ए. चक्रवर्ती एम ए पाई. ई. एस.] [अनुवादक-पं० सुमेरचन्द दिवाकर न्यायतीर्थ शास्त्री बी.ए. एलएस. बी. सिवनी ] टोल्काप्पियम्-तामिल व्याकरणका यह प्रामा- समर्थित हुअा था । डा० पर्नेलका मत है कि णिक ग्रंथ एक जैन विद्वानकी रचना समझा जाता हैं। टोलकाप्पियम्का रचयिता जैन या बोद्ध था और यह इस विषयमें कुछ विद्वानोंका विवाद है और लेखकके निर्विवाद हैं कि वह प्राचीन तामिल लेखकोंमें अन्यतम धर्मके सम्बन्धमें बहुतसे विचार किये जाते है । हम है । उसी भूमिकामें टोलकाप्पियम्का महान् और केवल अंतरंग साक्षीमूल कुछ बातोंका वर्णन करेंगे और प्रख्यात पाडिमयोनके रूपमें उल्लेख हैं। टीकाकारने इस विषयको पाठकों पर उनके अपने निर्णय के लिये पाडिमयोन शब्दका इस प्रकार अर्थ किया है--"वह छोड़ेंगे । यद्यपि यह व्याकरणका ग्रंथ है, किन्तु श्रादि व्यक्ति जो तपस्या करे"। जैन साहित्य अध्ययन-कर्ताओं तामिल वासियोंकी समाज-विज्ञान विषयक वार्ताओंकी -विद्यार्थियोंको यह भलीभांति विदित है कि 'प्रतिमा यह खान है, और शोध-खोजके विद्वान आदि तामिल योग' एक जैन पारिभाषिक शब्द है और कुछ जैन मुनि वासियों के व्यवहारों तथा रिवाजोंकी जानकारीके लिये प्रधान योगधारी कहे जाते थे । इस श्राधार पर एस. मुख्यतया इसी ग्रंथ पर अवलबित रहते हैं । ऐतिहासिक वायपुरी पिल्ले सदृश विद्वान अनुमान करते हैं कि शोधके विद्यार्थियोंने इससे पूर्णतया लाभ नहीं उठाया टोलकाप्पियम् का रचयिता जैनधर्मावलम्बी था। वही है यह एन्द्र के समान पुरातन व्याकरण शास्त्रों पर अव- लेखक टोलकाप्पियम्के उन सूत्रोंका उद्धरण देकर लंक्ति समझा जाता है । जो प्राय संस्कृत-व्याकरणकी अपने निष्कर्ष को दृढ़ बनाता है जिनमें जीवोंके द्वारा शौलीका उल्लेख करता है । यह व्याकरण विषय पर एक धारण की गई इन्द्रियों के आधार पर जीवों के विभागका प्रमाणिक ग्रंथ समझा जाता है। तामिल भाषाके पिछले उल्लेख है। मरबियल विभागमें टोलकाप्पियमने घास सभी ग्रन्थकार उसमें वर्णित लेखन-सम्बन्धी नियमोंका और वृत्तके समान जीवोंको, एकेन्द्रिय घोंघे के समान पूर्ण श्रद्धाके साथ पालन करते हैं । इस ग्रन्थके निर्माता, जीवोंको, द्वाइन्द्रिय चींटीके समान जीवोंको त्रीइन्द्रिय टोलकाप्पियम्, तामिल साहित्य के काल्पनिक संस्थापक केकड़े ( Crab) के सदृश जीवोंको चौइन्द्रिय बड़े अगस्त्य के शिष्य समझे जाते थे। इस ग्रन्थमें तत्कालीन प्राणियों के समान जीवोंको पंचेन्द्रिय और मनुष्य के समान ग्रंथकार पनपारनार लिखित भूमिका है। उससे प्रमाणित जीवोंको छः इन्द्री बताया है । यह विज्ञान के जैन होता है कि 'आइंदिरम् निरैनीका टोलकाप्पियम्,' ऐन्द्र दार्शनिक सिद्धान्तका रूप है इसे बताना तथा इस पर व्याकरणकी पद्धति परिपूर्ण टोलकाप्पियम् पाड्य राजा जोर देना मेरे लिये आवश्यक नहीं है । जीवोंका यह की सभामें पढ़ा गया था और अदकोहाशानके द्वारा विभाग संस्कृत और तामिल भाषाके जैन तत्व ज्ञानके
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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