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अनेकान्त
[ श्रावण, वीर निर्वाण सं० २४६६
तरह२ की कथा कहानी जो पढ़ने में नाई, वे सब घटनायें मेरे भाग्यने ही तो पुराने ज़मानेंमे कराई होंगी, जिससे वे पुस्तकों में लिखी जावें और मेरे पढ़ने में आवें । अब भी जो जो मामले दुनियाँ में होते हैं और समाचार पत्रों में छपकर मेरे पढ़ने में आते हैं या लोगबागोंसे सुनने में आते हैं वे सब मामले मेरा भाग्य ही तो दुनियाँ भरमें कराता रहता है, जिससे वे छपकर मेरे पढ़ने में आवें या लोगोंकी ज़बानी सुने जावें ।
जो
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कि मेरे खोटे भाग्य से ही पड़ौसीकी मौत हुई, जिससे रोनेका शोर उठा और मेरी नींद टूटी। मैं फिर सो गया और फिर एक भारी शोरके सबब जागना पड़ा; मालूम हुआ कि किसीके यहाँ चोरी होगई तब यह चोरी भी तो मेरे ही भाग्यने कराई जिससे शोर उठ कर मुझे जागना पड़ा । कई घार मैं देश-विदेश घूमने के लिये गया हूँ । मोटर या रेलमें सफ़र करते हुए भी मुसाफिर मुझे मिलते रहे हैं, उनको मेरा भाग्य ही कहीं कहींसे खींच लाकर सफ़र में मुझे मिलाता रहा कोई उतरता है, कोई चढ़ता है, कोई उठता है, कोई बैठता है, कोई सोता है कोई जागता है, कोई हँसता है, कोई रोता है, कोई लड़ता है कोई झगड़ता है, यह सब कर्तव्य भी मेरा भाग्य ही उनसे मेरे दिखाने के वास्ते कराता रहा है। रेलमें बैठे हुए पहाड़ जंगल नदी-नाले, बाग़ बगीचे, खेत और मकान, उनमें काम करते हुए स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, ढोर-डंगर, जंगलोंमें फिरते हुए तरह तरहके जंगली जानवर और उड़ते हुए पक्षी और भी जो जो दृश्य देखने में श्राये, वे सब मेरे ही भाग्यने मेरें देखने के वास्ते पहले से जुटा रखे थे ।
फिर जिन जिन नगरोंमें मैं घूमता फिरा हूँ, वहाँके महल, मकान और दुकान, श्रौर भी जो जो मनमनभावनी वस्तु वहाँ देखने में श्राई, वे सब मेरे भाग्य नेही तो वहाँ मेरे दिखाने के वास्ते पहले ही बना रखी थीं। ग़रज़ कहाँ तक कहूँ, उम्र भर जो कुछ मेरी
खोंने देखा या कानों ने सुना, वह सब मेरे दिखाने या सुनाने के वास्ते मेरे भाग्यने ही किया और संसार के जीवों और जीव पदार्थोंसे कराया । सच तो यह है कि बीते हुए ज़माने की जो जो बातें पुस्तकों में पढ़ने में
ई राज पलटे, लड़ाइयाँ हुई, रामका बनवास, सीता का हरण, रावण से युद्ध, महाभारतकी लड़ाई और भी
इस प्रकार यदि कोई पुरुष दुनियां भरका सारा काम अपने ही भाग्यसे होता रहना ठहराने लगे, यहाँ तक कि लाखों करोड़ों वर्ष पहले भी दुनियाका जो वृतान्त पुस्तकों में पढ़ने में आता है, उसको भी अपने ही भाग्यसे हुआ बताने लगे, तो क्या उसकी यह बात मानने लायक हो सकती है, या एक मात्र पाग़ल की बरड़ ठहरती है ।
इस तरह तो हर एक शख्स संसारकी समस्त रचनाओं और घटनाओं के साथ अपने भाग्यका सम्बन्ध जोड़ सकता है और उन सबका अपने भाग्यसे ही होना बतला सकता है; तब किसी भी एकके भाग्यसे उन सबके होने का कोई नियम नहीं बन सकता और न जीव जीव पदार्थों का कोई स्वतंत्र अस्तित्व या व्यक्तित्व ही रह सकता है ।
आकस्मिक संयोग कैसे मिल जाते हैं।
कहावत प्रसिद्ध है कि एक बैलगाड़ी चली जा रही थी । धूपकी गर्मीसे बचने के वास्ते एक कुत्ता भी उस गाड़ीके नीचे २ चलने लगा । चलते २ वह यह भूल गया कि गाड़ी अपनी ताकत से चल रही है. और मैं अपनी ताक़तसे, न गाड़ी मेरी ताक्कतसे चल रही है श्रौर न मैं गाड़ीकी ताकतसे, किन्तु गाड़ीके