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________________ वर्ष ३, किरण ८.१] गोम्मटसार-कर्मकाण्डकी त्रुटि-पूर्ति अपने कर्मकाण्डको ऐसा त्रुटि-पूर्ण बनाया होगा, नहीं पाई जाती और जिन्हें यथास्थान जोड़ देनेसे खासकर ऐसी हालतमें जब कि उनका जीवकाण्ड कर्मकांडका सारा अधूरापन दूर होकर सब कुछ बहुत ही सुसंगत और सुव्यवस्थित जान पड़ता है, सुसम्बद्ध हो जाता है। शेष ८४ गाथाएँ उसमें अवश्य ही इसमें लेखकोंकी कृपासे कुछ गाथाएँ पहलेसे ही मौजूद हैं । इन ७५ गाथाओंमें ७० छूट गई हैं। गाथाएँ तो कर्मकांडके उक्त प्रकृति समुत्कीर्तन हालमें मुझे आचार्य नेमिचन्द्र के 'कर्म प्रकृति अधिकारमें उपयुक्त बैठती हैं और शेष ५ गाथाएँ नामक एक दूसरे प्रन्थका पता चला और इससे । कर्मकाण्डकी ८०८ नंबरकी गाथाके बाद होनी उसको देखने के लिये मेरी इच्छा बलवती हो चाहियें, क्योंकि इन ५ गाथाओं के बाद कर्मप्रकृति उठी। प्रयत्न करने पर पारा जैनसिद्धान्त भवन में जो दो गाथाएँ और दी हैं वे उक्त काण्डमें के अध्यक्ष पं० के. भुजबलीजी शास्त्रीके सौजन्यसे ८०९ और ८१० नम्बर पर पाई जाती हैं। मुझे इस ग्रन्थकी एक दस पत्रात्मक प्रतिकी प्राप्ति अब वे ७५ गाथाएँ कौनसी हैं और उनमें से हुई, जो विक्रम संवत् १६६९ की लिखी हुई है। कौन कौन गाथा कर्मकाण्डमें कहाँ पर ठीक बैठती इसमें कुल गाथाएँ १५९ हैं, परन्तु लिपिकर्ताने हैं उसे क्रमशः बतलाया जाता हैगाथाओंकी संख्या १६४ दी है जो कुछ गाथाओं कर्मकाण्डके 'प्रकृति समुत्कीर्तन' नामक प्रथम पर ग़लत अंक पड़ जानेका परिणाम जान पड़ता अधिकारमें मंगलाचरणसे लेकर १५ नं० तक जो है, और यह भी हो सकता है कि ५ गाथाएँ गाथाएँ हैं वे सब 'कर्म प्रकृतिमें भी ज्योंकी त्यों लिखनेसे छूट गई हों, जिसका पता दूसरी प्रतियों पाई जाती हैं और यह बात दोनोंके एक ही प्रकरण के सामने आनेसे ही चल सकता है, अस्तु । होनेको सूचित करती है। १५वीं गाथामें सप्तभंगों इस ग्रन्थ-प्रतिको देखने और कर्मकाण्डके द्वारा पदार्थों के श्रद्धानकी बात कही गई है, परन्तु साथ उसकी तुलना करनेसे मेरे आनन्दका पार वे सप्तभंग कौनसे हैं यह कर्मकाण्डसे मालूम नहीं नहीं रहा, क्योंकि मैंने जिन त्रुटियोंकी कल्पना की होता, कर्म प्रकृतिमें उनको सूचक निम्न गाथा दी थी वह सब ठीक निकली और उनकी पूर्तिका है जो १६वें नम्बर पर ठीक जान पड़ती है - मझे सहज ही मार्ग मिल गया । इस प्रकरण ग्रंथ सिवनस्थि णत्थि उभयं अव्वतव्वं पुणो वि तत्तियं । परसे कर्मकाण्डका वह सब अधूरापन और असं- दव्वं ख सत्तभंगं श्रादेसवसेण संभवदि ॥१६॥ गतपन दूर हो जाता है जो अर्सेसे विद्वानोंको खटक रहा है । इस 'कर्म प्रकृति' प्रकरणकी १५९ - कर्मकाण्डकी २० नं०की गाथाके बाद, जिसका गाथाओंमेंसे ७५ गाथाएँ ऐसी हैं जो उक्त काण्डमें नं० एक गाथाके बढ़ जानेके कारण २१ हो जाता है, कर्म प्रकृति में निम्न पाँच गाथाएँ और दी हैं, * 'ऐलक पन्नालाल सरस्वति भवन' बम्बईमें भी इस जिनमें कर्म बंधका विशेष एवं संगत वर्णन पाया ग्रन्थकी एक प्रति है। जाता है:
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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