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________________ वर्ष ३, किरण -8 ] दिखाई दी । उदासीनता घटी, चिन्तामें कमी हुई, साहसने फिर उद्योगशीलताकी बाँह पकड़ी। चार दिन में खून आना बन्द हो गया । पिताजीको भी अपने जीवनकी आशा होने लगी, और उन्होंने अब उस घास-फूसको 'जीवन मूरि' कहना शुरू किया । बावली घास पुड़िया की आठ खुराकें चार दिनमें खतम हो गई । मैं ताँगा लेकर पटवारीजीके पास पहुँचा, २१) रु० और कुछ मिठाई उनके आगे रखकर निवेदन किया"दीवानजी अब पिताजी अच्छे हैं। खून बन्द हो गया है, नींद आने लगी है, अब तो सिर्फ कमजोरी शेष है । थोड़ी दवा और दे दीजिए, बड़ी कृपा होगी। आपकी सेवामें हम लोगोंकी तरफसे यह तुच्छ भेंट अर्पित है, कृपया स्वीकार करें ।" पटवारीजीकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा, वे बोले – “पण्डितजी अच्छे हो गए, मैंने सब कुछ भर पाया । अब वे सैंकड़ोंका भला करेंगे। ऐसे परोपकारी जितने अधिक जीवें, उतना ही अच्छा । मैं वेद-हकीम नहीं हूँ । रुपए आप उठा लीजिए, मैं तो मुफ़्त में यह रहता हूँ। मेरा लगता ही क्या है । आठ श्राने में मनों घास इकट्ठा हो जाती है। आप चाहें, तो इस मिठाई को मुहल्लेके बालकोंको बाँट सकते हैं, नहीं तो इसे भी ले जाइए । मैं कुछ भी न लूंगा ।" पटवारीजीका दो टक इन्कार देखकर फिर इसरार करनेकी मेरी हिम्मत न हुई । रुपये उठा लिए और मिठाई बालकको बाँट दी। पटवारीजीने अबकी बार प्रचुर मात्रा में दवाई देते हुए कहा – “लीजिए, यह दिनको काफी होगी । इसीसे पण्डितजी चलने २१३ फिरने लगेंगे, भूख खूब लगेगी, दस्त साफ श्रावेगा । यह दवा जरा सर्दीसी करती है, उसकी फिक्र न करना । एक बात और सुनिए, अब दवा के लिए मेरे पास आने का कष्ट न करें । वह तो आपके हरदुआगंजके पास ही कपास, ज्वार, मक्के और बाजरे के खेतोंमें बहुत होती है। वहींसे ताजा उखड़वा मँगाइए और सुखाकर रख लीजिये । अभी तो कार्तिक ही है, आपको बहुत-सी घास मिल जायगी । यह गँवारू बूटी है । इधर गाँव के लोग इसे 'बावली घास' कहते हैं । इसका पौधा डेढ़ फुट ऊँचा होता है, पत्तियाँ लम्बी लगती हैं, फली भी श्राती हैं, जिनमें बीज होते हैं ।" अभिप्राय यह कि 'बावली घास' से पिताजी बिलकुल अच्छे हो गए। उनकी कृश काया फिर मोटीताजी और तन्दुरुस्त दिखाई देने लगी । पूज्य शर्माजी सेरों घास उखड़वा कर अपने साथ ले गए। पिताजीने भी खूब प्रचार किया। मैं भी प्रतिवर्ष पचासों पैकेट भेजता रहता हूँ। जो मित्र या परिचित मिलता है, बराबर उससे उसका जिक्र करता हूँ। अर्शके जिस रोगीको वह दी गई, उसीको लाभ हुआ । न जाने भगवती वसुन्धराके गर्भ में क्या-क्या विभूतियाँ छिपी पड़ी हैं। संसार में प्रकृति माताकी व्यापकता और विचित्रता समझने वाले बहुत थोड़े हैं, वे ही सच्चे ज्ञानी और पूरे पण्डित हैं। ( दीपक से ) लोहामण्डी श्रागरा ] * यह घास क्वार- कातिकमें ही होती है । इस "साल जितनी इकट्ठी की गई थी, वह सब बाँट दी गई।
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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