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अनेकान्त
ज्येष्ठ, मापार, वीर निर्वाण सं०२४६ ६
.. यदि इसमें कोई कट अथवा अयोग्य वाक्य नजर वर्णनमें मैं अपना अहोभाग्य समझता हूँ। .
आवे तो उसे दुखित हृदयके दावानलकी चिङ्गारी यतिसमाज ही क्यो साधु समाजकी दशा भी समझ मुझे क्षमा करेंगे । एक स्पष्टीकरण और विचारणीय एवं सुधारयोग्य है । उस पर भी भी आवश्यक है कि इस लेख में जो कुछ कहा बहुत कुछ लिखा जा सकता है । समयका सुयोग गया है वह मुख्यताको लक्ष्यमें रखकर ही लिखा मिला तो भविष्यमें इन दोनों समाजों पर एवं है, अन्यथा क्या यति समाजमें और क्या चैत्य- इसी प्रकार जैन धर्मके क्रियाकाण्डोंमें जो विकृति वासियोंमें पहले भी बहुत प्रभावक आचार्य एवं . आ गई है, उस पर भी प्रकाश डालने का विचार महान आत्माएँ हुई हैं एवं अब भी कई महात्मा है। बड़े उच्च विचारोंके एवं संयमी हैं। इनको मेरा
_ 'तरुण ओसवाल' से उद्धृत भक्तिभावसे वंदन है । उन महानुभावोंके गुण.
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जीवन के अनुभव
बावली घास
[ लेखक-श्री हरिशंकर शर्मा]
नावले अादमी, बावले कुत्ते, बावले गीदड़, बावले सेर चायका पानी पीते । यहाँ तक कि बैसाख और
बन्दर श्रादि तो सबने देखे सुने होंगे, परन्तु जेठमें भी उसे न छोड़ते थे । तिस पर भी तुर्ग यह कि 'बावली घास' से बहुत कम लोग परिचित हैं। फिर मजे कटोरा-भर चायमें दुधका नाम नहीं । अगर भूलसे की बात यह है कि पशु पक्षी और मनुष्य तो बावले होकर चायमें एक चम्मच भी दूध पड़ जाय, तो वे उसे जीव-जन्तुअोंकी जानके गाहक बन जाते हैं; परन्तु अस्वीकार कर दें । प्रकृति भला किसको क्षमा करने 'गवली घास' मरते हुए को अमृत पिलाती है, और उसे वाली है ? पिताजी पर भी उसका कोप हुआ, और दुःखसे मुक्त कर वर्षों जिलाती है । एक सर्वथा सत्य उन्हें भयंकर रक्तार्श (खुनी बवासीर ) से व्यथित घटनाके आधार पर अाज हम पाठकोंको बावली घास होना पड़ा। यह घटना अबसे ३० वर्ष पहिले की है। का कुछ परिचय कराते हैं।
मेरे पूज्य पिता (स्वर्गीय पं० नाथूराम शङ्कर शर्मा ) चाय के बड़े आदी.थे । उनकी यह टेव व्यसन पहले तो पिताजीके शौच-मार्गसे थोड़ा-थोड़ा खन तक पहुंच गई थी। वे सुबह-शाम दोनों वक्त अाध श्राध अाया, फिर तिल्लियाँ बँधने लगीं। यहाँ तक कि वे