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वर्ष ३
क सामानह
अनेकान
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
सम्पादन-स्थान- वीर सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि० सहारनपुर प्रकाशन-स्थान – कनॉट सर्कस, पो० बो० नं० ४८, न्यू देहली ज्येष्ठ, आषाढ़ पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं०२४६६, विक्रम सं० १९६७
किरण ८-६
पात्र केसर-स्मरणा
भूभृत्पादानुवर्ती सन् राजसेवापराङ्मुखः ।
संयतोऽपि च मोक्षार्थी भात्यसौ पात्रकेसरी ॥ - नगरताल्लुक - शिलालेख नं ०४६
जो राजसेवासे पराङ्मुख होकर उसे छोड़कर — मोक्षके अर्थी संयमी मुनि बने हैं, वे पात्रकेसरी (स्वामी) भूभृत्पादानुवर्ती हुए —- तपस्या के लिये गिरिचरणकी शरण में रहते हुए - खूब ही शोभाको प्राप्त हुए हैं । महिमा सपात्र केसरिगुरोः परं भवति यस्य पद्मावती सहाया त्रिलक्षणकदर्थनं कर्तुम् ॥
भक्त्यासीत् ।
- श्रवणबेलगोल -शिलालेख नं०५४
जिनकी भक्ति से पद्मावती (देवी) 'त्रिलक्षणकदर्थन' करने में - बौद्धों द्वारा प्रतिपादित अनुमान विषयक हेतुके त्रिरूपात्मक लक्षणका विस्तार के साथ खण्डन करनेके लिये 'त्रिलक्षणकदर्शन' नामक ग्रंथके निर्माण करने में - जिनकी सहायक हुई है, उन श्रीपात्रकेसरी गुरुकी महिमा महान् है - असाधारण है । ྃ༔
भट्टा कलंक - श्रीपाल - पात्र केसरिणां गुणाः ।
विदुषां हृदयारूढा हारायन्ते ऽतिनिर्मलाः ॥ - श्रादिपुराणे, जिनसेनः
भट्टाकलंक और श्रीपाल श्राचार्योंके अतिनिर्मल गुणों के साथ पात्रकेसरी आचार्य के अतिनिर्मल गुण भी विद्वा-नोंके हृदयों पर हारकी तरहसे आरूढ हैं—विद्वजन उन्हें हृदय में धारणकर अतिप्रसन्न होते तथा शोभाको पाते हैं । विप्रवंशाप्रणीः सूरिः पवित्रः पात्रकेसरी |
स जीयाज्जिन पादाब्ज से वनैकमधुत्रतः ॥ - सुदर्शनचरित्रे, विद्यानन्दी
वे पवित्रात्मा श्रीपात्र केसरी सूरि जयवन्त हों -लोकहृदयों पर सदा अपने गुणोंका सिक्का जमाने में समर्थ हों - जो ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर उसके अम नेता थे और (बादको ) जिनेन्द्रदेव के पद-कमलोंका सेवन करने -वाले श्रसाधारण मधुमक्ष (के रूपमें परिणत हुए) थे ।