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________________ वर्ष :, किरण ..].... जैनागममि समय-गणना 'उत्तर-'नहीं ,क्योंकि अनन्त परमाणु-संघातोंके एकत्रित ११ २ पक्षोंका १ मास होने पर वह रोयाँ बनता है। अतः रोयेंका प्रथम १२ २ मासोंकी १ ऋतु परमाणु-संघात जब तक नहीं टूटता तब तक नीचे १३ ३ ऋतुओंका १ अयन का संघात नहीं टूट सकता। ऊपरका संघात एक १४ २ अयनोंका १ वर्ष काल में टूटता है, नीचे का संघात उससे भिन्न दूसरे १५ ५ वर्षोंका १ युग काल में । इस लिये एक रोयें के टूटनेकी क्रियावाला १६ २० युगोंकी १ शताब्दी काल भी समय सज्ञक नहीं हो सकता।' १७ १० शताब्दियों का एक हज़ार वर्ष __अर्थात् एक रोयें के टूटनेमें जितना समय लगता १८ १०० हज़ार वर्षोंका १ लक्ष वर्ष है उससे भी अत्यन्त सूक्ष्मतर कालको 'समय' कहते हैं । १६ ८४ लक्ष वर्षोंका १ पूर्वीग जैनदर्शनमें मनुष्य अाँख बन्दकर खोलता है या पलकें २० ८४ लक्ष पूर्वीगोंका १ पूर्व मारता है, इस क्रियामें लगने वाले काल में असंख्यात (७०५६०००००००००० वर्ष) समयका बीत जाना बतलाया गया है। २१ ८४ लक्ष पूर्वोका १ त्रुटिताँग . उपर्युक्त उदाहरणसे पाठकोंको जैनदर्शनके समयकी २२ ८४ लक्ष त्रुटितांगोंका १ त्रुटित सूक्ष्मताका कुछ अाभास अवश्य मिल सकता है । ये २३ ८४ लक्ष त्रुटितोंका १ अड्डांग दृष्टान्त केवल विषयको बोधगम्य करने के लिये ही दिये २४ ८४ लक्ष अडडागांका १अड़ड़ गये हैं । समयका वास्तविक स्वरूप तो कल्पनातीत है। २५ ८४ लक्ष अडड़ोंका १ अववाँग अब समयके अधिक कालकी गणनाको संक्षेपसे बतलाया २६ ८४ लक्ष अववागोंका १अवव जाता है। २७ ८४ लक्ष अववोंका १ हुहुकांग १ निर्विभाज्य काल रूप १ समय २८ ८४ लक्ष हुहुकाँगोंका २ असंख्यात समयोंकी १ श्रावलिका २६ ८४ लक्ष हुहुकोंका। १ उत्पलाँग ३ संख्येय श्रावलिकोंका १ उश्वास (स्वस्थ युवाका) ३० ८४ लक्ष उत्पलाँगोंका ५ उत्पल ४ संख्येय श्रावलिकोंका १ निश्वास (,) ३१ ८४ लक्ष उत्पलोंका १पद्माँग ५ उश्वास युक्त निश्वासका १प्राण ३२ ८४ लक्ष पद्माँगोंका १ पद्म ६ सात प्राणोंका १ स्तोक ३३ ८४ लक्ष पद्मोंका १ नलिताँग ७ सात स्तोकोंका .. १ लव ३४ ८४ लक्ष नलिताँगोंका १ नलित ८ ७७ लवोंका . ३५ ८४ लक्ष नलितोंका १ अर्थनिपराँग (इस प्रकार ३७७३ श्वासोच्छ्नसोका एक मुहूर्त- ३६ ८४ लक्ष अर्थर्निपरांगोंका १ अर्थनिपूर २ घड़ी ४८ मिनिट-होता है) ३७ ८४ लक्ष अर्थनिपरोंका १ अयुतांग ६ ३० मुहूतोंका १ अहोरात्र (दिन) ३८ ८४ लक्ष अयुतांगोंका .. १ अयुत १० १५ दिनोंका १ पक्ष ३६ ८४ लक्ष अयुतोंका १ नयुतांग
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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