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________________ वर्ष ३, किरण ८.६]. तामिल भाषामा अनसाहित्य ४८६ उन देशोंसे सम्बन्ध था, जो पूर्वीय आर्य देशोंमें और वे निश्चयसे पृथक रहे होंगे । इस बातका सम्मिलित हैं। इन्होंने जिस भाषामें अपना संदेश प्रमाण जैन रामायणमें मिलता है। एक छोटा सा दिया वह संस्कृत नहीं, बल्कि मागधी-प्राकृत रूप उदाहरण है । जब दशरथके दरबारमें रामके वाली संस्कृत भाषा थी । जैनियोंका प्रारभिक विवाहकी बातचीत चली तब एक मंत्रीने सूचित धार्मिक साहित्य प्राय: प्राकृत भाषामें है, जो किया कि जनककी कन्या सीता उपयुक्त वधू होगी, तात्कालिक जनताको बोलचालकी भाषा थी। ग्रह किन्तु अनेक मन्त्रियोंने यह कह इस बातका तीब्र, स्पष्ट है कि इस उदार विभागने अपने अहिंसात्मक प्रतिवाद किया कि जनक अब अहिंसाके अनुयायी, धार्मिक सिद्धान्तको जनतामें प्रकाशित करनेका नहीं रहे हैं, क्योंकि वह दूसरे पक्ष में पुनः चले गये. साधन इस प्रचलित भाषाको बनाया है। . हैं। अन्तमं यह निर्णय हुआ कि धार्मिक विभि जब हम उपनिषद्-कालमें प्रवेश करते हैं तब न्नताके होते हुये भी राजनैतिक तथा सैनिक दृष्टि हम कुरु पांचालीय यज्ञात्मक क्रियाकाण्ड और. से यह संबंध वांछनीय है । यह उदाहरण इस पूर्वीय श्रार्योंकी आत्म विद्यारूपी दो विपरीत, बातको स्पष्ट करता है कि जबतक जनकन पक्ष . संस्कृतियोंके मध्यभे पुनः संघर्ष देखते हैं। उपनिः परिवर्तन नहीं किया था तब तक वे उदार अायोंमें षद् सम्बन्धी अध्यात्मवाद विशेषकर वीर.क्षत्रियों परिगणित किये जाते थे । यह कहना अयथार्थ में संबंधित है । कुरु पाँचाल देशीय विद्वान् इन नहीं होगा कि पूर्वीय आर्य लोग, जो यज्ञ विधिके पूर्वीय नरेशोंके दरबारों में आत्मविद्याके नवीनज्ञान विरोधी थे तथा. जिनके नेता वीर क्षत्रिय थे, में प्रवेश निमित्त प्रतीक्षा करते हुए देखे जाते हैं। अहिंसा सिद्धान्तमें विश्वास करते थे और इससे उपनिषद्-कालीन जगत उस अवस्थाको बताता है वे जैनियोंके पूर्वज थे । महावीरके समयकं लगभग जब ये दोनों विभाग एक निश्चय और समझौता: इस उदार विचार धाराने , बौद्ध धर्मके संस्थापक प्राप्तिकं निमित्त प्रयत्न करते हुए नजर आते हैं। शाक्य मुनि गौतमके रूपमें अन्य वीर क्षत्रिय-द्वारा, इस प्रकारकी समन्वयात्मक भावनाके द्योतक संचालित दूसरी विचार प्रणालीको अपनेमें से राजा जनक प्रतीत होते हैं और पूर्वीय आर्य वि.. उत्पन्न किया । गौतम बुद्ध शाक्य वंशीय हैं, उनके द्वान याज्ञवल्क्य संभवत: उस शक्ति के प्रताक हैं. जीवनमें शाक्य वंशका संबंध उस इक्ष्वाकु वंशसे : जिससे समन्वय और व्यवस्था हुई । पुरातन यज्ञ लगाया जाता है जिसने प्राचीन भारतीय संस्कृति विधि पूण रीतिसे निषिद्ध किए जानेक स्थानों के निर्माणमें महत्वपूर्ण कार्य किया था । और तो कुछ हीन स्थिति वाली संस्कृतिक रूपमें रखी गई. क्या, पौराणिक हिन्दु धर्म तकमें क्षत्रिय वीरोंकी तथा आत्म विद्याका नवीन ज्ञान स्पष्टरूपसे उच्च सेवायें सम्मानित हुई हैं क्योंकि वे उसमें विष्णु . माना गया । इस प्रकारके समझौतेमें निश्चयसे अवतारके रूपमें प्रशंसित हुए हैं जिसके मन्दिर : कट्टर अाय वर्गको विजय थी, किन्तु ऐसा सम- बनाये जाते हैं और पूजा की जाती है । यह . झौता उदार विद्वानोंको स्वीकृत नहीं हुआ होगा आश्चर्य की बात है कि इस अहिंसा सिद्धान्तका :
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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