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________________ वर्ष ३, किरण ७ अहिंसाके कुछ पहलू [४६३ पाहार कैसे मिले ? औरोका नयाल करनेके वे मकान जलाने लगते हैं, तब भी उन परगोली न दिन थे ही नहीं। किन्तु ऐसे वायुमण्डलमें भी चलानेकी सलाह जो गांधीजी देते हैं और कहते हैं माता के दिलमें अपने बच्चों के प्रति प्रथम अहिंसा कि ऐसी हालतमें चन्द शूरवीरोंको अपने प्राणों का खयाल पैदा हुआ, बादमें स्वार्थ-त्यागका और की परवाह न कर मतवाली जनताके सामने बलिदानका। उस जमानेमें अगर हम सांप, सिंह, अपना बलिदान देने के लिये जाना चाहिये, वे ही हाथी आदि जानवरोंसे बचनेके लिये अहिंसाका गांधीजी चोर और डाकुओंके साथ वैसा करनेकी ही प्रयोग करतेतो कौन जाने क्या नतीजा सलाह नहीं देते। उन्मत्त जनता चाहे जितनी आता ? पागल क्यों न हो, आखिर वह समाजकी ___आज हम मांसाहार के बिना जी सकते हैं। प्रतिनिधि है। किन्तु चोर और डाकू समाजकी एक ज़माना था जब मनुष्यको यह विश्वास ही न केवल विकृति ही हैं। इसलिये चोरों और डाकुओं था कि मांसाहारके बिना भी जिया जा सकता है। को समाज-प्रतिनिधि सरकारके द्वारा सजा दिल आज हम मानते हैं कि 'वनस्पतिको मार कर खाये वाना जायज माना जाता है। बिना हम जी ही नहीं सकते, और इस लिये हमें । वनस्पतिकी हिंसाको हिंसा नहीं समझना . स्वाभाविक हिंसाका निग्रह चाहिये। अब जो लोग लूट-खसोट ही का धन्धा करते हैं, हिंसाके कुछ समाज-मान्य रूप आजीविकाका दूसरा कोई साधन जानते ही नहीं, उनके द्वारा जो हिंसा होती है वह उसी कोटिकी इसी तरह आज हम सामाजिक जीवन हिंसा है, जो बिल्ली चूहेको मारते समय करती सुरक्षित करनेके लिये प्लेग आदि रोगोंके जन्तुओं है। बिल्लीको यह खयाल तक नहीं होता कि वह का नाश करनेमें कोई दोष नहीं देखते । मच्छरोंको चूहेको दुःख दे रही है । इसी तरह लूट-खसोट और खटमलोंको मारते समय किसीको यह करने वाले लोग और मनुष्यका अपहरण करके खयाल नहीं होता कि ऐसा करनेका हमें कोई उसका धन छीनकर उसको छोड़ देनेवाले पठान अधिकार नहीं है। भी हिंसा-अहिंसाका खयाल ही नहीं कर सकते। __ गांधीजीने भी इस बातको स्वीकार किया है जिसकी समझ में हिंसाका दोष आ सकता है, कि राष्ट्र-राष्ट्र के बीच अहिंसाका पालन करनेका जिसके मनमें अहिंसाका उदय हो सकता है, उसी इतना आग्रही प्रचार करते हुए भी चोरों और के लिये सत्याग्रहका मार्ग है । हिटलर, मुसोलिनी लुटेरों के उपद्रवसे बचनेका और उनपर अहिंसाका और स्टेलिन अपनी संहार-लीला भले ही चलाते प्रभाव डालनेका उनके पास कोई उपाय या हों; किन्तु वे भी अहिंसाको समझ सकते हैं। तरकीब नहीं है। आदमी जब मतवाले होकर इतना ही नहीं; किन्तु अहिंसासे प्रभावित भी हो किसी शहर में खून-खराबी करने लगते हैं, या सकते है । किन्तु शेर या भालूके खिलाफ हम
SR No.527162
Book TitleAnekant 1940 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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