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________________ अहिंसाके कुछ पहल (लेखक-श्री० काका कालेलकर ) शरीर-धारण और दण्ड के लिये हिंसा अहिंसाका दूसरा पहलू था। अत्याचारी और __गुनहगारको सज्रा न देकर केवल उसे दोषी जाहिर दिसा-अहिंसाका सवाल हमारे बचपनमें करके ही संतोष मानना अहिंसाका तीसरा पहलू ॥ ८ खाने-पीनेके संबंधमें ही उठता था । जब शाफिर नहगारने गनाह किया. हत्या करनेवैष्णवोंका दया धर्म और प्रेम-धर्म हमारे जीवनमें में वह सफल हुआ, या निष्फल हुआ, किन्तु व दाखिल हुआ तब किसी भी व्यक्तिको अपने अन्तमें वह राजपुरुषोंके हाथमें आगया। अब क्रोधसे या कठोर वचनसे दुःख पहुँचानेमें भी कानूनकी दुहाई देकर हम उसका बदला लें यह हिंसा है और प्रिय और पथ्यवचनसे और सेवासे उचित है ?-या केवल उसे दोषी ठहरा कर छोड़ सबको राजी रखनेमें अहिंसा है-इतना हम दें यही अच्छा है" ?- यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न, स्थूल रूपसे समझ गये। या पहलू , हमारे सामने आया। इसके बाद इस प्रश्नने एक नया ही रूप पकड़ा। 'जालिमको सजा देने के लिये, गुनहगार इससे आगे बढ़कर 'आत्मरक्षाके लिये भी को दण्ड देनेके लिये, भी हम हिंसाका आश्रय न हम किसीकी हत्या करें या न करें, कहीं पर प्रतिकरें-यह खयाल गांधीजीने हमारे सामने पेश हिंसाका प्रयोग करें या न करें'- यह महत्वका किया । जलियानवाला बारा के बाद जो राष्ट्रव्यापी सवाल है। आन्दोलन गांधीजीने शुरू किया, उसमें यह आत्मरक्षणार्थ हिंसा खासियत थी कि गांधीजी जनरल डायरको सजा नहीं दिलाना चाहते थे। हिन्दुस्तानके पैसेसे जो ___ कुछ लोग यह कहते हैं कि पेट पालने के लिये पेन्शन डायरको मिलती थी उतनी बन्द करानेसे जो हिंसा करनी पड़ती है उसे तो सदोष नहीं और सरकारके डायरका दोषी होना स्वीकार समझना चाहिये, कम-से-कम उसे क्षम्य तो करनेसे गांधीजीको संतोष था। इसी द्रष्टि और समझना ही चाहिये। यह दृष्टि बहुतसे लोगोंकी वृत्तिको गांधीजीने देशसे भी स्वीकार कराया। है। अगर भरण-पोषणके लिये हिंसा जायज है, तो आत्म-रक्षाके लिये वह जायज़ क्यों नहीं है ?? अहिंसाके चार पहलू -यह सवाल स्वाभाविकतया उठता है। और निरामिष आहार करके पशु-पक्षियोंकी हिंसा आत्म-रक्षाका सवाल इतना गूढ़ है कि आत्मन करना अहिंसाका एक पहलू था। कठोरताको रक्षण किसे कहें और आक्रमण किस कहें, इसका छोड़कर सभोंके साथ कोमलतासे पेश आना निर्णय बड़े बड़े धर्मज्ञ पंडित भी नहीं कर सकते।
SR No.527162
Book TitleAnekant 1940 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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