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________________ ४५६ कान्त वैसाख, वीर निर्वाण सं०२४६६ हैं ही नहीं । श्रोसवाल श्रादि कुछ जातियाँ ऐसी हैं १० खोइल्ल (जैतल ) जिनके गोत्र ग्रामों या पेशों आदिके नामसे पड़े हैं और ११ माडिल्ल (कासव ) बहुतोंके ऐसे अद्भुत हैं कि उनके विषयमें कुछ कल्पना १२ फागुल्ल (सिंगल ) सिंहलं ही नहीं हो सकती। उनकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें तरह · ऊपरकी सूचीमें परवारोंके और गहोइयोंके नौ गोत्र तरह की कथायें भी गढ़ ली गई हैं। बिलकुल एक जैसे हैं और अग्रवालोंके चार गोत मिलते परवारोंके गोत्र और उनका अन्य जातियोंके हुए हैं। गहोइयोंके परवारोंके ही समान बारह गोत्र है परंतु . गोत्रोंसे मिलान अग्रवालोंके अठारह गोत्र हैं। . हमारा अनुमान है कि परवारोंके गोत्र गोत्रकृत् गहोई कौन हैं ? या वंशकृत् पुरुषोंके ही नामसे प्रारम्भ हुए होंगे और अग्रवालोंका थोड़ा परिचय ऊपर दिया जा चुका उनकी परम्परा बहुत पुरानी होनी चाहिए। है। अब हम परवारोंके अतिशय सामीप्यके कारण परवासेंके बारह गोत या गोत्र हैं। इनमेंसे कुछ गहोइयोंका थोड़ा परिचय देना ज़रूरी समझते हैं । गोत्र गहोइयों और अग्रवाल आदि जातियों जैसे हैं। संस्कृत लेखोंमें गहोई बशको 'गृहपति-वंश' लिखा इसका कारण शायद यह हो कि मूलमें ये एक ही रहीं गया है। गृहपतिसे गहवइ और फिर गहोई हो गया हों और आगे चलकर अलग हो गई हों। जो गोत्र है। बौद्ध ग्रंथों में गृहपति शब्द बहुत जगह वैश्यके मिलते नहीं है, भिन्न हैं, वे शायद अलग होने के बादके नाम अर्थमें आता है * । हमारा ख्याल है कि जिस समय वैश्योंमें भेद नहीं हुए थे, आम तौरसे सभी, वैश्य लोग' - "श्रामे हम परवार, गहोई और अग्रवाल जातिके गहवई कहलाते होंगे, पीछे जातियोंके बनने पर एक गोत्र दे रहे हैं समूह गहवई या गहोई ही कहलाता रहा, उसने अपना परवार गहोई अग्रवाल नाम नहीं बदला जब कि दूसरे समूह नगर स्थानादिके नामोंसे आपको परिचित कराने लगे।. १ गोहिल्ल. गांगल गोभिल २ गोहल्ल, गोइल, गोयल या गोल गोयल गहोइयोंका बुंदेलखण्डमें प्रवेश ३ वाछल्ल .. - वाछिल वत्सिल - गहोई जातिके पटिया एक दन्तकथा कहा करते हैं ४ कासिल्ल, काछिल ... कासिल __ कि. पवाँया या पद्मावती नगरीके कई द्वार थे । ५ वासिल्ल वासिल एक दिन अम्बिका देवी एक द्वार छेक कर लेटी ६ भारिल्ल भारल या भाल * देखो महाबोधिसभा द्वारा प्रकाशित दीवनि७ कोछल्ल काय पृ० ११, १४३, ११४ १७५ । पउमचरिय (२०. ८वाझल्ल बादल ११६) में गृहस्थ, गृही, संसारीके अर्थमें भी 'गहवई' १ कोइ.कोइल, कोहिल शब्द पाया है। कोछिल .........
SR No.527162
Book TitleAnekant 1940 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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