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________________ साहित्य सम्मेलनकी परिक्षाओंमें जैन-दर्शन [ले० पं० रतनलाल संघवी, न्ययातीर्थ - विशारद ] ++£0103++ शि -ताप्रेमी पाठकोंको मालूम है कि हिन्दी- पत्र में जैनदर्शनका समावेश किया जाय । साहित्य सम्मेलन प्रयागकी परीक्षाओं के वैकल्पिक विषयों में जैन दर्शनको भी स्थान दिलाने के लिये गत दो वर्षोंसे मैं बराबर प्रयत्न करता था रहा हूँ । हर्षका विषय है कि परीक्षा समितिने अब जैनदर्शनको भी स्थान देना स्वीकार कर लिया है । इस सम्बन्ध में थाये हुए पत्रकी प्रतिलिपि इस प्रकार है। : -: प्रिय महोदय ! जैन-दर्शनको प्रथम तथा मध्यमा परीक्षाओं के वैकल्पिक विषयों में स्थान देनेके लिये हमने आपका पत्र परीक्षा समिति के सामने विचारार्थ उपस्थित किया था । समितिने इस संबंध में निम्नलिखित निश्चय किया (१) प्रथम परीक्षा के लिये एक ऐसी पुस्तक तैयार की जाय जिसमें सार्वभौमिक धर्म अच्छे रूपसे छोटे बच्चों के सामने रखा जाय और जिसमें भारत में प्रचलित भिन्न भिन्न धर्मोंके विशेष प्राचार्योंके वाक्यांश उद्धृत हों । पुस्तक के प्रकाशन के संबंध में यह प्रस्ताव साहित्य समिति के पास भेजा जाय । (२) मध्यमा परीक्षा में इस विषयकी पुस्तकोंको स्थान देनेके संबंध में श्री संघवीजीसे पूछा जाय कि वे कौनसी पुस्तक निर्धारित करना चाहते हैं। पुस्तक ऐसी होनी चाहिये जिसमें विवादास्पद विषय न हों । (३) उत्तमा परीक्षा के दर्शन विषयक चौथे प्रश्न इसके लिये पुस्तकों की सूची मेरे पास भेजिये । भवदीयदयाशंकर दुबे, परीक्षा मंत्री । समितिके उपयुक्त प्रस्तावोंसे यही ज्ञात होता है कि प्रथमा परीक्षा में तो जैन दर्शन नहीं रक्खा जायगा । मध्यमाके वैकल्पिक विषयों में जैन-दर्शन रह सकेगा । इसी प्रकार उत्तमामें भी दर्शन विषयके चौथे प्रश्नपत्र में जैन दर्शनको स्थान मिल सकेगा । प्रस्तावानुसार मैंने जो पाठ्यक्रम निर्धारित किया है । उसकी प्रतिलिपि इसी निवेदन के अन्त में दे रहा हूँ । मैंने इस कोर्सकी प्रतिलिपि पं० सुखलालजी, श्री जैनेन्द्रकुमारजी (दिल्ली), पं० नाथूरामजी प्रेमी, पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल आदि अनेक विद्वानोंकी सेवा में भी भेजी है। अब सभी शिक्षा-प्रेमी सज्जनों एवं अन्य पाठक महानुभावों की सेवा में इसे समाचार पत्रों द्वारा पेश कर रहा हूँ। श्राशा है विद्वजन इस पर अपनी बहुमूल्य सम्मति एवं संशोधन भेजने की कृपा करेंगे । जिससे कि मैं इसे अंतिम रूप देकर प्रामाणिक रूपले सम्मेलन के अधिकारियोंको भेज सकूँ । रजिस्ट्रार परीक्षा बिभागके पत्र नं० १४०२२ द्वारा ज्ञात हुआ है कि जैन दर्शनका समावेश संवत् ११३८ से हो सकेगा । इसी प्रकार पत्र नं० १३३०० द्वारा
SR No.527161
Book TitleAnekant 1940 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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