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________________ वर्ष ३, किरण ५ ] लम्बित राष्ट्रीय एकता आदिकी दृष्टिसे चित्तकी शुद्धि को कायम रखते हुए यह त्यौहार अपने शुद्ध स्वरूप में मनाया जाय और उससे जनताको उदारता एवं सहनशीलतादिका सक्रिय सजीव पाठ पढ़ाया जाय तो इसके द्वारा देशका बहुत कुछ हित साधन हो सकता है और वह अपने उत्थान एवं कल्याणके मार्ग पर लग सकता है । इसके लिये ज़रूरत है काँग्रेस जैसी राष्ट्रीय संस्था Share की और इसके शरीर में घुसे हुए विकारों को दूर करके उसमें फिरसे नई प्राण-प्रतिष्ठा करने की । यदि कांग्रेस इस त्यौहारको हिन्दू धर्मकी दलदल से निकाल कर विशुद्ध राष्ट्रीयताका रूप दे सके, एक राष्ट्रीय सप्ताह श्रादिके रूपमें इसके मनानेका विशाल आयोजन कर सके और मनानेके लिये ऐसी मर्यादाएँ स्थिर करके दृढताके साथ उनका पालन करानेमें समर्थ हो सके जिनसे अभ्यासादिके वश कोई भी किसीका निष्ट न कर सके और जो व्यक्ति तथा राष्ट्र दोनोंके उत्थान में सहायक हों, तो वह इस बहाने समता और स्वतन्त्रताका अच्छा वातावरण पैदा करके देशका बहुत होलीका त्यौहार ( १ ) ज्ञान-गुलाल पास नहिं, श्रद्धासमता रंग न रोली . है । नहीं प्रेम- पिचकारी करमें, + केशर - शान्ति न घोली है । स्याद्वादी सुमृदङ्ग बजे नहिं, नहीं मधुर रस बोली है । कैसे पागल बने हो चेतन - ! कहते 'होली होली है' !! ही हितसाधन कर सकेगी और स्वराज्यको बहुत निकट ला सकेगी। यदि कांग्रेस ऐसा करनेके लिये तैयार न तो फिर हिन्दू समाजको ही इस त्यौहार के सुधारका भारी यत्न करना चाहिये । क्या ही अच्छा हो, यदि देशसेवक जन इस त्यौहारके सुधार- विषय में अपने अपने विचार प्रकट करने की कृपा करें और सुधार विषयक अपनी अपनी योजनाएँ राष्ट्रके सामने रखकर उसे सुधारके लिये प्रेरित करें । यदि कुछ राष्ट्र हितैषियोंने इसमें दिलचस्पीसे भाग लिया तो मैं भी अपनी योजना प्रस्तुत करूँगा और उसमें उन मर्यादाओं का भी थोड़ा बहुत उल्लेख करूँगा जिनकी सुधारके लिये नितान्त आवश्यकता है । मर्यादाएँ पहले भी ज़रूर जिनके भंग होनेसे लक्ष्य भ्रष्ट होकर ही यह त्यौहार विकृत हुआ है । और इसी लिये बहुत असेंसे मैंने भी होलीका मनाना - उसमें शरीक होना—छोड़ रक्खा है । वीर सेवामन्दिर, सरसावा होली होली है ! ध्यान - अग्नि प्रज्वलित हुई नहिं, कर्मेन्धन न जलाया है । सद्भावका धुआँ उड़ा नहि, सिद्ध स्वरूप न पाया है ॥ भीगी नहीं ज़रा भी देखो, स्वानुभूति चोली है । पाप-धूलि नहि उड़ी, कहो फिरकैसे 'होली होली है' !! ** ३२१ 案 - 'युगबीर'
SR No.527160
Book TitleAnekant 1940 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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