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________________ ३४० अनेकान्त [फाल्गुन वीर-निर्वाण सं० २४६६ हुआ। सामने शत्रु दल कटिवद्ध था, रणभेरी निकलने लगीं, वीरत्व उमड़ आया, नसोंको तोड़ फिरसे भारी उत्साहके साथ बजी और युद्धका कर बाहिर पड़ने के लिए रक्त उभरने लगा । डोर भीषण वेग प्रारम्भ हुआ। को कान पर्यंत खेंचकर उसने सामने एक भीषण ___ युद्ध नवीन नहीं था, पैदलसे पैदल, हाथीसे बाणका प्रहार किया, बाणके वेगके साथ साथ हाथी और रथीसे रथी लड़ने लगे। मीलों तक उसका भीषण परिणाम हुआ। प्रतिस्पर्धीका रथ गोला फेंकनेवाली तोपों, जहरीली गैसों और टूटा, घोड़ा मरा, रथवाह कभिदा और सवारको घातक यंत्रोंका वर्तमानमें जितना मान है इससे छातीको तोड़ता हुआ तीर उस पार निकल गया। कहीं अधिक मान प्राचीन युद्ध पद्धतिमें मनुष्यको नतुवाका कर्तव्य पूर्ण हो चुका । उसने मातप्राप्त था। भूमिका ऋण चका दिया, छाती में से तीर निका लते ही प्राण निकल जायेंगे । अब युद्धको आगे हमारा रथी नायक यद्ध विद्यामें निपुण निर्भय चलाने के लिए वह असमर्थ हो चका था। प्रकृति शूरवीर और अपना कर्तव्य पालन करने में सदा सावधान रहनेवाला धार्मिक योद्धा था। युद्ध भूमिके समीप एक वृक्ष था, वह रथसे सामने दूसरा रथी था, मोरचा माँडकर नतुवा उतरा और शस्त्रास्त्र उतार डाले । पद्मासन उसके सन्मुख डट गया। लगाया, सन्यास ग्रहण किया और जागत आत्मा ___ "इस यद्धके कारण हम नहीं, तुम्हारे राजाका के ज्वलंत भावोंमें तन्मय होगया । उसने तीर राज्य-लोभ है, तुम हमारे ऊपर आक्रमण करने निकाला, रक्त की धार बह उठी । मानव-जीवन आए हो, तुम्हारी युद्ध तृष्णाका प्रतिकार और कृतार्थ करने वाले दृढ़ प्रणी-कर्मठ, वीर नतुवाने अपना संरक्षण करनेके लिए हमें इस युद्ध में कर्तव्य परायणताकी जागृत ज्योतिकं सामने, उपप्रवृत्त होना पड़ा है । राजाज्ञासे निर्दोष सैनिकोंका वासका पारणा पूर्ण किए बिना ही, खुशी खुशी वध करनेवाले ओ वीर ! सावधान हो, आयध ले इस नश्वर शरीर का त्याग किया। और मेरे ऊपर वार कर” दाएँ हाथपर लटकते हुए सुख सम्पत्ति को लात मारने वाले, शरीरसे तरकसमेंसे एक बाण निकालकर धनुषपर चढ़ाते ममत्व हटा अपने कर्तव्य पालनमें अटल रहने हुए प्रतिद्वंदीको लक्षितकर नतुवाने कहा। वाले, उज्वल अहिंसाकै लच्च आदर्श पर निश्चल शब्दका उच्चारण समाप्त होनेके प्रथम ही रह स्वदेश संरक्षणकी आज्ञा शिरोधार्य करने सनसनाष्ट करता हुआ एक बाण कवचको छेदकर और युद्ध भूमिमें-कर्मभूमिमें प्राण त्यागने वाले मतुवाको छातीमें भिद गया, प्रचंड ज्वालसे वीरका अओ विजेता जैन वीर ! तुझे सहस्रों धन्यवाद हैं। रक्त खौलने लगा, नेत्रोंसे ज्वलंत अग्निकी लपटें
SR No.527160
Book TitleAnekant 1940 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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