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________________ ३१६ अनेकान्त . [माघ, वीरनिर्वाण सं०२४६६ = - - graphy) बतलाया है और सूरिजीकी सच्चरित्रता और धन्यवादके पात्र हैं। विद्वत्ताकी प्रशंसा करते हुए उनकी 'चैत्यवन्दना कुलकवृत्ति' नामकी उपलब्ध रचनाका बड़ा ही गुणगान (६) सती मृगावती-लेखक; भंवरलाल नाकिया है। साथ ही, इस वृत्ति के कुछ वाक्योंका उल्लेख हटा । प्रकाशक, शंकरदान भैरुंदान नाहटा । नाहटोंकी एवं उद्धरण करते हुए यह भी बतलाया है कि- गवाड़ बीकानेर पृष्ठ संख्या, ४० । मूल्य, दो पाना । जन समाजमें परस्पर एकता और समानताका यह एक पौराणिक प्राधारपर अवलम्बित श्वेताव्यवहार रहना चाहिये, इस बातका भी इन्होंने (सूरि- म्बर कहानी है और भगवान महावीरके समयादिके जीने) स्पष्ट विधान किया है-जो वर्तमानमें जैनसमा- साथ सम्बन्ध रखती है। जको सबसे अधिक मनन और अनुसरण करने योग्य है। इस विषय में सार्मिक वात्सल्यवाले प्रकरणमें (७) श्रीदेव-रचना-लेखक, कवि ला० हरइन्होंने कहा है कि- जैनधर्मका अनुवर्तन करनेवाले - जसराय जैन ओसवाल । संशोधक, मुनि छोटे लाल सब मनुष्योंको परस्पर सम्पूर्ण बन्धुभाव और समान व्यवहारसे वर्तना चाहिये-चाहे फिर कोई किसी भी (पञ्चनदीय )। प्रकाशक, प्यारालाल जैन (मन्हाणी) " देश और किसी भी जातिमें क्यों न उत्पन्न हों। जो . साइकसगंज, स्यालकोट शहर । पृष्ठ संख्या, १६८ । कोई मनुष्य सिर्फ़ नमस्कार मंत्रमात्रका स्मरण करता मूल्य, सजिल्दका ११) अजिल्दका १) रु० ।। है वह भी जैन है और अन्य जैनोंका परम बन्धु है और ___इसमें मुख्यतासे भवनवासी आदि चार प्रकारके देवोंका और गौणतासे तीर्थकर चक्रवर्ती श्रादि ६३ इसलिये उसके साथ किसी भी प्रकारका भेदभाव न रखना चहिये और किसी प्रकारका वैर-विरोध न करना शलाका पुरुषोंका वर्णन अनेक प्रकारके छन्दोंमें दिया चाहिये ।' धार्मिक एकताकी दृष्टि से ये विचार कितने है, जिनमें चित्र छन्द भी हैं । पद्योंकी कुल संख्या ८४३ उदार और अनुकरणीय हैं। जिनकुशलसूरिकी चरण- है। नाना छन्दोंकी दृष्टिसे पुस्तक सामान्यतया अच्छी पूजा करनेवाले भक्तजन यदि उनके इस कथनका बुद्धि है, विषय-वर्णन भी कुछ बुरा नहीं। भाषाका नमूना पूर्वक अनुपालन करें तो, गुरुपूजाका सबसे उत्तमः फल जाननेके लिये अन्तका छप्पयछंद निम्न प्रकार है, प्राप्त कर सकते है और कमसे कम अपने गच्छका तो जिसमें पुस्तक रचनेका समयादिक भी दिया हुआ है:गौरव बढ़ा सकते हैं।" अठारह सय सत्तरेव पंचम थिति माँहे । ___ पुस्तकमें चार उपयोगी परिशिष्टों के साथ विशेष बुध जन उत्तर मीन चन्द सुवसत उछाहे ॥ नामोंकी सूची लगी हुई है, जिनसे पुस्तककी उपयो- ' कुशपुर वासी श्रोसवाल हरजस रचलीनी। गिता बढ़ गई है। इतिहास प्रेमी विद्वानों के लिये सुर रचना जिनधर्म पुष्ट समकित रस भीनी ॥ पुस्तक पढ़ने तथा संग्रह करनेके योग्य है । अपने पृज्य- जिह सुन पठ चित अर्थ धर बढे ज्ञान सत बुद्ध । पुरुषों के इतिहासको इस तरह खोज खोजकर प्रकट कर- नमो देव अरिहन्तजी कर जोसमकित शुद्ध ॥ ८४३ ॥ नेके सत्प्रयत्नके लिये बन्धुद्वय लेखक महोदय निःसन्देह
SR No.527159
Book TitleAnekant 1940 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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