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________________ वर्ष ३, किरण २] बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में दीक्षा १४ न कर सकूँगा । इसलिये वे एक दिन रातको उठकर कारण फिर अपने अाँसुश्रोंकों नहीं रोक सकती, और बिना कहे ही घरसे चल दिये और हिमालय पहुँच कर “घडियब्बं जाया,जइयब्बं जाया,परिक्कमयथं जाया" तप करने लगे। .. अर्थात् संयममें यत्नशील रहना श्रादि शब्द कहकर ___ भगवती सूत्र आदि श्वेताम्बर सत्रों में इस प्रकार के वापिस चली जाती है. । हृदयस्पर्शी वर्णन अनेक स्थानों पर आते हैं । जामालि मालूम होता है इन्हीं सब बातोंसे महावीर और महावीरके दर्शन करने जाते हैं । दीक्षा लेने का उनका बुद्धको यह घोषणा करनी पड़ी कि बिना माता पिताकी दृढ़ निश्चय हो जाता है। इस निश्चयको वे घर अनुज्ञाके कोई दीक्षा लेनेका अधिकारी न हो सकेगा। अाकर अपने माता पितासे कहते हैं। उनकी माँ यह श्वेताम्बर ग्रंथों के अनुसार तो स्वयं महावीर भगवान्को सुनते ही पछाड़ खाकर ज़मीन पर गिर पड़ती है और भी अपने बंधुजनोंकी अाज्ञा न मिलनेसे, दीक्षा लेनेका बेहोश हो जाती है । जब वह अनेक उपचार करने पर मन होते हुए भी, कुछ समय तक गृहवासमें रहना होशमें आती है । उनको अपने पुत्र के निश्चय पर पड़ा । श्वेताम्बर समा में तो दीक्षाके नाम पर आज अत्यंत दुःख होता है । जामालिके माता-पिता बहुत भी अनेक उपद्रव होते हैं । बड़ौदा आदि रियासतोंमें समझाते हैं, परंतु जामालि अटल रहते हैं । दोनोंसे बाल दीक्षा के विरुद्ध बहुतसे कानून बना दिये गये हैं । अनेक प्रश्नोत्तर होते हैं और आखिर जामालि अपने यहाँ हम एक ईसाई पादरीका पत्र. उद्धृत करते हैं । निश्चयको मान्य रखते हैं। दीक्षाकी तैयारी बड़ी धूम- जो ईसाइयोंकी साधुदीक्षा पर कितना ही प्रकाश डालता. धामसे होती है । जामालिके लिये र जोहरण और पात्र है। यह पत्र इन पादरीने एक सज्जनको लिखा था जो. लाये जाते हैं और एक नाईको बुलाया जाता है । नाई अपने स्वजनोंकी इच्छा के विरुद्ध साधु (Priest) होना सुगन्धित जलसे हाथ पैर धोता है और साफ कपड़े की चाहते थे । वे लिखते हैंअाठ तह बना कर अपने मुँह पर रखकर जामालिके ... Even if your little nephew throws पास श्राता है । जामालि उसको चार अंगुल केश छोड़ his arms round your neck, if your mobi. कर दीक्षाके योग्य केश काटने को कहते हैं । नाई ther tears her hair and cloth and beats : आज्ञाका पालन करता है। उस समय क्षत्रियकुमार . her breast which you, sucked even if . जामालिकी माता भी वहाँ रहती है और वे अग्र केशोंको your father throws himself on the साफ वस्त्रमें ले लेती है, उनको गंधोदकसे धोती है ground before you-move, even the और पुत्रके वियोगके कारण बड़े बड़े मोतियोंकी लडी body of your father, flee with tearless जैसे सफेद अांसू टपकाती हुई कहती है कि अनेक eyes to the sign of cross. In this: शुभ तिथियों और उत्सवोंके अवसर पर हम इन्हीं केशों case, cruelty is the only virtue. For को देखकर सन्तोष कर लिया करेंगे । जामालिकुमार how many monks have lost their पालकीमें बैठकर महावीर भगवान्के पास पहुँचते हैं। souls, because they had pity for their साथमें माता घन्धुजन भी जाते हैं । मां पुत्र-वियगके fhahers and mothers."
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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