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________________ वर्ष ३, किरण २] हैं वहाँ इनके चित्र सबसे पहले तथा सर्वोपरि दिये जाने चाहियें थे । आशा है ग्रन्थका दूसरा श्रंश प्रकाशित करते समय इस बातका जरूर खयाल रक्खा जायगा । (२) श्रीमद्राजचन्द्र - ( संग्रहग्रन्थ) मूल गुजराती लेखक, श्रीमद राजचन्द्र जी शतावधानी सम्पादक और हिन्दी अनुवादक, पं० जगदीशचन्द्र, शास्त्री एम०ए० । प्रकाशक, सेठ मणीलाल, श्वाशंकर जगजीवन जौहरी, व्यवस्थापक श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल, बम्बई नं० २ बड़ा साइज पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर ६४४ मूल्य सजिल्द ६) रु० । यह वही महान् ग्रन्थ है जिस परसे महात्मा गाँधीके लिखें हुए 'रायचन्द भाई के कुछ संस्मरण' श्रनेकान्तकी गत ८ वीं किरण में श्री मद्राजचन्द्र जीके दो चित्रों सहित उद्धृत किये गये थे और 'महात्मा गांधी २७ प्रश्नोंका समाधान' आदि दूसरे भी कुछ लेख अनेकान्त में समयसमय पर दिये जाते रहे हैं। इसमें श्रीमद्राजचन्द्रजीके लिखे हुए आत्मसिद्धि, मोक्षमाला, भावनायोध, आदि ग्रन्थोंका और सम्पूर्ण लेखों तथा पत्रोंका तथा उनकी प्राइवेट डायरी श्रादिका संग्रह किया गया है। साथ में पं० जगदीशचन्द्र जी शास्त्री एम. ए. का लिखा हुआ 'राजचन्द्र और उनका संक्षिप्त परिचय' नामका एक निबन्ध भी लगा हुआ है जो बड़ा ही महत्वपूर्ण है और जिससे कविश्रेष्ठ श्रीमद्राजचन्द्रके जीवनका बड़ा अच्छा परिचय मिलता है । ग्रंथके शुरू में एक विस्तृत विषय सूची महात्मा गांधीजीके द्वारा प्रस्तावना रूपमें लिखे हुए उक्त संस्मरणोंके पूर्व लगी हुई है और अंत में ६ उपयोगी परिशिष्ट लगाए गये हैं, जिन सबसे ग्रंथकी उपयोगिता बहुत बढ़ गई है । यह ग्रंथ बड़ा ही महत्वपूर्ण है और इसमें अध्यात्मादि विषयोंके ज्ञानकी विपुल सामग्री भरी हुई है । ग्रंथ बार-बार पढ़ने, मनन करने 1 साहित्य - परिचय और समालोचन २०३ और संग्रह करने के योग्य है । मूल्य ६) रुपया इतने बड़े आकार और पुष्ट जिल्द सहित ग्रंथका अधिक महीं है । ग्रंथकी छनाई-सफाई सब सुन्दर और मनोमोहक है। गुजरातीमें इस ग्रंथके कई संस्करण हो चुके हैं । हिन्दीमें यह पहला ही संस्करण महात्मा गांधीजीके अनुरोध पर अनुवादित श्रादि होकर प्रकाशित हुआ है। और इसलिये हिन्दी पाठकोंको इससे श्रवश्य लाभ उठाना चाहिये। ग्रन्थ परसे श्रीमद्रराजचन्द्रजीको भले प्रकार समझा और जाना जा सकता है। महात्मा गाँधीजी के जीवन पर सबसे अधिक छाप श्रापकी ही लगी है, जिसे महात्माजी स्वयं स्वीकार करते हैं । आप ३४ वर्षकी अवस्था में ही स्वर्ग सिधार गये और इतनी थोड़ी अवस्था में ही इस सब साहित्यका निर्माण कर गये हैं, जिससे आपकी बुद्धिके प्रकर्ष का अनुभव किया जा सकता है । . (३) त्रिभंगीसार - (हिन्दी टीका सहित ) मूल लेखक, श्रीतारणतरण स्वामी, टीकाकार ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद । प्रकाशक सेठ मन्नूलाल जैन, मु० आगा सोद (सागर) सी० पी० ॥ बड़ा साइज पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर १४४ मूल्य १) रु० । मूल ग्रंथकी भाषा न संस्कृत है न प्राकृत और न हिन्दी । व्याकरणादिके नियमोंसे शून्य एक विचित्र प्रकार की खिचड़ी भाषा है। मालूम होता है इसके लेखक किसी भी भाषा के पंडित नहीं थे । उन्हें अपने सम्प्रदाय वालों के लिये कुछ-न-कुछ लिखनेकी जरूरत थी, इसलिये उन्होंने अपने मनके समझौते के अनुसार उसे उक्त खिचड़ी भाषा में ही लिखा है । पद्योंके छन्द भी जगह जगह पर लिखित हैं । ब्र० शीतलप्रसादजीने मूलग्रंथको ७१ गाथाओं में बतलाया है | परन्तु मूल के सब पद्य गाथा छन्द में नहीं हैं । ब्रह्मचारी
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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