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________________ वर्ष ३, किरण २] बुद्धि हत्याका कारखाना सांसारिक दुःखोंसे व्याकुल भावुकोंको झलबू लोग जोड़ी कालके प्रारम्भ होते ही हिमालयकी गुहा में जाकर समझा देते हैं कि ईश्वर किसी अज्ञात जगतसे इस धरा तपस्या कर रही है । कलिके अन्ततक हमें दुःख ही-दुःख धाममें अवतीर्ण होकर मानवी शक्तिसे बाहरकी अन- भोगना है। इसलिये केवल रामनाम जपते हुए लाखों होनी बातें कर डालता है। उन्हें वे यह भी विश्वास वर्ष दुःख सहते रहो । कलिका अन्त होते ही उक्त ऋषि दिलाते हैं, कि हमें ईश्वरका दर्शन हो गया है और अवतीर्ण होंगे और हमारे सब दुःख दूर कर देंगे। जिन्हें उसका दर्शन करना हो, वे हमारे पास चले आवें बौद्धिक दायसाका इससे बढ़कर यहां प्रमाण मिल हम भी ईश्वरके ही एक अवतार हैं और यदि चाहें, तो सकता है ? इसी भावनासे हम राम, कृष्ण, व्यास, मनुष्योंका भला-बुरा सब कुछ कर सकते हैं। बाल्मीकि, शंकराचार्य, रामदास, तुलसीदास आदिकी ___वास्तवमें यदि किसीको ईश्वरका साक्षात्कार हो कौन कहे, तिलक गांधी तकको अवतार मानने लगे हैं गया होता और दूसरेको भी ईश्वरका दर्शन करानेकी और अपनी बुद्धिका दिवाला खोल बैठे हैं । हम यह किसीमें शक्ति होती, तो रेडियो यन्त्रकी तरह एक ही नहीं समझते कि, प्रत्येक जीव ईश्वरका अंश है और ईश्वर घर-घर देख पढ़ता। परन्तु ईश्वरके सत्यरूपके 'नर करनी करे, तो नारायण भी हो सकता है।" सम्बन्धमें ही अभी एकमत नहीं है, उसका दर्शन कौन आश्चर्यकी बात तो यह है कि, जिन्हें हम अवतार किसको करावे ? किसीका ईश्वर सात श्रासमानके ऊपर मानते हैं, वे क्या कहते और क्या करते हैं, उस ओर बैठा है, तो किसीका सात समुद्रोंके पार क्षीरसागरमें ध्यान भी नहीं देते; किन्तु उनके निमित्तसे जो उत्सव शेषनागपर सोया है। किसीका ईश्वर सृष्टि के अन्तकी करते हैं, उनमें तालियां पीटकर व्याख्यान झाड़ते या प्रतीक्षा करता हुआ न्यायदानके लिये उत्सुक हो रहा मेवा मिश्रीका भोग लगाकर उदरदेवको सन्तुष्ट करते हैं है, तो किसीका सप्ताह में एक दिन विश्राम करता है। जहां तक देवताओंको मानकर और उन्हींपर, जीवन किसीका ईश्वर सगुण है, तो किसीका निर्गुण । किसी- कलहका सब भार सौंपकर परावलम्बी बम जाना, कैसी का ईश्वर क्रोधी है, तो किसीका शान्त । किसीका उपासना है ? शून्य है, तो किसीका क्रियाशील । सच्ची बात तो यह सचमुच देखा जाय, तो हमारी इस कोरी उपाहै कि, अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार मनुष्योंने ईश्वरकी सनाकी अपेक्षा पाश्चात्य साधनोंकी उपासना कहां कल्पना करली है। तर्क और बुद्धिको जहांतक स्थान बढ़ी चढ़ी है । हम पृथ्वी, सूर्य, वायु अग्नि आदिको मिला, मनुष्य बराबर आगे बढ़ते गये; परन्तु जब दोनों देवता मानते और चन्दन फूलोंसे उनकी उपासना की गति कुण्ठित हो गई. तब उन्होंने किसी एक ईश्वर करते हैं, जिसका कुछ भी फल नहीं होता। पाश्चात्य को मान लिया और उसोपर निर्भर रहकर कर्म करनेसे साधकोंने इन्ही पंचदेवोंकी ऐसी उपासनाकी, जिससे हाथ पैर बटोर लिये। वे उनके वशमें हो गये और नाना प्रकारसे मनुष्यजाति हिन्दुओंकी भोली भावना है कि, संसारमें जितने का उपकार करने लगे। पाणिनीने भाणशास्त्र निर्माण कुछ बड़े बड़े काम होते हैं, अवतारी पुरुष ही करते हैं। किया, आर्य भट्टने गणित शास्त्रके सिद्धान्त प्रस्थापित भागवसमें तो यहां तक लिखा है कि नर-नारायणको किये, ममु याज्ञवल्क्य श्रादिने प्राचारोंका वर्गीकरण
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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