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________________ वर्ष ३. किरण २] ऊँच-नीच-गोत्र-विषयक चर्चा भले प्रकार वर्णन कर ही दिया है कि पापाचरण भी उनमें चरण भी इन पशु पक्षियोंके सबको विदित ही हैं । पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह आचरण मेरा उनके उदाहरण लिखनेकी यहाँ आवश्यकता नहीं । ऊँचा है और यह आचरण मेरा जघन्य है (जैसे स्वर्गके अपनी ऊँचता नीचताका व धर्माचरण पापाचरणके किन्हीं देवोंने आठवे नारायण लक्ष्मणजीसे कहा कि रसका इन पशु पक्षियोंको भी अनुभव होता है इसलिये तुम्हारे भ्राता रामचन्द्रजी मर गये हैं, यह सुनकर उच्चाचरण नीचाचरणके आधार पर इन सम्पूर्ण लक्ष्मणजी तत्काल मरणको प्राप्त हो गये) तथा अमुक- तियंचोंमें भी ऊँच गोत्रका उदय व नीच गोत्रका उदय देव मुझसे नीचा है तथा इन्द्रादिक देवोंसे मैं नीचा हूँ क्यों न मानना चाहिये। और अमुक देषोंसे मैं ऊँचा हूँ तथा अमुकदेव मुझसे .. इसी प्रकार नारकियोंकी नीचता व उनके दुष्टाऊँचे हैं इस प्रकारके विचार उमके होते हैं और तजन्य चरण तो सब पर विदित ही हैं, परन्तु उनमें ऊँचता व ऊँचता-नीचताका रसानुभव भी होता है, इसलिये सदाचरण भी पाये जाते हैं । सातवें नरकके मारकियोंसे धर्माचरणों व पापाचरणोंकी अपेक्षा देवों में भी ऊँच उपरके मारकी पहले नरक सक उत्तरोत्तर ऊँगे तथा गोत्र व नीचगोत्रका उदय क्यों न मानना चाहिये ? कम पाप भोगी और कम आयु वाले हैं जैसा कि पूज्य . तिथंचोंमें भी वनस्पतियों और पशुओंकी ऊँचता बाबू साहबने भी लिखा है तथा उनमें सम्यग्दृष्टि भी तथा व्रताचरणका कथन तो पूज्य बाबू साहबने अपने होते हैं और मुनि केवली यहाँ तक कि तीर्थकर तक लेखमें स्पष्ट कर ही दिया है, मीची जातिके बंबूल होने वाले शुभ भारमा भी उनमें पाये जाते हैं। उन्हें थूहर भादि काँटेदार व निव श्राफ भादि कड़ए पेड़ अपनी ऊँच नीचता व दुराचरण-धर्माचरणका रसानुभव और सूअर, स्याल, सांप, बिच्छू आदि पशु सहनों भी बहुत ही अधिक होता है, इसलिये उच्चाचरण प्रकारके पाये जाते हैं और पक्षी भी इंस, सारस, तोता, नीचाचरणके आधार पर नारकियोंमें उच्चगोत्र तथा मैमा भादि ऊँची जातिके व काक गृद्ध आदि नीची नीचगोत्र क्यों म मानमा चाहिये ? जातिके सहस्रों प्रकारके हैं। वनस्पतियोंके धर्माचरण- भय रहे मनुष्य, जिनकी ऊँच नीचताका वर्णन पापाचरण तो भगवान् केवली गम्य हैं परन्तु ये भी बाबू साहवने लेखमें अच्छा किया है, बल्कि नीचताका जीव हैं, अतः इनमें भी दोनों प्रकार के भाव होंगे वर्णन तो बहुतही विशेष रूपसे लिखा गया है, फिर अवश्य । जब इममें रति प्रादि २३ कषायें बतलाई है भी उनको, नीचगोत्री भी मनुष्य होते हैं ऐसा बतला तब इनमें दोनों प्राचरण हैं, रति कषायका कार्य प्रेम कर केवल उच्चगोत्री ही बतलाया है। मनुष्य अपने करना है और यही इनका सदाचरण हैं शेष कषायोंका उच्चाचरणोंसे मोक्ष तक प्राप्त कर लेता है अतः उच्च कार्य असदाचरण है इनको अपने सदाचरण असदा- गोत्री तो है ही, परन्तु अपने दुराचारोंसे सातवां नरक चरण जन्य ऊँच नीचताका रसानुभव भी होता है। भी प्राप्त कर लेता है. इसलिये उसे नीच गोत्री भी पशु पक्षियोंके धर्माचरण विषयमें जिनागममें स्पष्ट होना चाहिये । गोम्मटसार-कर्मकाण्डकी गाथा २१८ से वर्णन है ही कि ये लोग पंचम गुणस्थामी होकर देश ३०१ तक मनुष्यों में नीचगोत्रका उदय बतलाया भी चारित्र धारण करके श्रावक तक हो सकते हैं। पापा है। वे गाथाएँ निम्न लिखित हैं:
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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