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________________ १६६ अनेकान्त नीवके ऊँचे चरणको 'ऊँच गोत्र' और नीचे आचरणको 'नीच गोत्र' कहते हैं । ऊँचगोत्र सूचक ऊँचे आचरणको सम्यक् चारित्र, धर्माचरण श्रादि न मानकर व्यवहार योग्य कुलाचरण, नागरिकका श्राचरण या सभ्य मनुष्यका आचरण आदि माना है । और नीचगोत्र - सूचक नीचे श्राचरणको मिथ्याचारित्र, धर्माचरण आदि न मानकर खोटा लौकिक आचरण, लोकयवहार के योग्य उग डकेतोंका निद्य आचरण या असभ्य मनुष्योंका आचरण आदि माना है । और ऐसा मानकर सम्यक् चारित्र, धर्माचरण और व्यवहारयोग्य कुलाचारण या सभ्य मनुष्यके चाचरण में तथा मिथ्याचारित्र, अधर्माचरण और ठग डकेतोंके निद्या चरण या असभ्य मनुष्यके चाचरणमें भेद व्यक्त किया है । और इस तरह पर ऊँचे श्राचरणका अर्थ व्यवहारयोग्य कुलाचरण और नीचे श्राचरणका अर्थ रगकेतोंका निद्य कुलाचरण लगाया है। अर्थात् उपर्युक्त अभिप्राय निकाला है। परन्तु यदि देखा जावे तो संसारमें दो ही प्रकार के शाश्चरण दृष्टिगोचर होते हैं— एक संयमाचरण और दूसरा असंयमाचरण । लोकव्यवहार - योग्य सभ्य कुलके मनुष्य के आचरणको संयमाचरण अर्थात् ऊँचा श्राचरण कहते हैं और लोकव्यवहारके अयोग्य असभ्यकुलके ठगडकेतोंके निद्य श्राचरणको श्रसंयमाचरण अर्थात् नीचा श्राचरण कहते हैं। जैसे माता पितादि गुरुजनों की सेवा करना, रोगियोंको औषधि यादि देना, असमर्थदीनोंकी कई प्रकार से सहायता करना, किसीकी धरोहर उसे वैसीकी वैसी वापस देना, ऋण लेकर पूरा चुकाना, ठीक पूरे तौलसे देना तथा वैसे ही पूरा लेना, झूठ नहीं बोलना, झूठी साक्षी नहीं देना, किसीको वचन देकर निभाना, दुसरेकी स्त्रीको माता- बहिन या बेटी समझना, मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं० २०६६ अपनी स्त्रीसे संतुष्ट रहना वेश्यागमन-परस्त्री गमन न करना, अति लोभ न करना, दूसरेका हक़ ( स्वत्व ) न दबा बैठना, ऋणीकी शक्ति अधिक ब्याज न लेना, अति तृष्णा न करना, अपने से न सँभल सके ऐसे व्यापारादिको न बढ़ाना श्रादि सहस्रों प्रकारके ऊँच गोत्र सूचक व्यवहारयोग्य सभ्य कुलके ऊँचे श्राचरण हैं । और गर्वोन्मत्त होकर निरपराधोंको मार डालनाकाट डालना उन्हें सताना, अनेक प्रकारके कष्ट देना उनका चित्त दुखाना, गुरुजनोंका अपमान तिरस्कार करना, दूसरेकी धरोहर हड़प जाना, ऋण लेकर नहीं देना, अधिक तौलकर लेना तथा कम तौल कर देना, चोरी करना, डाका डालना, किसीका धन ठग लेना, झूठ बोलना, झूठी साक्षी देना, दूसरेसे विश्वासघात करना, बचन देकर नट जाना, ऐसी बात कहना जिससे दूसरा संकटमें पड़ जाय, पुत्र- भाई- नातेदार -पड़ोसी-मित्र आदिकी स्त्रियोंसे बलात्कार व्यभिचार करना, परस्त्रीविधवा - दासी वेश्यादिको घरमें डाल लेना या उनसे छिपकर अथवा प्रकट रूपमें व्यभिचार करना, अति तृष्णा व अति लोभ करना, दूसरे के धनको - रहने के स्थानको हड़प जाना, अधिक ब्याज लेना, अपनेसे न सँभल सके इतने व्यापार यन्त्रालयादिको बढ़ाते जाना दि सहस्रों प्रकारके नीच गोत्र सूचक व्यवहार के अयोग्य असभ्य ठग डकेतोंके निद्य कुलके नीचे श्राचरण हैं । व्यवहारयोग्य सभ्य कुलके मनुष्यों में कम त्याग व कम संयम होता है और व्रती श्रावक व मुनियों में अधिक त्याग व अधिक संयम वा पूर्ण संयम होता है, और इसी तरह पर ठग - डकेतोंके असभ्य कुलवालोंमें अधिक असंयम व पूर्ण असंयम होता है। और इस तरह पर व्यवहार योग्य सभ्य कुलाचरण व धर्माचरण एक ही बात है तथा असभ्य कुलाचरण व असंयमा
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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