SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. अनेकान्त . (मार्गशीर्ष, वीर निर्वास सं०२४६६ लेकिन तिरस्कार और वक्रतायुक्त शब्द ज्यादा चोट कुलता हो, वहाँ जो शख्न अहिंसाकी उच्च मर्यादाका पहुँचाता है । जो प्रतिपक्षीके नाजुक भागको जख्म पालन नहीं कर सकता, वह उनका आश्रय ले तो वह घाव ही है। और यह तो हम जान समाज के लिए आवश्यक अहिंमाकी मर्यादाका पालन सकते हैं कि हमारा शब्द किसी अादमीको महज़ विनोद हुआ माना जायगा । जहाँ वैसा आश्रय लेनेकी गुजामालूम होगा या प्रहार । इमलिए अहिंमा में ऐसे प्रहार इश न हो (जैसे कि, जब चोर या हमला करनेवाला करना अयोग्य है। प्रत्यक्ष सामने आया हो) वहाँ वह अपनी प्रात्म-रक्षा के (४) प्रश्न-अहिंसा में अपनी व्यक्तिगत अथवा लिए और गुनहगारको पुलिसके हवाले करनेकी गर्नसे संस्थाकी रक्षा, अथवा न्याय के लिए पुलिस या कच- उसे अपने वशमें लाने के लिए,जितना आवश्यक हो उतने हरीकी मदद ली जा सकती है या नहीं ? चोर, डाकू ही बलका उपोयग करे तो उसमें होने वाली हिंसा क्षम्य या गुंडोंके हमलेका सामना बलसे कर सकते हैं या नही मानी जायगी। मगर, बात यह है कि आम तौर पर अहिंसावादी स्त्री अपनी इज्ज़त पर आक्रमण करने लोग उतने ही बलका प्रयोग करके रुकते नहीं । कब्जेवाले पर प्रहार कर सकती है या नहीं ? माये हुए गुनहगारको बुरी बुरी गालियाँ देते और उत्तर-यहां पर सामान्य जनता और प्रयत्नपूर्वक इतनी बुरी तरह पीटते हैं कि बाज दफा वह अधमरा अहिंसा की उपासना करने वालेमें कुछ भेद करना हो जाता है । यह हिंसा अक्षम्य है; यह हैवानियत है । चाहिए । जो अपेक्षा एक विचारक अहिंसक कार्यकर्ता . समाजको ऐसे बर्तावसे परहेज़ रखनेको तालीम देना से रखी जाती है वह सामान्य जनतासे नहीं रखी जाती ज़रूरी है। अहिंसा पमन्द समाजके लिए यह समझ मतलब, सामान्य जनताके लिए अहिंसाकी मर्यादा लेना ज़रूरी है कि हरेक गुनहगारको एक प्रकारका कुछ मोटी होनी अनिवार्य है। इसलिए अगर हम रोगी ही मानना चाहिए। जिस तरह तलवार लेकर इतना ही विचार करें कि सामान्य जनताके लिए अहिंसा दौड़ते हुए किमी पागलको या सन्निपातमें उइंडता धर्मका कब और कितना पालन ज़रूरी समझना करने वाले किसी रोगीको जबरदस्ती करके भी वशमं चाहिए तो काफी होगा । समझदार व्यक्ति अपनी २ लाना पड़ता है, उसी तरह चोर, लुटेरे या अत्याचारीशक्ति के मुताबिक इससे आगे बढ़ सकते है। . को पकड़ तो लेना होगा, लेकिन पागल या सन्निपात ___ इस दृष्टिसे, अहिंसाके विकास के मानी हैं जंगलके वाले मरीजको बशमें करने के बाद हम उसे पीटते नहीं कानूनमें से सभ्यता अथवा कानूनी व्यवस्थाकी अोर रहते । उलटे, उस को रहमकी दृष्टिस देखते हैं । यही प्रयाण । अगर हरेक अादमी अपने भयदाता या अन्याय दृष्टि दूसरे गुनहगारोंके प्रति भी होनी चाहिए। उसे कर्ताके सामने हमेशा बन्दुक उठाकर या अपने आद- हम पुलिसको सौंपते हैं इसकी मानी ये हैं कि वैसे मियोंको इकट्ठा कर के ही खड़ा होता रहे तो वह जंगल- रोगियोंका इलाज करने वाली संस्था के हाथ हम उसे का कायदा कहा जायगा । इसलिए जहाँ पुलि स या दे देते हैं। कचहरीका आश्रय लेने के लिए भरपूर समय या अनु (हरिजन सेवकसे)
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy