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________________ ५२ अनेकान्त वर्ष ३, किरण १ देवों तकमें किल्विष जातिके देव ऐसे पाये जाते हैं जिनका कारण कायम हुई । धीरे धीरे इन्हींके और भी अवावर्णन मनुष्यजातिके अस्पृश्य शूद्रों के समान किया गया न्तर भेद वृत्तिभेदके कारण होते गये; जैसे सुनार, है; फिर भी इन सबको उच्चगोत्री इसलिये माना गया लुहार, बढ़ई, धोबी, चमार, भंगी आदि । वृत्तिभेदके है कि इन सभी देवोंके इन कार्योंका उनकी वृत्तिसे कोई कारण म्लेच्छ नामकी जाति भी इसी आर्यखंडके मनुष्यों सम्बन्ध नहीं है-वृत्तिकी उच्चत्ता सब देवों में समानरूपसे की बन गयी है। यह बात नहीं है कि म्लेच्छखंडोंसे पायी जाती है, इसलिये सभी देव उच्चगोत्री माने आये हुये म्लेच्छ ही यहां पर म्लेच्छ नाम से पुकारे गये हैं। जाते हैं, यहांके ( आर्यखडके ) बाशिन्दे आर्य ही, मनुष्यजातिमें सम्मूर्च्छन मनुष्य तो पतित हैं ही, जो कि भोगभूमिके समयमें बहुत ही सरल वृत्तिके थे, इसलिये उनके नीचगोत्रका अविवाद रूप है। अन्तर्दी. कालांतरमें क्रूर वृत्तिके धारक बन गये। वे ही 'म्लेछ' पज मनुष्योंमें भोगभूमि-समप्रणधि मनुष्योंकी वृत्ति दीन कहलाने लगे हैं । यह परिवर्तन अाज भी देखने में है, कारण कि उनके खानेके लिये मिट्टी आदि अधम आता है। पदार्थ ही मिला करते हैं । कर्मभूमि समप्रणधि मनुष्य जैनियों में भी जिन लोगोंका यह ख़याल है कि म्लेछखंडोंकी तरह विशेषतया क्रूर वृत्ति वाले ही माने “जातियां अनादि हैं" (जातयोऽनादयः ) इस जा सकते हैं, इसलिये ये दोनों प्रकारके अन्तर्दीपज वाक्यके अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र तथा मनुष्य नीचगोत्री माने गये हैं । म्लेच्छखंडों के मनुष्यों इनके अवान्तर भेद सुनार, लुहार आदि सभी जातियां की वृत्ति विशेषतया क्रूर वृत्ति है, कारण कि उनकी अनादि हैं, उन्हें यह बात नहीं भूलना चाहिये कि अजीविकाके साधन क्रूर हैं, इसलिये ये भी नीचगोत्री भोगभूमिके जमानेमें इस भरतक्षेत्रके आर्यखंडमें सभी ही कहे जाते हैं। मनुष्य समान थे, उनमें किसी भी प्रकारका जातिभेद ___ भोगभूमिके मनुष्यों की वृत्ति स्वाभिमानपूर्ण है। न था और यह बात तो स्पष्ट है, कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, उन्हें बिना किसी परिश्रमके उनकी इच्छानुकूल अच्छे२ वैश्य और शूद्र इन चार जातियों ( वर्णो ) में मनुष्य भोजन कल्पवृक्षोंसे मिला करते हैं, उनको अपने पेट का विभाजन ऋषभदेव व उनके पुत्र भरत चक्रवर्तीने भरनेके लिये दोनता अथवा क्रूरतापूर्ण कार्य नहीं करने किया था । इसके बाद धीरे धीरे और भी भेद पड़ते हैं, इसलिये वे उच्चगोत्री माने गये हैं। प्रार्य- इनमें वृत्ति भेदके कारण कायम होते गये और श्राज खंडके साधु भी उल्लिखित स्वाभिमानपूर्ण वृत्तिके कारण तक कायम होते जा रहे हैं। उच्च गोत्री माने गये हैं। यद्यपि धर्म, सम्प्रदाय, देश, प्रान्त व्यक्तिविशेष ___ आर्यखंडके बाकी मनु योंकी वृत्ति भिन्न २ प्रकार प्रादिके अधार पर भी मनुष्यों में बहुत सी जातियोंकी की देखी जाती है। वृत्तिभेदके कारण ही आर्यखंडके कल्पना की गयी है और की जा रही है परन्तु गोत्रकर्मके मनुष्योंकी नाना जातियां कायम हो गई हैं । इस भारत- प्रकरणमें इन जातियोंकी विवक्षा नहीं है, इसलिये क्षेत्रके आर्यखंडमें कर्मभूमिकी रचनाके बाद ही मनुष्योंमें ऐसी जातियोंका समावेश यहां पर नहीं किया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये जातियां वृत्ति-भेदके इस कथनका तात्पर्य यह है कि मनुष्योंमें जितने
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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